क्या दिल्ली और मुंबई में बढ़ रहे हैं कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैस के स्तर?

सारांश
Key Takeaways
- दिल्ली और मुंबई में ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बढ़ रहा है।
- दिल्ली का एक्यूआई पहले से ही खराब श्रेणी में है।
- अध्ययन में सैटेलाइट से मिले आंकड़ों का उपयोग किया गया।
- गैसों के स्तर में मौसमी और क्षेत्रीय भिन्नता है।
- नीति निर्माताओं के लिए यह अध्ययन उपयोगी हो सकता है।
नई दिल्ली, 14 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। दिल्ली और मुंबई जैसे प्रमुख महानगरों में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों का स्तर निरंतर बढ़ता जा रहा है। यह जानकारी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) बॉम्बे द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आई है।
यह अध्ययन उस समय प्रकाशित हुआ है जब दिल्ली में वायु गुणवत्ता पहले से ही खराब श्रेणी में पहुँच चुकी है और दिवाली के नज़दीक आते ही हालात और बिगड़ने की आशंका जताई जा रही है।
बुधवार को दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 201 दर्ज किया गया, जो कि 'खराब' श्रेणी में आता है। मंगलवार को यह आंकड़ा 211 था और अनुमान है कि शुक्रवार तक यह बढ़कर 346 तक पहुँच सकता है, जो कि 'बहुत खराब' श्रेणी मानी जाती है। वायु गुणवत्ता में यह गिरावट लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकती है, विशेषकर बच्चों, बुजुर्गों और सांस की बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए।
मुंबई में भी स्थिति कुछ अलग नहीं है। मानसून की वापसी के बाद मुंबई की वायु गुणवत्ता में गिरावट देखी गई है। पिछले सप्ताह शहर का औसत एक्यूआई 153 रहा, जो कि 'मध्यम' श्रेणी में आता है, लेकिन फिर भी यह प्रदूषित माना जाता है। यह आंकड़ा शहर के 30 में से 25 सतत निगरानी केंद्रों के डेटा पर आधारित है।
आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर मनोरंजन साहू और शोधकर्ता आदर्श अलगड़े ने इस अध्ययन का नेतृत्व किया। उन्होंने सैटेलाइट से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग करके दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैस के स्तर का विश्लेषण किया।
इसके लिए नासा के ऑर्बिटिंग कार्बन ऑब्जर्वेटरी-2 सैटेलाइट से कार्बन डाइऑक्साइड के आंकड़े और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के सेंटिनल-5पी सैटेलाइट से मीथेन के आंकड़े लिए गए।
इस अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ कि इन दोनों शहरों में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा केवल बढ़ नहीं रही है, बल्कि यह मौसमी और क्षेत्रीय रूप से भी भिन्न है। यानी किसी विशेष मौसम या स्थान पर गैसों का स्तर अधिक हो सकता है। उदाहरण के लिए, मीथेन के 'हॉटस्पॉट', यानी अधिक मात्रा वाले क्षेत्र, आमतौर पर उन जगहों पर पाए गए जहाँ कचरे के ढेर, सीवेज और अधिक औद्योगिक गतिविधियाँ थीं।
शोधकर्ताओं ने शहर-विशेष सांख्यिकीय मॉडल भी विकसित किए ताकि भविष्य में गैसों के स्तर का अनुमान लगाया जा सके। उन्होंने सीजनल ऑटोरेग्रेसिव इंटीग्रेटेड मूविंग एवरेज (सारिमा) नामक एक गणितीय मॉडल का उपयोग किया, जो समय के साथ बदलते आंकड़ों का विश्लेषण करता है।
शोधकर्ताओं ने पर्यावरण विज्ञान और प्रदूषण अनुसंधान पत्रिका में प्रकाशित शोधपत्र में कहा, ''सैटेलाइट से प्राप्त आंकड़े नीति निर्माताओं के लिए अत्यधिक उपयोगी हो सकते हैं। इससे यह पता लगाया जा सकता है कि किस क्षेत्र में अधिक प्रदूषण हो रहा है और वहां कैसे सुधार लाया जा सकता है। कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन दोनों गैसों की बढ़ती मात्रा जलवायु परिवर्तन की दिशा में गंभीर संकेत देती है और इस पर तात्कालिक ध्यान देना आवश्यक है।''
इस बीच, दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए केंद्र सरकार के अधीन वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (जीआरएुपी) के पहले चरण के तहत कुछ सख्त नियम लागू कर दिए हैं।