क्या भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की बिक्री 40 गुना बढ़ने से मोटापा और मधुमेह के मामले बढ़ रहे हैं?
सारांश
Key Takeaways
- यूपीएफ की बिक्री में तेजी से वृद्धि हो रही है।
- मोटापा और मधुमेह के मामलों में इज़ाफा हो रहा है।
- युवाओं पर विज्ञापनों का बड़ा प्रभाव है।
- स्वास्थ्य के लिए यूपीएफ एक गंभीर खतरा है।
- स्वस्थ भोजन तक सभी की पहुंच को बेहतर बनाना आवश्यक है।
नई दिल्ली, 19 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की बिक्री तेजी से बढ़ रही है। इस बढ़ती प्रवृत्ति के कारण लोगों की खाने की आदतों में परिवर्तन आ रहा है, जिससे मोटापा और मधुमेह के मामलों में इज़ाफा हो रहा है। इससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ बढ़ रही हैं। यह जानकारी द लैंसेट में बुधवार को प्रकाशित तीन शोध-पत्रों में प्रस्तुत की गई है।
यूपीएफ वे खाद्य पदार्थ हैं जिनमें वसा, चीनी और नमक की मात्रा बहुत अधिक होती है। इनमें स्टेबलाइज़र, इमल्सीफायर, रंग, फ्लेवर जैसे कई कृत्रिम और हानिकारक तत्व भी मिलाए जाते हैं। ऐसे खाद्य पदार्थ मोटापा, टाइप-2 डायबिटीज, दिल की बीमारियाँ, अवसाद और समय से पहले मौत के जोखिम को बढ़ाते हैं।
43 अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों द्वारा लिखे गए शोध पत्रों में बताया गया है कि भारत में यूपीएफ की खुदरा बिक्री 2006 में 0.9 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2019 में लगभग 38 बिलियन डॉलर हो गई है। यानी इन 13 वर्षों में इसकी बिक्री लगभग 40 गुना बढ़ी है।
अब खुदरा दुकानों की अलमारियों पर पहले से पैक किए गए खाद्य और पेय पदार्थों की भरमार है, जैसे नमकीन, नूडल्स, बिस्कुट, मीठे पेय, चिप्स और नाश्ते के अनाज। इनका प्रचार-प्रसार विज्ञापनों के माध्यम से बच्चों और युवाओं पर व्यापक रूप से प्रभाव डाल रहा है।
अध्ययन में यह भी सामने आया है कि भारत में इसके कारण पुरुषों में मोटापे का प्रतिशत 12% से बढ़कर 23% हो गया है, वहीं महिलाओं में यह 15% से बढ़कर 24% हो गया है।
इस श्रृंखला में यूपीएफ कंपनियों के द्वारा उपभोग बढ़ाने के लिए किए जाने वाले आक्रामक विपणन और विज्ञापन अभियानों पर चर्चा की गई है।
बाल रोग विशेषज्ञ और इस श्रृंखला के शोध पत्रों के सह-लेखक डॉ. अरुण गुप्ता ने कहा, "हमारे नियम विपणन को रोकने में प्रभावी नहीं हैं। भारत को तुरंत कदम उठाकर यूपीएफ की खपत को कम करना चाहिए और आने वाले वर्षों में मोटापा और मधुमेह को रोकने का लक्ष्य रखना चाहिए। चूंकि भारत में यूपीएफ की बिक्री सबसे तेजी से बढ़ रही है और इससे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, इसलिए इसे एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य मुद्दा मानना चाहिए।"
लेखकों ने यूपीएफ से निपटने और दुनिया भर में लोगों की खाने की आदतें सुधारने के लिए तुरंत प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य कदम उठाने का आग्रह किया।
लेखकों ने कहा कि केवल उपभोक्ता के व्यवहार पर भरोसा करने की बजाय यूपीएफ के उत्पादन, विपणन और खपत को कम करने के लिए समन्वित नीतियों की आवश्यकता है। साथ ही, उन्होंने स्वस्थ भोजन तक सभी की पहुंच को बेहतर बनाने की भी मांग की।
पीएचएफआई यूनिवर्सिटी ऑफ पब्लिक हेल्थ साइंसेज के चांसलर प्रो. श्रीनाथ रेड्डी ने कहा, "भारत को यूपीएफ के उत्पादन, विपणन और उनके घटकों की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए कड़े नियम अपनाने की आवश्यकता है। पैक के सामने लगे चेतावनी लेबल पर उपभोक्ताओं को नमक, चीनी और वसा के हानिकारक स्तरों के बारे में स्पष्ट जानकारी दी जानी चाहिए।"
उन्होंने आगे कहा, "यूपीएफ को लत के रूप में दिखाने वाले विज्ञापनों के कारण कई बीमारियाँ फैल सकती हैं। इसलिए उनके विज्ञापन और प्रायोजन पर रोक लगाना बहुत आवश्यक है, विशेष रूप से सेलिब्रिटी विज्ञापनों के व्यापक प्रभाव को देखते हुए।"