क्या विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी पर खास उपाय करने से सभी संकट दूर हो सकते हैं?

सारांश
Key Takeaways
- विघ्नराज संकष्टी व्रत 10 सितंबर को मनाया जाएगा।
- यह व्रत संकटों से मुक्ति का उपाय है।
- पुजित सामग्री में दूर्वा, लड्डू और लाल फूल शामिल हैं।
- मंत्रों का जाप करें और गाय को गुड़ खिलाना शुभ है।
- रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करें।
नई दिल्ली, 9 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को ‘विघ्नराज संकष्टी व्रत’ करने का सही समय है। इस दिन सूर्य सिंह राशि में रहेंगे और चंद्रमा शाम के 4 बजकर 3 मिनट तक मीन राशि में रहेंगे। इसके बाद मेष राशि में गोचर करेंगे।
पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 10 सितंबर को दोपहर 3 बजकर 37 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 11 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट पर होगा।
इस प्रकार, उदया तिथि के अनुसार, चतुर्थी का व्रत 10 सितंबर (बुधवार) को मनाया जाएगा।
‘संकष्टी’ शब्द का अर्थ ‘संकटों को हरने वाली’ होता है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा करने और व्रत रखने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं, समस्याएं, और कष्ट दूर हो जाते हैं।
माता-पिता अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह व्रत रखते हैं।
विघ्नराज संकष्टी व्रत की शुरुआत करने के लिए जातक ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करने के बाद पीले वस्त्र पहनकर पूजा स्थल को साफ करें।
इसके बाद भगवान गणेश की प्रतिमा के समक्ष दूर्वा, सिंदूर और लाल फूल अर्पित करने के बाद उन्हें बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डुओं का दान ब्राह्मणों को करें और 5 भगवान के चरणों में रखकर बाकी प्रसाद के रूप में वितरित करें।
पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, और संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। "ऊं गं गणपतये नमः" मंत्र का 108 बार जाप करें। शाम के समय गाय को हरी दूर्वा या गुड़ खिलाना शुभ माना जाता है।
संकटों से मुक्ति के लिए चतुर्थी की रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देते हुए 'सिंहिका गर्भसंभूते चन्द्रमांडल सम्भवे। अर्घ्यं गृहाण शंखेन मम दोषं विनाशय॥' मंत्र बोलकर जल अर्पित करें। यदि संभव हो तो संकष्टी का व्रत रखें, जिससे ग्रहबाधा और ऋण जैसे दोष शांत होते हैं।