क्या तपन राय चौधरी ने आर्थिक इतिहास को दिलों की धड़कनों से जोड़ा?

Click to start listening
क्या तपन राय चौधरी ने आर्थिक इतिहास को दिलों की धड़कनों से जोड़ा?

सारांश

तपन राय चौधरी की कहानी केवल एक इतिहासकार की नहीं, बल्कि एक ऐसे समय-यात्री की है जिसने आर्थिक इतिहास को दिलों की धड़कनों से जोड़ा। उनकी बौद्धिक यात्रा, विभाजन का दर्द, और 'यूरोप रिकन्सीडर्ड' जैसी महत्वपूर्ण कृतियों ने भारतीय समाज और संस्कृति के मनोविज्ञान को उजागर किया।

Key Takeaways

  • तपन राय चौधरी ने इतिहास में मनोविज्ञान का समावेश किया।
  • उन्होंने 'भारत छोड़ो आंदोलन' में सक्रिय भागीदारी की।
  • उनकी कृति 'यूरोप रिकन्सीडर्ड' ने भारतीय संस्कृति का नया आयाम प्रस्तुत किया।
  • वे पद्म भूषण और राष्ट्रीय अनुसंधान प्रोफसर जैसे सम्मान प्राप्त कर चुके थे।
  • उनका जीवन एक बौद्धिक पुल के रूप में कार्य करता है।

दिल्ली, 25 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। तपन राय चौधरी केवल एक इतिहासकार नहीं थे, बल्कि वे एक समय-यात्री थे। कभी वे मुगल दरबारों के बही-खातों का मुआयना करते, तो कभी 19वीं सदी के बंगाल के किसी मध्यमवर्गीय परिवार के ड्राइंग रूम में बैठकर उनकी प्रेम और पीड़ा की बातें सुनते।

8 मई 1926 को अविभाजित बंगाल के बरिसल जिले में जन्मे तपन राय चौधरी का बचपन केवल रबींद्र संगीत की धुनों तक सीमित नहीं था। 1940 का दशक भारत में उथल-पुथल का दौर था और युवा तपन का खून भी खौल रहा था।

महज किताबों में खोए रहने वाले विद्यार्थी बनने के बजाय, उन्होंने 'भारत छोड़ो आंदोलन' में कूदने का निर्णय लिया। इतिहासकार बनने से पहले ही वे इतिहास का हिस्सा बन चुके थे। उन्होंने अपने संस्मरणों में विभाजन की त्रासदी का जिक्र किया, जिसने उनके परिवार को तोड़ दिया था। यही वह दौर था जिसने उन्हें सिखाया कि इतिहास केवल लिखे हुए दस्तावेजों में नहीं, बल्कि उन खामोशियों में भी छिपा होता है जो इंसान अपने सीने में दफन कर लेता है।

तपन राय चौधरी की बौद्धिक भूख उन्हें दो अलग-अलग दुनियाओं में ले गई। पहले उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में दिग्गज इतिहासकार सर यदुनाथ सरकार के सानिध्य में अपनी पहली डी.फिल. पूरी की। यहां उन्होंने सीखा कि पुराने दस्तावेजों की धूल कैसे झाड़ी जाती है और तथ्यों को कैसे निचोड़ा जाता है।

लेकिन उनकी यात्रा अभी अधूरी थी। वे ऑक्सफोर्ड के बैलियोल कॉलेज पहुंचे, जहां उन्होंने अपनी दूसरी डी.फिल. हासिल की। इसी कारण वे दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और बाद में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगे। उन्होंने ऑक्सफोर्ड की कठोरता को भारतीय बहसों में और भारतीय इतिहास की गहराई को पश्चिमी कक्षाओं में लाने का कार्य किया।

तपन राय चौधरी के करियर का सबसे दिलचस्प मोड़ तब आया जब उन्होंने 'रुपए-पैसों' के इतिहास से 'दिल और दिमाग के इतिहास' की ओर रुख किया।

अपने करियर के मध्य में, उन्होंने इरफान हबीब जैसे मार्क्सवादी इतिहासकार के साथ मिलकर 'द कैम्ब्रिज इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ इंडिया' का संपादन किया। यह एक ऐसा ग्रंथ था जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया।

1980 के दशक में कुछ बदला। शायद बरिसल की यादें या विभाजन का दर्द उन्हें कचोट रहा था। उन्होंने महसूस किया कि इंसान केवल रोटी और व्यापार के लिए नहीं जीता। उसका अपना एक मानसिक संसार होता है, और यहीं से जन्म हुआ उनकी मास्टरपीस किताब 'यूरोप रिकन्सीडर्ड' का।

उन्होंने एक ऐसा सवाल पूछा जो उस समय कोई नहीं पूछ रहा था। जब 19वीं सदी के बंगाली बुद्धिजीवियों ने पहली बार अंग्रेजों को देखा, तो उन्हें कैसा महसूस हुआ? क्या वे केवल चकाचौंध थे? नहीं। तपन बाबू ने भूदेव मुखोपाध्याय, बंकिमचंद्र और विवेकानंद के लेखन को खंगाला और बताया कि यह रिश्ता 'प्रेम और घृणा', 'प्रशंसा और आलोचना' का एक जटिल मिश्रण था। उन्होंने इतिहास में 'मनोविज्ञान' का तड़का लगाया और बताया कि कैसे हमारे पूर्वज प्यार करते थे, कैसे डरते थे और कैसे अपनी रसोइयों और शयनकक्षों में अपनी संस्कृति को बचाए रखते थे।

नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन, जो उनके करीबी मित्र थे, अक्सर तपन की 'किस्सागोई' और उनके 'सेंस ऑफ ह्यूमर' की तारीफ करते थे। तपन राय चौधरी को खाना बनाने और खिलाने का बहुत शौक था।

2007 में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया और वर्ष 2010 में राष्ट्रीय अनुसंधान प्रोफसर का पद मिला।

26 नवंबर 2014 को 88 वर्ष की आयु में जब उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा, तो भारत और ब्रिटेन दोनों के अकादमिक गलियारों में एक सन्नाटा छा गया। यह सन्नाटा किसी सामान्य प्रोफेसर के जाने का नहीं था, बल्कि उस शख्स के जाने का था जो पूरब और पश्चिम के बीच एक बौद्धिक सेतु था।

Point of View

बल्कि उन्होंने वैश्विक स्तर पर भी भारतीय दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया। यह एक महत्वपूर्ण अवसर है, जब हम ऐसे विद्वानों को याद करते हैं जिन्होंने हमें इतिहास की नई परिभाषा दी।
NationPress
25/11/2025
Nation Press