क्या भारतीय वैज्ञानिकों ने 'ऑन्कोमार्क' एआई फ्रेमवर्क के जरिए कैंसर को पढ़ने में सफलता हासिल की है?
सारांश
Key Takeaways
- ऑन्कोमार्क एआई फ्रेमवर्क कैंसर के मॉलिक्यूलर 'माइंड' को पढ़ सकता है।
- यह 14 प्रकार के कैंसर में 31 लाख सिंगल सेल्स का विश्लेषण करता है।
- इसकी सटीकता 99% से अधिक है।
- यह कैंसर के हॉलमार्क की पहचान में मदद करता है।
- इससे डॉक्टर बेहतर उपचार योजना बना सकते हैं।
नई दिल्ली, 26 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। एस एन बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज के शोधकर्ताओं ने एक अद्वितीय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) फ्रेमवर्क 'ऑन्कोमार्क' प्रस्तुत किया है, जो कैंसर के मॉलिक्यूलर “माइंड” को पढ़ने में सक्षम है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इस बारे में जानकारी दी।
मंत्रालय के अनुसार, “कैंसर केवल बढ़ते ट्यूमर की बीमारी नहीं है, बल्कि यह कुछ छिपे हुए बायोलॉजिकल प्रोग्राम पर निर्भर करता है, जिन्हें कैंसर के हॉलमार्क कहा जाता है। ये हॉलमार्क यह बताते हैं कि स्वस्थ कोशिकाएँ कैसे मैलिग्नेंट (घातक) बनती हैं और कैसे ये इम्यून सिस्टम को धोखा देकर इलाज से बच जाती हैं।”
दशकों से चिकित्सक अक्सर टीएनएम (ट्यूमर, नोड्स और मेटास्टेसिस) जैसे स्टेजिंग सिस्टम पर निर्भर करते रहे हैं, जो ट्यूमर के आकार और फैलने की गति को दर्शाते हैं। लेकिन, वे अक्सर गहरे मॉलिक्यूलर पहलुओं को समझने में चूक जाते हैं। उदाहरण के लिए, एक ही कैंसर स्टेज वाले दो मरीजों के नतीजे अलग क्यों हो सकते हैं, यह एक विचारणीय प्रश्न है।
मंत्रालय ने बताया कि 'ऑन्कोमार्क' नए एआई फ्रेमवर्क के जरिए कैंसर के मॉलिक्यूलर “माइंड” को पढ़कर इसके व्यवहार का अनुमान लगा सकता है।
डॉ. शुभाशीष हलधर और डॉ. देबयान गुप्ता की अगुवाई वाली एस.एन. बोस की टीम ने 14 प्रकार के कैंसर में 31 लाख सिंगल सेल्स का विश्लेषण करने के लिए ऑन्कोमार्क का उपयोग किया।
एस.एन. बोस, डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (डीएसटी) का एक स्वायत्त संस्था है।
रिसर्च टीम ने कृत्रिम “स्यूडो-बायोप्सी” का निर्माण किया, जो कैंसर के हॉलमार्क ट्यूमर की स्थिति को दर्शाती हैं।
इस बड़े डेटासेट से एआई को यह सीखने में मदद मिली कि मेटास्टेसिस, इम्यून इवेशन और जीनोमिक इनस्टेबिलिटी जैसे हॉलमार्क ट्यूमर के विकास और थेरेपी रेजिस्टेंस को बढ़ाने के लिए कैसे एक साथ काम करते हैं।
मंत्रालय ने कहा, “ऑन्कोमार्क, आंतरिक परीक्षण में 99 फीसदी से अधिक सटीक रहा और पांच अलग-अलग समूहों में इसका परिणाम 96 फीसदी से ऊपर रहा। इसे आठ बड़े डेटासेट के 20,000 मरीजों के नमूनों पर जांचा गया। पहली बार, वैज्ञानिकों ने देखा कि कैंसर स्टेज बढ़ने के साथ कैसे हॉलमार्क गतिविधि बढ़ती है।”
यह अध्ययन नेचर जर्नल कम्युनिकेशंस बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। इस नए फ्रेमवर्क ने यह स्पष्ट किया कि मरीज के ट्यूमर में कौन से हॉलमार्क सक्रिय हैं। इससे डॉक्टरों को उन दवाओं की दिशा में मार्गदर्शन मिल सकता है जो सीधे उन प्रक्रियाओं को लक्षित करती हैं।
मंत्रालय ने बताया कि यह उन आक्रामक कैंसर की पहचान करने में भी मदद कर सकता है जो मानक स्टेजिंग में कम हानिकारक लग सकते हैं, जिससे प्रारंभिक उपचार में सहायता मिलती है।