क्या वासुदेव पेरुमल मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी?
सारांश
Key Takeaways
- वासुदेव पेरुमल मंदिर का ऐतिहासिक महत्व है।
- भगवान विष्णु की मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी।
- मंदिर का पुनर्निर्माण 1988 में हुआ।
- यह मंदिर दक्षिण भारत के धार्मिकता का प्रतीक है।
- मंदिर की पूजा विधि-विधान से की जाती है।
नई दिल्ली, 30 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। दक्षिण भारत की भूमि को आध्यात्मिकता और इतिहास का गवाह माना जाता है, क्योंकि पूरे भारत में इतने हिंदू मंदिर नहीं हैं, जितने केवल दक्षिण भारत में हैं। हर मंदिर की अपनी एक अनोखी कहानी होती है। इसी कड़ी में मंदासा का वासुदेव पेरुमल मंदिर भी शामिल है, जो अपने ऐतिहासिक महत्व और निर्माण के कारण भक्तों के लिए आस्था का एक प्रमुख केंद्र बन गया है।
आंध्र प्रदेश और ओडिशा की सीमा के निकट, श्रीकाकुलम जिले के मंदासा गांव में स्थित इस मंदिर का गौरव और इतिहास कई बार पुनर्निर्माण के माध्यम से संरक्षित किया गया है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जहाँ भक्त अपनी मनोकामनाएँ लेकर आते हैं। माना जाता है कि यहाँ विराजमान भगवान विष्णु की मूर्ति सबसे प्राचीन और स्वयं प्रकट हुई थी। इसलिए यहाँ की आस्था अन्य मंदिरों की तुलना में अधिक है। मंदिर में भगवान नारायण अपनी पत्नी के साथ विराजमान हैं।
यह माना जाता है कि नारायण का यह स्वरूप दोषों से रहित और करुणा के सागर का प्रतीक है। मंदिर के निर्माण का समय 1744 ई. है, जिसे श्री हरि हर राजमणि ने अपने राज में स्थापित कराया था। पहले यह मंदिर राजा और मंदासा के शासकों के लिए पूजनीय था, किंतु समय के साथ संसाधनों की कमी के कारण यहाँ पूजा अर्चना में कठिनाई होने लगी।
साल 1988 में, मंदिर और भक्तों की आस्था को पुनर्जीवित करने के लिए धार्मिक गुरु श्री चिन्ना श्रीमन्नारायण रामानुज जीयर स्वामी जी आए और मंदिर की स्थिति देखकर चिंतित हो गए। उन्होंने हिंदू धर्म को संरक्षित करने और भगवान नारायण की पूजा को पुनः प्रारंभ करने के लिए मंदिर का पुनर्निर्माण आरंभ किया।
2005 में, मंदिर को पुनर्जीवित किया गया और विधि-विधान के साथ पूजा का श्रीगणेश हुआ। यह मंदिर धार्मिक गुरु के लिए विशेष था क्योंकि यहीं से उनके गुरु पेद्दा जीयर स्वामी जी ने शिक्षा ग्रहण की थी। उन्होंने मंदिर के पुनर्निर्माण के बाद अपने गुरु के सम्मान में समारोह का आयोजन भी किया था।