क्या सुप्रीम कोर्ट ने अरुंधति रॉय की किताब पर रोक लगाने की मांग को खारिज किया?
सारांश
Key Takeaways
- सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका को खारिज किया।
- किताब का कवर धूम्रपान के प्रचार के बराबर नहीं है।
- लाइनें साहित्यिक कृति और प्रचार के बीच का अंतर स्पष्ट करती हैं।
नई दिल्ली, 5 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। प्रसिद्ध लेखिका अरुंधति रॉय की नई कृति 'मदर मैरी कम्स टू मी' की बिक्री और प्रचार पर रोक लगाने की मांग वाली जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को खारिज कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है।
इससे पहले, केरल हाईकोर्ट ने भी किताब की बिक्री, वितरण और प्रचार पर रोक लगाने से मना कर दिया था। याचिकाकर्ता का आरोप था कि किताब के कवर पृष्ठ पर अरुंधति रॉय सिगरेट पीते हुए नजर आ रही हैं, जो कि सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम 2003 का उल्लंघन है। इससे धूम्रपान को बढ़ावा मिलता है और कानून के अनुसार चेतावनी के बिना ऐसे चित्र का उपयोग नहीं किया जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा, "अरुंधति रॉय एक नामचीन लेखिका हैं। उन्होंने किसी भी तरह से धूम्रपान का प्रचार नहीं किया है। किताब में आवश्यक चेतावनी भी मौजूद है, इसलिए हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं दिखता।"
अदालत ने यह भी कहा कि किसी साहित्यिक कृति के कवर पृष्ठ को धूम्रपान के प्रचार के रूप में नहीं देखा जा सकता।
यह जनहित याचिका अधिवक्ता राजसिंहन ने दायर की थी। उनका कहना था कि किताब का कवर पृष्ठ धूम्रपान को बौद्धिकता और रचनात्मकता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करता है। उनके अनुसार, यह विशेषकर युवा लड़कियों और महिलाओं जैसे प्रभावशाली पाठक समूहों को गुमराह कर सकता है।
राजसिंहन ने स्पष्ट किया कि उन्हें किताब की सामग्री, साहित्यिक मूल्य या विचारों से कोई आपत्ति नहीं है। उनकी आपत्ति केवल कवर पर सिगरेट के चित्र से है।
उन्होंने कोर्ट से मांग की थी कि जब तक कवर पर "धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है" जैसी चेतावनी नहीं लगाई जाती, तब तक किताब की बिक्री और प्रचार पर रोक लगाई जाए।
2003 के इस कानून के तहत भारत में बेचे जाने वाले सभी तंबाकू उत्पादों के पैकेज पर बड़ी चेतावनी छापना अनिवार्य है, जैसे 'धूम्रपान जानलेवा है' और 'कैंसर का कारण बनता है'। हालांकि, यह नियम केवल तंबाकू उत्पादों के पैकेट पर लागू होता है, किताबों पर नहीं। यही कारण था कि कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार किया।