क्या नया एआई टूल कैंसर के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है?

सारांश
Key Takeaways
- एआई टूल कैंसर के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।
- ट्यूमर हेटेरोजेनेटी को समझने में मदद करता है।
- कैंसर के विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं के लिए अलग-अलग उपचार प्रदान करता है।
- प्रिसिजन ऑन्कोलॉजी में महत्वपूर्ण कदम।
- अन्य बीमारियों के लिए भी संभावनाएं।
नई दिल्ली, २७ जून (राष्ट्र प्रेस)। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने एक नया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) टूल विकसित किया है, जो कैंसर के इलाज में एक बड़ा परिवर्तन ला सकता है।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, यह नई तकनीक कैंसर के इलाज में एक महत्वपूर्ण समस्या को सुलझाती है, क्योंकि कई बार ट्यूमर में एक जैसी नहीं, बल्कि अलग-अलग प्रकार की कोशिकाएं होती हैं। इसे 'ट्यूमर हेटेरोजेनेटी' कहा जाता है। हर प्रकार की कोशिका इलाज पर अलग-अलग तरीके से प्रतिक्रिया करती है।
कुछ कोशिकाएं इलाज से मर जाती हैं, लेकिन कुछ जीवित रह जाती हैं, जो आगे चलकर कैंसर की पुनरावृत्ति का कारण बनती हैं।
'एएनेट' नामक एआई टूल ऑस्ट्रेलिया के गारवन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च और अमेरिका की येल स्कूल ऑफ मेडिसिन ने मिलकर विकसित किया है। यह टूल कैंसर की हर एक कोशिका के अंदर होने वाली जीन गतिविधियों का गहराई से अध्ययन करेगा।
अंतरराष्ट्रीय शोध टीम ने बताया कि इस एआई टूल की सहायता से ट्यूमर के अंदर ५ विभिन्न प्रकार की कोशिकाएं पाई गईं। प्रत्येक का अपना अलग व्यवहार और फैलने के अलग-अलग खतरे थे। पुराने तरीकों से डॉक्टर सभी कैंसर कोशिकाओं को एक जैसा मानकर इलाज करते थे, लेकिन अब इस नई तकनीक से बेहतर इलाज संभव होगा।
गारवन इंस्टीट्यूट की एसोसिएट प्रोफेसर क्रिस्टीन चैफर ने कहा, "ट्यूमर हेटेरोजेनेटी एक महत्वपूर्ण समस्या है, क्योंकि ट्यूमर का इलाज सभी कोशिकाओं को एक जैसा मानकर किया जाता है। इसके तहत, हम ऐसी थेरेपी देते हैं जो ट्यूमर की अधिकांश कोशिकाओं को एक विशेष तरीके से नष्ट करती है। लेकिन हर कोशिका उस इलाज से नहीं मरती, और वे बचकर कैंसर को दोबारा फैला सकती हैं। एएनेट एआई टूल हमें ट्यूमर के अंदर की विविधता को जैविक रूप से पहचानने में मदद करता है।"
येल यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफेसर स्मिता कृष्णास्वामी इस एआई टूल की सह-निर्माता हैं। उन्होंने कहा कि यह पहली ऐसी तकनीक है जो कोशिकाओं की जटिलता को आसानी से समझने योग्य प्रकारों में बदल सकती है। इससे कैंसर के सटीक इलाज में बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है। यानी यह तकनीक प्रिसिजन ऑन्कोलॉजी को पूरी तरह से बदल सकती है।
यह तकनीक अब इलाज के लिए तैयार है। 'कैंसर डिस्कवरी' नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि यह तकनीक स्तन कैंसर में सफल साबित हुई है, साथ ही यह अन्य प्रकार के कैंसर और ऑटोइम्यून बीमारियों के लिए भी लाभकारी हो सकती है, जो पर्सनलाइज्ड मेडिसिन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।