क्या यूजीसी इतिहास बनने जा रहा है? उच्च शिक्षा के लिए बनेगा विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान: जगदीश कुमार

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क्या यूजीसी इतिहास बनने जा रहा है? उच्च शिक्षा के लिए बनेगा विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान: जगदीश कुमार

सारांश

क्या यूजीसी अब इतिहास बनने जा रहा है? सरकार ने उच्च शिक्षा में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया है, जिससे सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए एक समान नियामक ढांचा तैयार किया जाएगा। जानिए इस ऐतिहासिक पहल के बारे में और इसका उच्च शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

Key Takeaways

  • यूजीसी का स्थान विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान लेगा।
  • उच्च शिक्षा में एकीकृत नियमन लाने का प्रयास।
  • आईआईटी और आईआईएम भी होंगे इस नए तंत्र के अंतर्गत।
  • छात्रों की शिकायतों के लिए अनिवार्य निवारण प्रणाली।
  • पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सभी जानकारी डिजिटल रूप में उपलब्ध।

नई दिल्ली, 18 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। देश की उच्च शिक्षा में ऐतिहासिक परिवर्तनों की ओर सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), जिसकी स्थापना 1953 में हुई थी और 1956 में इसे एक वैधानिक निकाय के रूप में मान्यता मिली, अब इतिहास की किताबों में दर्ज किया जाएगा। इसके स्थान पर विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान (वीबीएसए) की स्थापना होगी, जो सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों का एकीकृत नियामक बनेगा।

विकसित भारत शिक्षा विनियम परिषद नियामक की भूमिका निभाएगी। विकसित भारत शिक्षा गुणवत्ता परिषद मान्यता और प्रत्यायन से जुड़े कार्यों का संचालन करेगी, जबकि विकसित भारत शिक्षा मानक परिषद शैक्षणिक मानकों को निर्धारित करेगी।

सरकार ने उच्च शिक्षा के नियमन में एकीकरण लाने का निश्चय किया है। इसके तहत यूजीसी, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) का विलय कर विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान (वीबीएसए) स्थापित किया जाएगा। यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप है।

वीबीएसए के लागू होते ही आईआईटी और आईआईएम जैसे प्रमुख संस्थानों को भी इस दायरे में लाया जाएगा, जो पहले यूजीसी या एआईसीटीई के अधीन नहीं थे। इसका तात्पर्य है कि देश की सभी उच्च शिक्षा संस्थाओं को एक समान नियामक और गुणवत्ता मानक प्रदान किया जाएगा।

पूर्व यूजीसी अध्यक्ष जगदीश कुमार ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि भारत का हायर एजुकेशन सेक्टर इस समय तेजी से विकसित हो रहा है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में देश में 1200 से अधिक विश्वविद्यालय और लगभग 1500 कॉलेज हैं। इतनी बड़ी व्यवस्था को चलाने के लिए पुराने नियामक तरीके अब काम नहीं कर रहे हैं। इसी कारण नई शिक्षा नीति 2020 में स्पष्ट रूप से कहा गया कि भारतीय उच्च शिक्षा के नियामक तंत्र में व्यापक बदलाव आवश्यक है।

जगदीश कुमार ने साझा किया कि वर्तमान में हमारे देश में चार प्रमुख नियामक हैं—यूजीसी, एआईसीटीई, एनसीटीई, और काउंसिल ऑफ आर्किटेक्चर। यदि किसी विश्वविद्यालय में विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रम चल रहे हों, जैसे सामान्य डिग्री (बीएससी, बीकॉम), इंजीनियरिंग, शिक्षक प्रशिक्षण (बीएड), और आर्किटेक्चर, तो उस एक ही संस्थान को चार अलग-अलग नियामकों के पास जाना पड़ता है। इससे संस्थानों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

उन्होंने कहा कि समस्या केवल इतनी ही नहीं है, बल्कि कई बार इन नियामकों के नियमों में टकराव भी होता है। कुछ स्थानों पर नियम ओवरलैप करते हैं और कुछ जगह एक-दूसरे के विपरीत होते हैं। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए एनईपी 2020 में यह सुझाव दिया गया कि देश में एक एकल, समन्वित नियामक तंत्र होना चाहिए, जो सरल और कम बायरोक्रेटिक हो।

इसी सोच के साथ सरकार ने वीबीएसए बिल को पेश किया है। यह बिल पहले जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी में जाएगा, वहां चर्चा होगी और उसके बाद संसद में पास होने पर इसे लागू किया जाएगा। इसके बाद एक एपेक्स बॉडी बनाई जाएगी, जिसे डेवलप्ड इंडिया एजुकेशन एजेंसी कहा जाएगा। इसके तहत तीन अलग-अलग वर्टिकल बनाए जाएंगे।

पहला होगा रेगुलेटरी काउंसिल। इसमें यूजीसी, एआईसीटीई, एनसीटीई और काउंसिल ऑफ आर्किटेक्चर की सभी नियामक शक्तियों को एकत्र किया जाएगा। इसका लाभ यह होगा कि नियामक से जुड़े सभी टकराव और भ्रम समाप्त होंगे और सभी संस्थानों के लिए स्पष्ट नियम बनाए जा सकेंगे।

दूसरा वर्टिकल होगा एक्रेडिटेशन काउंसिल। वर्तमान में एक्रेडिटेशन और रैंकिंग के लिए अलग-अलग सिस्टम हैं। वीबीएसए के तहत इन्हें एक ही वर्टिकल में लाया जाएगा, ताकि संस्थानों को विभिन्न स्थानों पर डेटा न देना पड़े और प्रक्रिया सरल हो जाए।

तीसरा वर्टिकल होगा स्टैंडर्ड्स काउंसिल। आज शिक्षा में विभिन्न विषयों के अलग-अलग मानक हैं। यदि कोई छात्र मल्टीडिसिप्लिनरी एजुकेशन लेना चाहता है या एक राज्य से दूसरे राज्य में जाकर पढ़ना चाहता है, तो उसे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। स्टैंडर्ड्स काउंसिल का कार्य होगा पूरे देश में शिक्षा के लिए समान और स्पष्ट मानक निर्धारित करना।

जगदीश कुमार ने बताया कि शिक्षक हमारे शिक्षा तंत्र का अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, इसलिए स्टैंडर्ड्स काउंसिल शिक्षकों के लिए नए प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार करेगी और आधुनिक शिक्षण व अधिगम विधियों को बढ़ावा देगी। तीन अलग-अलग वर्टिकल होने के कारण काउंसिलों के बीच हितों का टकराव नहीं होगा, लेकिन ये सभी एपेक्स बॉडी के माध्यम से एक साथ मिलकर कार्य करेंगी।

छात्रों के बारे में जगदीश कुमार ने कहा कि वीबीएसए में छात्रों के हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। हर संस्थान को अनिवार्य रूप से एक छात्र शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित करनी होगी। आज के समय में छात्र काफी तनाव और चिंता में रहते हैं, इसलिए उनकी शिकायतों का समय पर समाधान बहुत आवश्यक है।

इसके अतिरिक्त, छात्रों का फीडबैक भी बहुत महत्वपूर्ण होगा। पाठ्यक्रम, शिक्षक, बुनियादी ढांचा और छात्र कल्याण योजनाओं पर छात्रों की राय को मान्यता और रैंकिंग में शामिल किया जाएगा।

सर्वाधिक महत्वपूर्ण बदलाव पारदर्शिता को लेकर होगा। अब सभी संस्थानों को अपनी पूरी जानकारी एक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सार्वजनिक करनी होगी। कौन से पाठ्यक्रम चल रहे हैं, बुनियादी ढांचा कैसा है, छात्र कल्याण कार्यक्रम क्या हैं, शिक्षकों की योग्यताएँ क्या हैं, और सबसे महत्वपूर्ण, संस्थान के ऑडिट किए गए वित्तीय खाते। इससे छात्र, माता-पिता और आम जनता सभी जानकारी देख सकेंगे और संस्थान अधिक जिम्मेदार बन सकेंगे।

Point of View

क्योंकि यह उच्च शिक्षा में पारदर्शिता और एकीकृत नियमन सुनिश्चित करेगा। शिक्षकों और छात्रों के हितों को प्राथमिकता देने वाली नीतियों से शिक्षा प्रणाली में सुधार की उम्मीद है।
NationPress
18/12/2025

Frequently Asked Questions

यूजीसी का क्या होगा?
यूजीसी अब इतिहास बन जाएगा और इसके स्थान पर विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान (वीबीएसए) का गठन होगा।
वीबीएसए का उद्देश्य क्या है?
वीबीएसए का उद्देश्य सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों का एकीकृत नियामक बनाना है।
क्या आईआईटी और आईआईएम भी वीबीएसए के अधीन आएंगे?
जी हाँ, वीबीएसए के लागू होने के बाद आईआईटी और आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थान भी इसके दायरे में आएंगे।
छात्रों के हितों को कैसे सुरक्षित किया जाएगा?
हर संस्थान को एक छात्र शिकायत निवारण प्रणाली स्थापित करनी होगी और छात्रों के फीडबैक को मान्यता और रैंकिंग में शामिल किया जाएगा।
पारदर्शिता का क्या महत्व है?
पारदर्शिता का महत्व यह है कि सभी संस्थानों को अपनी जानकारी एक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सार्वजनिक करनी होगी, जिससे छात्र और माता-पिता आसानी से जानकारी प्राप्त कर सकें।
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