क्या विवाह पंचमी पर माता सीता और प्रभु श्री राम की पूजा से दाम्पत्य सुख प्राप्त होता है?
सारांश
Key Takeaways
- विवाह पंचमी पर राम-सीता का विवाह हुआ था।
- इस दिन पूजा करने से दांपत्य सुख की प्राप्ति होती है।
- अविवाहित कन्याएं भी इस दिन व्रत करती हैं।
- पूजा विधि सरल है, जिसमें ध्यान और भोग का महत्व है।
- भव्य शोभायात्राएं इस दिन का विशेष आकर्षण हैं।
नई दिल्ली, 24 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी, जिसे विवाह पंचमी कहा जाता है, इस बार 25 नवंबर, मंगलवार को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी पवित्र तिथि को त्रेतायुग में भगवान श्रीराम और माता सीता का विवाह संपन्न हुआ था।
इस दिन राम-सीता की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में सुख और अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। विवाह पंचमी का व्रत विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए फलदायी माना जाता है जो दांपत्य सुख, पति की दीर्घायु और सौभाग्य की कामना करती हैं। अविवाहित कन्याएं भी इस व्रत को अपने मनचाहे वर को पाने के लिए करती हैं।
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि इस दिन राम-सीता के मिलन का स्मरण करने से घर में सुख-सौभाग्य की वृद्धि होती है। दृक पंचांग के अनुसार, विवाह पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त 24 नवंबर को रात्रि 9:22 बजे से प्रारंभ होगा और 25 नवंबर को रात 10:56 बजे तक रहेगा।
25 नवंबर को पूरे दिन विवाह पंचमी का व्रत और पूजन किया जा सकता है। भगवान राम की पूजा की विधि भी सरल है। सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
घर के मंदिर में भगवान राम और माता सीता की प्रतिमा के सामने ध्यान लगाएं। केले के पत्ते का मंडप बनाएं। माता सीता को लाल चुनरी, फूल-माला, सिंदूर, अक्षत चढ़ाएं और भगवान राम को चंदन, पीला वस्त्र, इत्र अर्पित करें। इसके बाद घी का दीपक और धूपबत्ती जलाएं। मिठाई और खीर का भोग लगाएं। राम-सीता विवाह की कथा पढ़ें या सुनें।
विधि-विधान से पूजन करने के बाद ओम जानकीवल्लभाय नमः मंत्र का जप करें। इसके बाद आरती कर प्रसाद बांटे। विवाह पंचमी के दिन भजन अवश्य करें।
इस दिन नवविवाहित जोड़े विशेष रूप से पूजन करते हैं। कई स्थानों पर भव्य शोभायात्राएं और राम-सीता विवाह महोत्सव का आयोजन भी होता है।