क्या नई श्रम संहिताएं महिलाओं को समान वेतन और मातृत्व लाभ देकर सशक्त बना रही हैं?
सारांश
Key Takeaways
- समान कार्य के लिए समान वेतन
- मातृत्व लाभ में वृद्धि
- शिशु-गृह सुविधा
- नौकरी में भेदभाव समाप्त करना
- महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाना
नई दिल्ली, 27 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। समान कार्य के लिए समान वेतन, मातृत्व लाभ में वृद्धि, शिशु-गृह की सुविधा और भर्ती में भेदभाव न करने जैसे प्रावधानों के माध्यम से नई श्रम संहिताएं महिलाओं को कार्यस्थल पर सशक्त बनाने का कार्य कर रही हैं। यह जानकारी सरकार की ओर से गुरुवार को साझा की गई।
सरकार के अनुसार, नई श्रम संहिताएं लैंगिक समानता लाने तथा सभी प्रतिष्ठानों में समानता और सुरक्षा सुनिश्चित कर महिला कार्यबल को सामूहिक रूप से मजबूत बनाती हैं। ये संहिताएं महिलाओं को खतरनाक उद्योगों और रात की शिफ्ट जैसे क्षेत्रों में काम करने की अनुमति देकर उनकी अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करेंगी।
हाल ही में सरकार द्वारा लागू की गई नई श्रम संहिताओं में वेतन संहिता 2019, औद्योगिक संबंध संहिता 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 और व्यवसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता 2020 शामिल हैं।
सभी महिलाएं भारत के कार्यबल का एक महत्वपूर्ण और लगातार बढ़ता हिस्सा हैं और नई श्रम संहिताएं उनके लिए एक समावेशी, सुरक्षित और सक्षम कार्य वातावरण बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो रही हैं।
औद्योगिक संबंध संहिता 2020 के तहत, शिकायत निवारण समिति (जीआरसी) में महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व अनिवार्य किया गया है, जो प्रतिष्ठान के कुल कार्यबल में उनके अनुपात से कम नहीं होना चाहिए।
सामाजिक सुरक्षा संहिता के अनुसार, मातृत्व लाभ के लिए पात्र होने के लिए एक महिला को अपेक्षित प्रसव से ठीक पहले के 12 महीनों में कम से कम 80 दिन किसी प्रतिष्ठान में काम करना आवश्यक है। पात्र महिलाओं को अवकाश की अवधि के लिए उनकी औसत दैनिक मजदूरी के बराबर मातृत्व लाभ दिया जाएगा। मातृत्व अवकाश की अधिकतम अवधि 26 सप्ताह है, जिसमें से अधिकतम 8 सप्ताह का अवकाश प्रसव की अपेक्षित तिथि से पहले लिया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त, कोई महिला जो कानूनी रूप से तीन महीने से कम उम्र के बच्चे को गोद लेती है या एक कमीशनिंग मदर (जो सरोगेसी की मदद लेती है), गोद लेने की तारीख से या बच्चे को सौंपे जाने की तारीख से 12 सप्ताह के मातृत्व लाभ की हकदार होती है।
नई श्रम संहिताओं के अनुसार, प्रसव के बाद ड्यूटी पर लौटने पर एक महिला को अपने दैनिक कार्य के दौरान बच्चे की देखभाल के लिए दो ब्रेक की हकदार होगी, जब तक कि बच्चा 15 महीने का न हो जाए।
प्रत्येक प्रतिष्ठान में जहां 50 या अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, एक निर्धारित दूरी के भीतर एक अलग या सामूहिक शिशुगृह की सुविधा होनी चाहिए। नियोक्ता को महिला को शिशुगृह में प्रतिदिन चार बार जाने की अनुमति देनी चाहिए, जिसमें विश्राम के अंतराल भी शामिल हैं।
नई श्रम संहिताओं के अनुसार, केंद्रीय/राज्य सलाहकार बोर्ड में एक-तिहाई सदस्य महिलाएं होंगी। यह बोर्ड न्यूनतम वेतन के निर्धारण, महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों में वृद्धि, और महिलाओं की नियुक्ति की सीमा पर सलाह देगा।
इससे नीति-निर्माण में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सकेगा, जिससे अधिक समावेशी और संतुलित रोजगार नीतियां बनेंगी। यह ऐसी नीतियां बनाने में भी मदद करता है, जो महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों को बढ़ाती हैं और श्रम बाजार में लैंगिक समानता को बढ़ावा देती हैं।