क्या विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 'समहिता सम्मेलन' का उद्घाटन किया?

सारांश
Key Takeaways
- दक्षिण एशिया की पांडुलिपि परंपराओं का महत्व
- आत्मनिर्भरता का व्यापक अर्थ
- भारत का बौद्धिक और सांस्कृतिक नेतृत्व
- नालंदा विश्वविद्यालय का ऐतिहासिक संदर्भ
- विदेश मंत्री का उद्घाटन भाषण महत्वपूर्ण था
नई दिल्ली, 4 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने गुरुवार को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आयोजित 'समहिता' सम्मेलन (दक्षिण एशिया की पांडुलिपि परंपराएं और गणितीय योगदान) का उद्घाटन किया। इस विशेष अवसर पर उन्होंने दक्षिण एशिया की पांडुलिपि परंपराओं और गणितीय योगदान की महत्ता को उजागर किया और भारत के बौद्धिक इतिहास को वर्तमान और भविष्य से जोड़ते हुए कई महत्वपूर्ण बातें साझा की।
जयशंकर ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि जैसे-जैसे भारत दुनिया के साथ अपने संबंधों को और मजबूत कर रहा है, वैसे-वैसे यह आवश्यक हो गया है कि हम 'आत्मनिर्भरता' की दिशा में तेजी से आगे बढ़ें।
उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भरता केवल आर्थिक क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका गहरा संबंध राष्ट्रीय आत्मविश्वास और बौद्धिक नेतृत्व से भी है।
उन्होंने कहा, "हमारे अतीत की समझ और पहचान हमें यह तय करने में मदद करती है कि हम भविष्य में क्या बनेंगे, इसलिए यह जानना कि हम कौन थे और आज क्या हैं, बहुत महत्वपूर्ण है।"
जयशंकर ने कहा, "हमारे समाज पर, कुछ मायनों में, हमारी सीमाओं के पार से हमला किया गया है और बौद्धिक लागत, मानवीय लागत की तो बात ही छोड़ दें, ये बहुत बड़ी रही है। नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने की घटना से अधिक स्पष्ट उदाहरण शायद कोई और नहीं हो सकता, जिसके निशान आज भी कई क्षेत्रों में दिखाई देते हैं।"
जयशंकर ने इस बात पर जोर दिया कि जैसे-जैसे भारत दुनिया के साथ जुड़ाव की प्रक्रिया को तेज कर रहा है, वैसे-वैसे और अधिक 'आत्मनिर्भरता' के लिए एक मजबूत तर्क सामने आ रहा है, जो राष्ट्रीय आत्मविश्वास की नींव पर भी टिका है। उनका कहना है कि हम कौन थे और हम क्या हैं, यही तय करेगा कि हम क्या बनेंगे।
भारत केवल एक आधुनिक तकनीकी शक्ति के रूप में नहीं, बल्कि एक बौद्धिक और सांस्कृतिक नेतृत्वकर्ता के रूप में भी उभर रहा है।
इस सम्मेलन में देश-विदेश के कई विद्वान, शोधकर्ता और छात्र शामिल हुए, जो दक्षिण एशिया की प्राचीन ज्ञान परंपराओं पर गहन चर्चा कर रहे हैं।