क्या उत्तर प्रदेश में ग्रामीण आजीविका मिशन से समूह की महिलाएं आकर्षक राखियां बनाकर सशक्त हो रही हैं?

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क्या उत्तर प्रदेश में ग्रामीण आजीविका मिशन से समूह की महिलाएं आकर्षक राखियां बनाकर सशक्त हो रही हैं?

सारांश

उत्तर प्रदेश के जौनपुर में स्वयं सहायता समूह की महिलाएं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत आकर्षक राखियां बनाकर आत्मनिर्भरता की नई मिसाल पेश कर रही हैं। इस रक्षाबंधन पर स्वदेशी राखियों को बढ़ावा देकर वे न केवल आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं, बल्कि अपने गांव के विकास में भी योगदान दे रही हैं।

Key Takeaways

  • स्वयं सहायता समूह की महिलाएं आकर्षक राखियां बना रही हैं।
  • राखियों की कीमत 10 से 30 रुपये तक है।
  • सभी राखियां स्वदेशी हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में बनती हैं।
  • महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं।
  • राखियां सैनिकों को भेजी जा रही हैं।

जौनपुर, 8 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। केंद्र सरकार ने कई जनकल्याणकारी योजनाएं लागू की हैं, जिनमें से एक है राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम)। उत्तर प्रदेश के जौनपुर में स्वयं सहायता समूह की महिलाएं प्रभावशाली राखियां बनाकर सशक्त, आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से मजबूत हो रही हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर, सरकार की सहायता से स्वदेशी को अपनाने की दिशा में स्वयं सहायता समूह की महिलाएं आगे बढ़ रही हैं। इस रक्षाबंधन पर भाइयों की कलाई पर विदेशी राखियों के बजाय, ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं द्वारा निर्मित रंग-बिरंगी राखियां सजेगी।

आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए एनआरएलएम ने समूह की महिलाओं को राखी बनाने का प्रशिक्षण दिया है। इन राखियों को बाजार में उपलब्ध कराने की प्रक्रिया भी आरंभ कर दी गई है।

उपायुक्त स्व-रोजगार जितेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि रक्षाबंधन और स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर, जिलाधिकारी और मुख्य विकास अधिकारी के निर्देशन में स्वदेशी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से तिरंगा थीम पर राखियां बनाई जा रही हैं। समूह की महिलाओं द्वारा बड़े पैमाने पर स्वदेशी राखियों का उत्पादन किया जा रहा है। अलग-अलग कीमत की आकर्षक राखियां 10 रुपये से लेकर 30 रुपये तक बनाई जा रही हैं। बाजार में इनकी बहुत मांग है। कई महिलाओं को पहले से ही राखी बनाने के लिए प्रशिक्षित किया गया था।

उन्होंने कहा कि इच्छुक महिलाओं को एनआरएलएम की ओर से बाजार भी उपलब्ध कराया जाएगा। उनका आह्वान है कि सभी लोग देशी राखियां ही खरीदें। स्वयं सहायता समूह द्वारा निर्मित एक हजार स्वदेशी राखियों को देश के सैनिकों को भेजा गया है।

स्वयं सहायता समूह की सदस्य सरोज सिंह ने बताया कि स्वरोजगार के लिए हम सभी महिलाओं ने समूह बनाया है, जिसमें 120 महिलाएं शामिल हैं। रक्षाबंधन के पर्व पर, हम सभी राखी बनाने का कार्य कर रहे हैं, इसे बाजार में बेचा जा रहा है और प्राप्त रुपये सभी में बाँट लिए जाएंगे। इसके साथ ही डेढ़ हजार राखियां बॉर्डर पर अपने सैनिक भाइयों के लिए भी भेजी गई हैं।

रक्षाबंधन पर बाजार में चीन की बनी राखियों की भरमार रहती है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वदेशी अपनाने का आह्वान किया है। स्वदेश में निर्मित राखियों की खरीद से मेक इन इंडिया को बल मिलेगा, वहीं जरूरतमंद महिलाओं की आर्थिक जरूरतें भी पूरी होंगी।

Point of View

यह पहल न केवल महिलाओं के लिए स्वरोजगार का एक साधन बन रही है, बल्कि यह समग्र विकास में भी योगदान दे रही है। ऐसे प्रयास से न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है, बल्कि यह समाज में महिलाओं की स्थिति को भी सुधारने का एक महत्वपूर्ण कदम है।
NationPress
08/08/2025

Frequently Asked Questions

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन क्या है?
यह एक केंद्रीय योजना है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को सशक्त बनाना और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना है।
इन राखियों की कीमत क्या है?
राखियों की कीमत 10 रुपये से लेकर 30 रुपये तक होती है।
क्या ये राखियां केवल जौनपुर में बन रही हैं?
जी नहीं, यह योजना पूरे उत्तर प्रदेश में लागू की जा रही है।
क्या ये राखियां सैनिकों को भेजी जा रही हैं?
हां, स्वयं सहायता समूह द्वारा निर्मित राखियों को सैनिकों को भेजा जा रहा है।
स्वदेशी राखियों को खरीदने का क्या महत्व है?
स्वदेशी राखियों की खरीद से मेक इन इंडिया को बढ़ावा मिलता है और स्थानीय महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।