क्या उत्तराखंड में पं. गोविंद बल्लभ पंत की 138वीं जयंती का जश्न मनाया गया?

सारांश
Key Takeaways
- पंडित गोविंद बल्लभ पंत का योगदान स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण था।
- वे उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रहे।
- उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
- उनके कार्यों ने समाज सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उन्हें याद करना और उनके मार्ग पर चलना आज की आवश्यकता है।
हल्द्वानी, 10 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री और भारत रत्न से सम्मानित पंडित गोविंद बल्लभ पंत की 138वीं जयंती पूरे उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में धूमधाम से मनाई जा रही है। हल्द्वानी के तिकोनिया स्थित पंत पार्क में भी एक विशेष कार्यक्रम आयोजित हुआ।
पंडित गोविंद बल्लभ पंत की जयंती के अवसर पर विभिन्न स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए, साथ ही उनकी प्रतिमाओं पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। हल्द्वानी में आयोजित मुख्य समारोह में महापौर गजराज बिष्ट ने उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।
इस मौके पर विभिन्न जनप्रतिनिधि, समिति के अधिकारी और बड़ी संख्या में स्थानीय निवासी उपस्थित थे। कार्यक्रम में स्कूली बच्चों ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दीं, जिसमें गोविंद बल्लभ पंत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान, कुली बेगार प्रथा के खिलाफ संघर्ष और जमींदारी उन्मूलन जैसी ऐतिहासिक उपलब्धियों को याद किया गया। समारोह में उपस्थित लोगों ने बताया कि गोविंद बल्लभ पंत न केवल एक कुशल प्रशासक थे, बल्कि देशभक्त और समाज सुधारक के रूप में भी विख्यात रहे। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन से लेकर संविधान निर्माण तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
महापौर गजराज बिष्ट ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा, "आज के युवाओं को पंडित गोविंद बल्लभ पंत के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि वे उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के खूंट गांव में जन्मे थे। स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान और कुशल राजनीतिज्ञ होने के नाते उन्हें भारत रत्न से नवाजा गया। हमें उनके मार्ग पर चलते हुए समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण में योगदान देना चाहिए।"
गौरतलब है कि पंडित गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 10 सितंबर 1887 को अल्मोड़ा के खूंट गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका रही और वे संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) के पहले मुख्यमंत्री बने। स्वतंत्र भारत में, वे 1955 से 1961 तक गृह मंत्री रहे और इस दौरान उन्होंने भाषाई राज्यों का पुनर्गठन, हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिलाने और जमींदारी प्रथा उन्मूलन जैसे क्रांतिकारी कदम उठाए। 1957 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनका निधन 7 मार्च 1961 को हुआ।