क्या उत्तराखंड में चमोली की महिलाएं आजीविका मिशन से सशक्त हो रही हैं?
सारांश
Key Takeaways
- महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं।
- सरकारी योजनाएं उनके लिए वरदान साबित हो रही हैं।
- पारंपरिक उत्पादों से अच्छी कमाई हो रही है।
- महिला समूहों के माध्यम से शिक्षा और प्रशिक्षण मिल रहा है।
- परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है।
चमोली, 5 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाएं सरकार द्वारा संचालित जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाकर अपनी आजीविका को न केवल चला रही हैं, बल्कि वे अच्छा खासा मुनाफा भी कमा रही हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ है।
उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली की महिलाएं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएमएल) के अंतर्गत सरकार द्वारा संचालित योजनाओं का लाभ उठाकर आत्मनिर्भर बन रही हैं। समूह की महिलाएं पहाड़ी उत्पादों को बेचकर हजारों की कमाई कर रही हैं और पारंपरिक मिष्ठानों जैसे कि अरसे और रोटने के माध्यम से भी अच्छी कमाई कर रही हैं। आम जनता हाथों-हाथ इन उत्पादों को खरीद रही है और महिलाओं की प्रशंसा भी हो रही है।
महिलाओं का कहना है कि यह सरकारी योजनाएं उनके लिए वरदान साबित हुई हैं। महिला स्वयं सहायता समूह के माध्यम से वे आज अच्छी कमाई कर रही हैं और उनके परिवार की आर्थिक स्थिति भी सुधरी है।
लाभार्थी कांता रावत बताती हैं कि राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत वे आउटलेट के माध्यम से पहाड़ी उत्पादों का विपणन कर रही हैं और साथ ही अच्छा मुनाफा भी कमा रही हैं। इस काम में उनके पति भी उनका सहयोग कर रहे हैं। पहाड़ी उत्पादों को लोग हाथों-हाथ ले रहे हैं।
कांता रावत ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि मैं नंदादेवी समूह से तीन साल से जुड़ी हूं और एनआरएमएल चला रही हूं। गांव से उत्पाद लाकर उसकी सफाई करके पैकिंग की जाती है और कई उत्पाद खुद बनाती हूं। उन्होंने कहा कि सरकार महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयास कर रही है। पहले समूह न होने के कारण महिलाएं जागरूक नहीं थीं। जब गांव में महिला समूह बने हैं, तो वे आजीविका चलाने के लिए प्रशिक्षण ले रही हैं। सिलाई-बुनाई और डेयरी क्षेत्र में महिलाएं काम कर रही हैं। इन योजनाओं के लिए मैं सरकार का आभार व्यक्त करती हूं।
लाभार्थी के पति महिपाल सिंह रावत ने बताया कि पहले वे देहरादून में निजी क्षेत्र में नौकरी करते थे। घर से दूर रहने पर कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता था। परिजनों ने सुझाव दिया कि घर पर रहकर महिला समूह की दुकान चलाएँ। इसके बाद वे घर आ गए और समूह से जुड़कर परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं।