क्या टंगालिया हस्तकला से पद्मश्री लवजीभाई परमार गुजरात की सांस्कृतिक धरोहर को नई शक्ति दे रहे हैं?
सारांश
Key Takeaways
- टंगालिया कला गुजरात की 700 वर्ष पुरानी हस्तकरघा परंपरा है।
- लवजीभाई परमार ने इस कला के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- टंगालिया को भौगोलिक संकेत (जीआई) का दर्जा मिला है।
- वाइब्रेंट गुजरात कॉन्फ्रेंस में सांस्कृतिक आदान-प्रदान के नए अवसर मिलेंगे।
- टंगालिया कला का वैश्विक स्तर पर प्रसार हो रहा है।
गांधीनगर, 4 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सिद्धांत 'हर घर स्वदेशी, घर-घर स्वदेशी' से प्रेरित होकर राजकोट के मारवाड़ी विश्वविद्यालय में वाइब्रेंट गुजरात रीजनल कॉन्फ्रेंस कच्छ और सौराष्ट्र क्षेत्र के औद्योगिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अवसरों को एक व्यापक मंच पर प्रदर्शित करेगा।
टंगालिया कला, जो गुजरात की लगभग 700 वर्ष पुरानी हस्तकरघा परंपरा है, अपने दानेदार पैटर्न के लिए प्रसिद्ध है। सुरेंद्रनगर के डांगासिया समुदाय के कारीगर आज भी इस कला को अद्वितीय निपुणता से संरक्षित कर रहे हैं। इसमें अतिरिक्त वेफ्ट धागों को वार्प धागों पर बारीकी से लपेटकर सुंदर ज्यामितीय डिज़ाइन बनाए जाते हैं। इसकी अनोखी तकनीक और सांस्कृतिक महत्व के कारण टंगालिया को भौगोलिक संकेत (जीआई) का दर्जा प्राप्त हुआ है, जो इसकी विशिष्टता और परंपरा की रक्षा करता है।
यह प्राचीन कला जो कभी विलुप्ति के कगार पर थी, अब एक नई पहचान बना रही है। वर्तमान में, पुरातन, हस्तनिर्मित और सांस्कृतिक वस्तुओं की बढ़ती मांग ने इसे पुनर्जीवित कर दिया है। आज, हस्तनिर्मित उत्पादों की वैश्विक लोकप्रियता के चलते, गुजरात के टंगालिया कारीगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान प्राप्त कर रहे हैं। इस पुनरुत्थान के प्रमुख सूत्रधार लवजीभाई परमार हैं, जो पारंपरिक टंगालिया बुनाई के विशेषज्ञ हैं। भारत सरकार ने उनके योगदान को मान्यता देते हुए उन्हें वर्ष 2025 में पद्मश्री से सम्मानित किया है।
लवजीभाई परमार पिछले चार दशकों से इस प्राचीन कला के संरक्षण और संवर्धन में जुटे हैं। उन्होंने एक कॉमन फैसिलिटी सेंटर स्थापित किया है, जहां युवा कारीगरों को प्रशिक्षण, तकनीकी सहायता और बाजार की पहुंच में मदद मिलती है। देशभर में प्रदर्शनियां आयोजित कर और विभिन्न विक्रेताओं के साथ मिलकर उन्होंने इस कला में नई ऊर्जा का संचार किया है। इसी कारण उन्हें 'टंगालियानो त्राणहार' यानी टंगालिया कला के संरक्षक के रूप में भी जाना जाता है।
टंगालिया कला की वैश्विक लोकप्रियता का एक उदाहरण सुरेंद्रनगर के कारीगर बलदेव मोहनभाई राठौड़ हैं। उन्होंने हॉलीवुड फिल्म 'एफ1' के लिए अभिनेता ब्रैड पिट द्वारा पहनी गई टंगालिया शर्ट बनाई थी। यह उपलब्धि गुजरात की इस प्राचीन कला को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाला महत्वपूर्ण क्षण बनी। प्रधानमंत्री के मार्गदर्शक मंत्र 'विकास भी, विरासत भी' को साकार करने में टंगालिया बुनाई की यह परंपरा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह गुजरात की सांस्कृतिक पहचान और सामुदायिक गौरव का एक मजबूत प्रतीक है।
आगामी वाइब्रेंट गुजरात रीजनल कॉन्फ्रेंस इस सहयोग को और आगे बढ़ाएगी। इसमें संयुक्त उद्यमों, कौशल विकास और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के नए अवसर मिलेंगे। कच्छ और सौराष्ट्र को विशेष महत्व देने से स्पष्ट होता है कि सरकार के लिए औद्योगिक विकास के साथ-साथ सामुदायिक सशक्तीकरण, कौशल उन्नयन और पारंपरिक आजीविकाओं का संरक्षण भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
यह सम्मेलन वैश्विक निवेशकों, स्थानीय उद्यमियों, कारीगरों और सांस्कृतिक प्रतिनिधियों को एक मंच पर लाएगा। यह आयोजन गुजरात की आर्थिक शक्ति और उसकी सांस्कृतिक जड़ों, दोनों का उत्सव बनेगा। इसका संदेश स्पष्ट होगा कि विकास तभी सार्थक है जब वह समुदायों को आगे बढ़ाए, विरासत को सुरक्षित रखे और लोगों में गर्व की भावना पैदा करे।