क्या तिरुवेरुम्बुर में सांबा धान की फसल संकट में है?
सारांश
Key Takeaways
- सांबा धान की फसल पर संकट है।
- प्रदूषित पानी मुख्य कारण माना जा रहा है।
- किसान संगठन राहत की मांग कर रहे हैं।
- जल प्रदूषण की जांच की जा रही है।
- बेमौसम बारिश ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है।
चेन्नई, 5 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। तमिलनाडु के तिरुचि जिले के तिरुवेरुम्बुर ब्लॉक में सांबा धान की फसल पर संकट उत्पन्न हो गया है। वेंगुर, पझंगनकुड़ी और आस-पास के गांवों में लगभग 500 एकड़ में फैली फसल अचानक खराब होने लगी है, जिससे हजारों किसानों की मेहनत पर पानी फिरने का खतरा मंडरा गया है। प्रारंभिक आकलन में सिंचाई जल के प्रदूषण को मुख्य कारण माना जा रहा है।
तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (टीएनपीसीबी) ने मामले की गहन जांच आरंभ करने की योजना बनाई है, जबकि किसान संगठन तत्काल राहत की मांग कर रहे हैं।
कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार, तिरुचि जिले के प्रमुख धान उत्पादक ब्लॉक, लालगुड़ी, मन्नाचनल्लूर, अंतानल्लूर, तिरुवेरुम्बुर, मणिकंदम, मुसिरी, थोट्टियम, थुरैयूर और पुल्लम्बाड़ी में सांबा मौसम की धान की खेती जोरों पर है। यहां किसान तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (टीएनएयू) द्वारा अनुशंसित उच्च उपज वाली किस्में जैसे टीआरवाई-3, सीओ (आर) 50 और सीआर 1009 उगा रहे हैं।
अधिकांश किसानों ने टीआरवाई-3 और सीओ (आर) 50 को अपनाया, लेकिन तिरुवेरुम्बुर के किसानों ने सीआर 1009 को प्राथमिकता दी। फिर भी, कीटों या रोगों के स्पष्ट लक्षण न दिखने के बावजूद सीआर 1009 की बंपर फसल को बड़े पैमाने पर मुरझाते हुए देखा गया है। विशेषज्ञ इसे असामान्य मानते हैं और जल प्रदूषण से जोड़ते हैं।
जिले के एक वरिष्ठ कृषि अधिकारी ने बताया, "प्रभावित खेतों में पत्तियों का पीला पड़ना, जड़ों का सड़ना और पौधों का झुकना जैसे लक्षण रासायनिक प्रदूषण की ओर इशारा करते हैं। प्रदूषित पानी ही मुख्य वजह लग रही है, हालांकि मौसम या मिट्टी की खराब गुणवत्ता से भी इनकार नहीं किया जा सकता।"
हाल की बेमौसम बारिश ने स्थिति को और जटिल बना दिया है, क्योंकि डेल्टा क्षेत्र में अधिक वर्षा से पहले ही कई खेत जलमग्न हो चुके हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) की टीम ने पझंगनकुड़ी के प्रभावित खेतों का दौरा किया। टीम ने फसल के मुरझाने की पुष्टि की और मिट्टी व पानी के नमूने एकत्र किए। केवीके के विशेषज्ञ ने बताया, "नमूनों का लैब विश्लेषण जल स्तर में भारी धातुओं या कीटनाशकों की मौजूदगी बता सकता है। रिपोर्ट सामने आने पर जैविक उर्वरक जैसे जरूरी उपाय सुझाए जाएंगे।"
उन्होंने बताया कि आगे किसानों के साथ बैठक में निष्कर्ष साझा किए जाएंगे, जहां बीमा दावे और मुआवजे पर भी चर्चा होगी।