क्या बिहार के उलार सूर्य मंदिर में छठ महापर्व पर भक्तों की भीड़ देखी गई?
सारांश
Key Takeaways
- उलार सूर्य मंदिर बिहार के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है।
- यहाँ सूर्य उपासना का विशेष महत्व है।
- छठ महापर्व पर भक्तों की भारी संख्या देखने को मिलती है।
- मंदिर की मिट्टी और पानी में औषधीय गुण हैं।
- यह मंदिर बिहार की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
पालीगंज, 26 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। पूरे देश में लोक आस्था के महापर्व छठ की रौनक देखने को मिल रही है। देश के सभी 12 प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है।
बिहार के दुल्हिनबाजार प्रखंड में स्थित उलार सूर्य मंदिर में छठ के अवसर पर श्रद्धालुओं की भारी संख्या मंदिर पहुंची है और सूर्य भगवान की आराधना कर रहे हैं।
यह मंदिर बिहार का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है और इसे देश के 12 प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है। यह ऐतिहासिक मंदिर दुल्हिनबाजार मुख्यालय से लगभग पांच किलोमीटर दक्षिण में राज्य की मुख्य सड़क पर स्थित है। इस अवसर पर प्रशासन ने मन को मोह लेने वाली तैयारियां की हैं, जैसे कि मेडिकल कैंप, सुरक्षा बलों की तैनाती, और जल निकासी के लिए उचित व्यवस्था। भक्त अपनी मनोकामना लेकर मंदिर पहुंच रहे हैं।
छठ के इस पावन अवसर पर भक्तों को मंदिर में बने कुंड में स्नान करते हुए भी देखा गया है। संध्याकाल में अर्घ्य को लेकर घाटों पर भक्त पहले से ही एकत्रित हो रहे हैं। मंदिर के महंत अवध बिहार दास ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में बताया कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को ऋषि-मुनियों के श्राप के कारण कुष्ठ रोग हो गया था। जब उन्होंने देवताओं से उपचार का उपाय पूछा तो देवताओं ने उन्हें सूर्य उपासना करने की सलाह दी। साम्ब ने उलार सरोवर में सवा महीने तक स्नान कर भगवान सूर्य की कठोर तपस्या की।
महंत ने बताया, "उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान भास्कर ने उन्हें दर्शन दिए और कुष्ठ रोग से मुक्ति प्रदान की।"
एक भक्त ने बताया कि उन्हें इसी मंदिर से संतान सुख की प्राप्ति हुई थी और इस बार वह दोबारा छठ मनाने के लिए आए हैं।
उलार सूर्य मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक विरासत का गौरवपूर्ण प्रतीक भी है। यहां की आस्था, इतिहास और लोक परंपरा इसे अद्वितीय बनाती हैं। माना जाता है कि यहां की मिट्टी और पानी में औषधीय गुण हैं, जो भी कुंड में स्नान करता है, उसे त्वचा संबंधी रोगों से मुक्ति मिलती है। इसी मान्यता के कारण लोग दूर-दूर से त्वचा संबंधी रोगों के इलाज के लिए मंदिर में आते हैं।