क्या स्वामी शिवानंद ने अर्धचेतन अवस्था की खोज में रामकृष्ण परमहंस से ऐतिहासिक भेंट की?

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क्या स्वामी शिवानंद ने अर्धचेतन अवस्था की खोज में रामकृष्ण परमहंस से ऐतिहासिक भेंट की?

Key Takeaways

  • स्वामी शिवानंद का जन्म 1854 में हुआ था।
  • उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से पहली मुलाकात 1882 में की।
  • स्वामी शिवानंद ने अर्धचेतन अवस्था की खोज की।
  • गुरु के निधन के बाद उन्होंने ध्यान और तपस्या में जीवन बिताया।
  • वे रामकृष्ण मिशन के शासी निकाय के सदस्य थे।

नई दिल्ली, 15 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। यह कहानी 1882 की है, जब रामकृष्ण परमहंस ‘अर्धचेतन अवस्था’ में उत्सुक श्रोताओं के साथ संवाद कर रहे थे। तभी एक युवा संन्यासी वहां पहुंचे, जिन्होंने पारिवारिक सुख-समृद्धि का त्याग कर आध्यात्मिक पथ अपनाया था। वह ‘अर्धचेतन अवस्था’ के रहस्य को जानने के लिए अत्यंत उत्सुक थे। रामकृष्ण के कुछ शब्द उनके कानों में गूंजे और उनके कदम वहीं ठहर गए। यही वह ऐतिहासिक क्षण था, जब रामकृष्ण मिशन के महान संत स्वामी शिवानंद पहली बार अपने गुरु से मिले।

स्वामी शिवानंद, जिनका जन्म नाम था तारकनाथ घोषाल, 16 दिसंबर 1854 को बंगाल के बारासात में जन्मे थे। उन्होंने बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्तियों के लक्षण दिखाने शुरू कर दिए थे। वे अक्सर ध्यान में लीन रहते थे और आध्यात्मिक ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने की तीव्र इच्छा उनके मन में थी। एक बार उनकी मुलाकात केशव चंद्र सेन से हुई, जिसके माध्यम से उन्होंने पहली बार रामकृष्ण के बारे में सुना।

कुछ समय बाद तारक दिल्ली आए। एक मित्र के साथ धार्मिक विषयों पर चर्चा के दौरान उन्हें बताया गया कि सच्ची समाधि प्राप्त करना बहुत दुर्लभ है, लेकिन एक महापुरुष हैं, जिन्होंने इसे प्राप्त किया है। उस महापुरुष का नाम रामकृष्ण था। इस सुनकर तारक के मन में रामकृष्ण से मिलने की इच्छा जाग उठी।

1882 में उनकी पहली भेंट रामकृष्ण से हुई। उन्होंने देखा कि गुरु अर्धचेतन अवस्था में समाधि के विषय पर बोल रहे थे। तारक ने कुछ शब्द ही समझे, लेकिन वे उनके हृदय में गहरे उतर गए और वे पूरी तरह से रामकृष्ण के प्रति आकर्षित हो गए। इस घटना का उल्लेख स्वामी शिवानंद से जुड़े लेखों में मिलता है।

एक अन्य घटना में, रामकृष्ण ने तारक से पूछा कि क्या वे निराकार ईश्वर में विश्वास करते हैं। तारक ने ब्रह्म समाज की शिक्षा के अनुसार हाँ कहा। रामकृष्ण ने उत्तर दिया, 'आप दिव्य शक्ति को भी नकार नहीं सकते।' इसके बाद उन्होंने तारक को काली मंदिर ले गए, जहां संध्याकालीन प्रार्थना चल रही थी।

रामकृष्ण ने देवी मां के समक्ष प्रणाम किया। तारक शुरू में हिचकिचाए, लेकिन जल्दी ही उन्होंने सोचा कि यदि ईश्वर सर्वव्यापी है, तो वह पत्थर की मूर्ति में भी होना चाहिए। अंततः उन्होंने मूर्ति के समक्ष प्रणाम किया और धीरे-धीरे देवी में उनका विश्वास बढ़ने लगा।

एक दिन, रामकृष्ण ने तारक को एक तरफ बुलाया और उनकी जीभ पर कुछ ऐसा लिखा कि वह तुरंत ध्यान की गहराई में चले गए। एक दिन, काली मंदिर के सामने खड़े होकर तारक ने फूट-फूटकर रोए और जब वह लौटे, तो गुरु ने कहा, 'ईश्वर उन्हीं का अनुग्रह करता है जो उसके लिए रो सकते हैं।' उन्हें कई अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव हुए, जिनमें से कुछ ने गुरु को भी प्रभावित किया।

गुरु के निधन के बाद, स्वामी शिवानंद बरनगर के मठ में शामिल हो गए। उन्होंने ध्यान और तपस्या में अपना जीवन व्यतीत किया। गुरु का देह त्याग उनके लिए असहनीय था। वे गहन साधना के माध्यम से गुरु की उपस्थिति का अनुभव करने का प्रयास करते थे। कभी-कभी उन्हें ऐसा लगता था कि मठ में रहना बंधन है, इसलिए वे अकेले ही भटकते रहते थे।

स्वामी शिवानंद बेलूर मठ के न्यासियों में से एक और रामकृष्ण मिशन के शासी निकाय के सदस्य थे। जब स्वामी प्रेमानंद का 1918 में निधन हुआ, तब बेलूर मठ का व्यावहारिक कार्यभार उनके जिम्मे आया। 1922 में, उन्हें रामकृष्ण मठ और मिशन का अध्यक्ष बनाया गया। 1926 में, उनके नेतृत्व में रामकृष्ण मठ और मिशन का पहला सम्मेलन हुआ।

एक दिन उन्हें दौरा पड़ा जिससे वे पूरी तरह से अक्षम हो गए। इसके बाद स्वामी शिवानंद का 20 फरवरी 1934 को निधन हो गया।

Point of View

बल्कि समाज के लिए भी एक प्रेरणा है। रामकृष्ण परमहंस से उनकी भेंट ने न केवल उनके जीवन को बदल दिया, बल्कि यह दिखाता है कि आध्यात्मिकता की राह में सच्ची खोज और भक्ति आवश्यक हैं।
NationPress
15/12/2025

Frequently Asked Questions

स्वामी शिवानंद का असली नाम क्या था?
स्वामी शिवानंद का असली नाम तारकनाथ घोषाल था।
स्वामी शिवानंद ने रामकृष्ण से कब पहली बार मुलाकात की?
स्वामी शिवानंद ने 1882 में रामकृष्ण से पहली बार मुलाकात की।
स्वामी शिवानंद का जन्म कब हुआ?
स्वामी शिवानंद का जन्म 16 दिसंबर 1854 को हुआ था।
स्वामी शिवानंद का योगदान क्या था?
स्वामी शिवानंद ने रामकृष्ण मिशन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्होंने ध्यान और तपस्या के माध्यम से अपने अनुयायियों को मार्गदर्शन किया।
स्वामी शिवानंद का निधन कब हुआ?
स्वामी शिवानंद का निधन 20 फरवरी 1934 को हुआ।
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