क्या स्वामी हैदर दास मंदिर को तोड़ने की बात से दलित समाज आहत है?

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क्या स्वामी हैदर दास मंदिर को तोड़ने की बात से दलित समाज आहत है?

सारांश

दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के सामने स्थित दलित समाज के प्राचीन स्वामी हैदर दास मंदिर को तोड़ने के नोटिस का विरोध किया है। सौरभ भारद्वाज ने कहा कि यह मंदिर 1930 से अस्तित्व में है और इसे अवैध बताना दलित समाज के लिए अपमान है।

Key Takeaways

  • स्वामी हैदर दास मंदिर का इतिहास 1930 से है।
  • आम आदमी पार्टी ने इस मंदिर को तोड़ने का विरोध किया है।
  • मंदिर में दलित महापुरुषों की कई समाधियां हैं।
  • मंदिर में धर्मशाला की सुविधा है।
  • सरकार की कार्रवाई ने दलित समाज को आहत किया है।

नई दिल्ली, 26 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। आम आदमी पार्टी ने मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के सामने स्थित दलित समाज के प्राचीन स्वामी हैदर दास मंदिर को तोड़ने के लिए जारी नोटिस का कड़ा विरोध किया है। ‘आप’ के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने कहा कि हाल ही में शालीमार बाग में जैन समाज के मंदिर पर बुलडोजर चलवाया गया था और अब दलित समाज के स्वामी हैदर दास मंदिर को ग़ैरक़ानूनी घोषित किया गया है। मंदिर को नोटिस देकर कहा गया है कि 7 दिनों के अंदर इसे खुद ही तोड़ लिया जाए।

उन्होंने कहा कि यह मंदिर 1930 में बने इरविन अस्पताल के पहले से स्थापित है और यहां कई दलित महापुरुषों की समाधियां हैं। साथ ही, यहां एक धर्मशाला भी है, जो लोगों की सेवा करती है। ऐसे प्राचीन मंदिर को अवैध बताने से दलित समाज बेहद आहत है।

सौरभ भारद्वाज ने शनिवार को विधायक विशेष रवि और संजीव झा के साथ चर्चा करते हुए कहा कि दो-तीन दिन पहले शालीमार बाग में जैन मंदिर पर बुलडोजर चलाया गया था। कुछ साल पहले डीडीए ने तुगलकाबाद इलाके में वर्षों पुराने रविदास मंदिर पर भी बुलडोजर चलाया था। कालकाजी का मुख्य मार्ग रविदास मार्ग कहलाता है। एक ओर कालकाजी और दूसरी ओर गोविंदपुरी का क्षेत्र है। इसके अलावा तुगलकाबाद और संगम विहार भी निकट हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आश्वासन के बावजूद आज तक रविदास मंदिर का पुनर्निर्माण नहीं किया गया है।

सौरभ भारद्वाज ने कहा कि प्राचीन स्वामी हैदर दास के मंदिर में दिल्ली के दलित समाज के सभी संत महापुरुषों की समाधियां हैं। स्वामी हैदर दास मंदिर आजादी से पहले का है। यह एक विशाल मंदिर है, जो लगभग एक हजार वर्ग गज में फैला हुआ है। यह एक स्थापित मंदिर है और इसके अंदर एक आश्रम भी चलता है। यह मंदिर मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के सामने स्थित है। आज भी, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में आने वाले मरीजों के परिजनों को अगर रुकने के लिए कोई जगह नहीं मिलती है, तो वे इसी मंदिर में बनी धर्मशाला में ठहरते हैं।

सौरभ भारद्वाज ने कहा कि भारत 1947 में आजाद हुआ। आजादी से पहले 1930 में अंग्रेजों के समय इरविन अस्पताल का निर्माण हो रहा था, स्वामी हैदर दास मंदिर उससे पहले ही बना हुआ है। इरविन अस्पताल के निर्माण में लगे मजदूर भी इसी मंदिर में जाकर आराम करते थे। 1936 में इरविन अस्पताल की शुरुआत हुई। आजादी के बाद इरविन अस्पताल का नाम बदलकर लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल कर दिया गया। इसके बाद इसी में मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गई।

सौरभ भारद्वाज ने कहा कि कुछ दिन पहले दिल्ली की मुख्यमंत्री मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज गईं और उन्होंने आदेश दिया कि आसपास की सभी भूमि एलएनजेपी और मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज की है। इसलिए सभी अतिक्रमण हटाए जाएंगे। मंदिर को अतिक्रमण कहना गलत है।

इस दौरान करोलबाग से ‘आप’ विधायक विशेष रवि ने कहा कि इस मंदिर में दलित समाज के महात्माओं की समाधि है। दलित समाज के लोग इस मंदिर में जाकर रोज माथा टेकते हैं और अच्छे काम करने की प्रेरणा लेते हैं। आजादी से पहले से यह मंदिर अस्तित्व में है। इस मंदिर में दलित समाज की ओर से कई भव्य कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। ऐसे स्थान को तोड़ने की बात करना अनुचित है। पूरा दलित समाज सरकार की इस कार्रवाई का सख्त विरोध करता है।

Point of View

NationPress
04/08/2025

Frequently Asked Questions

स्वामी हैदर दास मंदिर का इतिहास क्या है?
स्वामी हैदर दास मंदिर 1930 से पहले का है और यह दलित समाज के महापुरुषों की समाधियों का स्थल है।
आम आदमी पार्टी का इस मंदिर को लेकर क्या रुख है?
आम आदमी पार्टी ने इस मंदिर को तोड़ने के नोटिस का कड़ा विरोध किया है और इसे अवैध बताने से दलित समाज को आहत बताया है।
मंदिर में कौन-कौन सी सुविधाएं उपलब्ध हैं?
मंदिर में धर्मशाला है, जहां मरीजों के परिजनों को ठहरने की सुविधा मिलती है।
क्या सरकार ने मंदिर को अतिक्रमण माना है?
सरकार ने मंदिर को अतिक्रमण मानते हुए इसे तोड़ने का नोटिस जारी किया है, जिसे दलित समाज ने गलत ठहराया है।
इस मुद्दे पर दलित समाज का क्या प्रतिक्रिया है?
दलित समाज ने सरकार की कार्रवाई का सख्त विरोध किया है और इसे धार्मिक स्थल के प्रति अपमान माना है।