क्या शिबू सोरेन का निधन भारत की राजनीति में एक बड़ा बदलाव लाएगा?

सारांश
Key Takeaways
- शिबू सोरेन का निधन भारतीय राजनीति के लिए एक बड़ा क्षति है।
- उन्होंने आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए।
- उनका जन्म 11 मई 1944 को हुआ था।
- वे झारखंड राज्य के निर्माण में एक प्रमुख व्यक्ति थे।
- राज्यसभा में शोक और सम्मान के साथ उन्हें याद किया गया।
नई दिल्ली, 4 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। प्रसिद्ध आदिवासी नेता और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का सोमवार को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। वह राज्यसभा के सांसद थे। उनके निधन पर राज्यसभा में सभी सांसदों ने शोक व्यक्त किया और दो मिनट का मौन रखा। उसके बाद सदन की कार्यवाही पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई।
जब सोमवार को राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हुई, तो उपसभापति हरिवंश नारायण ने सदन को मौजूदा सांसद की मृत्यु की सूचना दी। उपसभापति ने कहा कि गहरे दुख के साथ यह सूचित करना है कि मौजूदा राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन का निधन हो गया है।
उपसभापति ने कहा, "शिबू सोरेन आम लोगों के बीच गुरुजी के नाम से मशहूर थे। उनका जन्म झारखंड के हजारीबाग जिले के एक गांव में 11 मई 1944 को हुआ था। वह मैट्रिक पास थे और पेशे से एक किसान थे। उन्होंने आदिवासी समुदाय के अधिकारों और उनके उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। झारखंड राज्य के निर्माण के आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने आजीवन वंचितों के अधिकार की लड़ाई लड़ी और उनके लिए सेवा भाव से कार्य किया। वह एक वरिष्ठ और विशिष्ट आदिवासी नेता थे। वह झारखंड के सामाजिक राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रभावशाली व्यक्ति थे।
उपसभापति ने आगे कहा कि ‘दिशोम गुरु’ के रूप में जाने जाने वाले शिबू सोरेन आम गरीब लोगों के बीच में गुरूजी के रूप में लोकप्रिय थे। वह एक जमीनी कार्यकर्ता थे। वह नवगठित राज्य (झारखंड) के सबसे सम्मानित नेताओं में से एक बने। उन्होंने आजीवन वंचितों के हितों और अधिकारों के लिए काम किया।
गौरतलब है कि अपने लंबे राजनीतिक जीवन में शिबू सोरेन आठ बार लोकसभा सांसद के रूप में चुने गए। उपसभापति ने कहा कि उन्होंने लोकसभा में झारखंड की जनता का ईमानदारी और निष्ठा से प्रतिनिधित्व किया। इसके अलावा, वह तीन बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे और वह मौजूदा समय में भी राज्यसभा के सदस्य थे।
राज्यसभा में बताया गया कि दिवंगत सांसद वर्ष 2005-2010 के बीच तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे। वह वर्ष 2004-2006 के बीच केंद्रीय सरकार में केंद्रीय कोयला मंत्री रहे। राज्यसभा में उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा गया कि अपने संसदीय जीवन में उन्होंने विशेष रूप से सामाजिक न्याय, आदिवासी कल्याण और ग्रामीण विकास जैसी बहस और चर्चा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।