क्या आरएसएस की विचारधारा लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है? : सुप्रिया श्रीनेत

सारांश
Key Takeaways
- आरएसएस की विचारधारा लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
- सुप्रिया श्रीनेत ने आरएसएस की ऐतिहासिक भूमिका पर सवाल उठाए।
- प्रधानमंत्री की घुसपैठ से निपटने की नीति पर चिंता।
- केंद्र सरकार को ठोस नीति बनाने की आवश्यकता।
- महिलाओं के प्रति आरएसएस का दृष्टिकोण नकारात्मक है।
नई दिल्ली, 1 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। कांग्रेस पार्टी की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला किया है।
उन्होंने आरएसएस की प्रशंसा पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर क्यों इस संगठन का गुणगान किया जा रहा है।
सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, "आरएसएस की सराहना क्यों की जानी चाहिए? क्या आजादी के आंदोलन में हिस्सा न लेने, अंग्रेजों की मुखबिरी करने, या माफी मांगने के लिए? क्या नाथूराम गोड्से के लिए? या फिर सरदार पटेल द्वारा संघ पर प्रतिबंध लगाने के कारण इसका गुणगान हो?"
उन्होंने आगे कहा कि आरएसएस का इतिहास देशभक्ति का नहीं है। आजादी के आंदोलन में जो देशभक्त थे, वे जंग में गए, और जो देशभक्त नहीं थे, वे संघ में शामिल हुए। आरएसएस ने महिलाओं को कभी महत्व नहीं दिया और इसकी विचारधारा आजादी के महानायकों का अपमान करती रही है।
सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि आरएसएस के हाथ 'गांधी जी के खून से सने हैं' और यह संगठन जिन्ना के साथ मिलकर सरकारें चलाने में शामिल रहा है। आरएसएस की विचारधारा और इतिहास देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
उन्होंने कहा कि 11 साल से सत्ता में बैठे पीएम मोदी के पास घुसपैठ से निपटने का कोई प्लान नहीं है, और वे एक गैर-मान्यता प्राप्त संगठन से मदद मांग रहे हैं। वे आरएसएस को मान्यता दिलाने का प्रयास कर रहे हैं। मैं पूछना चाहती हूं कि चुनाव आते ही घुसपैठ का मुद्दा क्यों उठता है? बिहार में कितने घुसपैठियों के नाम मतदाता सूची से हटाए गए, यह सरकार बताए।
सुप्रिया श्रीनेत ने दावा किया कि यूपीए सरकार ने अपने कार्यकाल में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से बाहर का रास्ता दिखाया था। जबकि, वर्तमान सरकार इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही। केंद्र सरकार को घुसपैठ जैसे संवेदनशील मुद्दों पर ठोस नीति बनाने की जरूरत है।