क्या अकेलापन कैंसर मरीजों की मृत्यु दर को बढ़ा सकता है?

सारांश
Key Takeaways
- अकेलापन कैंसर से मृत्यु के खतरे को बढ़ा सकता है।
- सामाजिक अलगाव मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
- कैंसर के मरीजों को मानसिक और भावनात्मक समर्थन की आवश्यकता होती है।
- शोध में 15 लाख से अधिक मरीजों का डेटा शामिल था।
- अकेलापन और सामाजिक अलगाव के प्रभावों पर ध्यान देना आवश्यक है।
नई दिल्ली, 15 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। हाल के एक व्यापक अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ है कि अकेलापन और सामाजिक अलगाव कैंसर रोगियों के लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं। इस अध्ययन में यह बताया गया है कि अकेलेपन के कारण न केवल कैंसर से, बल्कि अन्य कारणों से भी मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
कनाडा की टोरंटो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन में 13 विभिन्न शोधों के डेटा का एकत्रण किया गया। इन शोधों में कुल 15 लाख से अधिक कैंसर रोगियों की जानकारी शामिल थी। शोधकर्ताओं ने पाया कि कैंसर से पीड़ित लोगों में अकेलापन एक सामान्य समस्या है।
शोध के परिणामों से यह भी सामने आया कि अकेलापन कैंसर से मृत्यु के खतरे को लगभग 11 प्रतिशत तक बढ़ा देता है। इस आंकड़े को निकालने के लिए शोधकर्ताओं ने कई अध्ययनों के आकार और संख्या को ध्यान में रखा।
ओपन-एक्सेस जर्नल बीएमजे ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित इस शोधपत्र में कहा गया है, 'अकेलापन और सामाजिक अलगाव का कैंसर पर प्रभाव केवल बीमारी के शारीरिक कारणों या उपचार के तरीकों से संबंधित नहीं है, बल्कि यह रोगियों की सेहत पर अलग तरीके से भी असर डालता है।'
अकेलेपन का प्रभाव कई कारणों से होता है। यह शरीर की प्रतिक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। अकेलापन तनाव को बढ़ाता है, जिससे शरीर की रोग-प्रतिरोधक प्रणाली कमजोर हो जाती है और सूजन जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं। ये सभी तत्व मिलकर बीमारी को और बढ़ा सकते हैं।
कैंसर के मरीज अक्सर मानसिक और भावनात्मक परेशानियों का सामना करते हैं। उपचार के दौरान शरीर में आने वाले परिवर्तनों, जैसे बालों का गिरना या चेहरे का बदलना, के कारण मरीज समाज से अलग-थलग महसूस करते हैं। ऐसे में उनका मनोबल गिरता है और वे खुद को अकेला पाते हैं।
कैंसर का उपचार कई बार लंबा होता है, जिसमें मरीज थकावट और मानसिक कमजोरी का सामना करते हैं। इससे उनकी सामाजिक गतिविधियों में भागीदारी कम हो जाती है और पुराने दोस्तों और रिश्तेदारों से दूरी बढ़ जाती है। अस्पताल जाना और उपचार की प्रक्रिया भी मरीज की दैनिक दिनचर्या को प्रभावित करती है, जिससे वे अपने पूर्व जीवन से कट जाते हैं।
शोधकर्ताओं ने इस स्थिति को गंभीर मानते हुए कहा है कि यदि भविष्य में अन्य शोध भी इस बात की पुष्टि करते हैं, तो कैंसर के उपचार के दौरान अकेलेपन और मानसिक स्थिति की जांच को आवश्यक माना जाएगा। इससे मरीजों को बेहतर जीवन जीने में मदद मिलेगी और उनकी बीमारी से लड़ने की क्षमता बढ़ेगी।