क्या तलाकशुदा मुस्लिम महिला को दहेज में मिला पैसा और तोहफा वापस पाने का हक है?
सारांश
Key Takeaways
- महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा
- तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को दहेज की वापसी का अधिकार
- सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
- सामाजिक न्याय की आवश्यकता
- बराबरी और गरिमा का अधिकार
नई दिल्ली, 3 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि तलाक पर अधिकारों का संरक्षण एक्ट, 1986 के तहत एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला को अपने पिता से मिले दहेज का पैसा और सोना वापस पाने का अधिकार है।
यह निर्णय रौशनारा बेगम के मामले में आया, जिन्होंने अपने पूर्व पति से दहेज के रूप में मिली सात लाख रुपए और तीस ग्राम सोना वापस पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
रौशनारा बेगम का विवाह 2005 में हुआ था और 2011 में उनका तलाक हो गया था। विवाह के समय महिला के पिता ने दामाद को सात लाख रुपए और तीस ग्राम सोने के गहने दिए थे, जो निकाह रजिस्टर में दर्ज थे। हालांकि, कलकत्ता हाईकोर्ट ने काजी और महिला के पिता के बयानों में असंगति का हवाला देते हुए महिला का दावा खारिज कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि विवाह के समय मिले धन और गहनों का संबंध महिला की सुरक्षा और गरिमा से है। अदालत ने इस कानून की व्याख्या महिला के समानता और गरिमा के संवैधानिक अधिकारों के आधार पर की।
अदालत ने रौशनारा के पति को सात लाख रुपए और तीस ग्राम सोने का मूल्य सीधे महिला के बैंक खाते में जमा करने का आदेश दिया। आदेश का पालन न करने पर पति पर नौ प्रतिशत वार्षिक ब्याज लागू होगा और उसे अदालत में इसके अनुपालन का हलफनामा देना होगा।
कोर्ट ने कहा कि भारत का संविधान सभी के लिए एक उम्मीद यानी बराबरी तय करता है, जो अभी तक हासिल नहीं हुई है। इस मकसद को पूरा करने के लिए कोर्ट को अपनी सोच को सोशल जस्टिस के आधार पर रखना चाहिए। इसे सही संदर्भ में कहें तो 1986 के एक्ट का दायरा और मकसद एक मुस्लिम महिला के तलाक के बाद उसकी इज्जत और वित्तीय सुरक्षा को सुरक्षित करना है, जो भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत महिलाओं के अधिकारों के मुताबिक है।
कोर्ट ने कहा कि इसलिए इस एक्ट को बनाते समय बराबरी, इज्जत और आजादी को सबसे ऊपर रखना चाहिए और इसे महिलाओं के अपने अनुभवों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।