क्या तूलिका मान की संघर्ष और सहनशीलता ने जूडो में सफलता की कहानी लिखी?

सारांश
Key Takeaways
- संघर्ष और मेहनत से ही सफलता प्राप्त होती है।
- जूडो में मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की तैयारी आवश्यक है।
- कोच की भूमिका रिकवरी के दौरान महत्वपूर्ण होती है।
- खेल में सहनशीलता और अनुशासन का होना आवश्यक है।
- हर चोट के बाद प्रैक्टिस जारी रखना चाहिए।
नई दिल्ली, 8 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। जूडो एक ऐसा खेल है, जिसका नाम सुनते ही जूडो-कराटे की याद आ जाती है। लेकिन, जूडो और कराटे में बहुत फर्क है, जो बहुत कम लोगों को ज्ञात है। हमें यह भी समझना चाहिए कि इस खेल के बारे में हमारी जानकारी कितनी सीमित है, और इस खेल में सफलता पाने के लिए किए जाने वाले संघर्ष और मेहनत की कहानी भी हम कम ही जानते हैं। इसी संघर्ष और मेहनत की सजीव मिसाल हैं तूलिका मान, जिनका जन्म 9 सितंबर को हुआ।
जूडो कोई साधारण खेल नहीं है। खुद तूलिका ने एक इंटरव्यू में कहा था कि यह फुटबॉल के बाद दुनिया का दूसरा ऐसा खेल है जहाँ मानसिक और शारीरिक पराक्रम की कठोर परीक्षा होती है। जूडो आत्म-नियंत्रण, रणनीति और सहनशीलता का एक अनुपम मिश्रण है। यह खेल जापान की धरती से उत्पन्न हुआ है, इसलिए इसमें अनुशासन और प्रतिद्वंद्वी के लिए सम्मान सर्वोपरि होता है। जूडो आक्रामकता का खुला प्रदर्शन नहीं करता। यह आधुनिक मार्शल आर्ट का एक ऐसा रूप है, जिसमें ओलंपिक मेडल भी दांव पर लगे होते हैं।
भारत परंपरागत रूप से जूडोका में एक पावर हाउस नहीं रहा है। ऐसे में एक लड़की के रूप में जूडोका में अपनी पहचान बनाना तूलिका के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। हालांकि, तूलिका मानती हैं कि उन्हें जूडोका बनने में एक लड़की होना कभी आड़े नहीं आया, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उनके लिए चीजें आसान थीं। उनका बचपन कठिनाइयों से भरा था, जब उन्होंने अपने पिता को खो दिया। तूलिका ने एक इंटरव्यू में बताया कि पिता के खोने का असली दर्द उनकी मां ने झेला। जब पिता का निधन हुआ, तब उनकी उम्र केवल सात साल थी। इतनी कम उम्र में पिता को खोने का अर्थ उन्हें नहीं पता था, और इसके पीछे की वजह उनकी मां थीं।
तूलिका का बचपन न केवल कठिनाईयों से भरा था, बल्कि दिलचस्प भी था। 1998 में जन्मी तूलिका का पालन-पोषण केवल उनकी मां ने किया। उनकी मां, अमृता मान, ने परिवार की जिम्मेदारियों के साथ-साथ तूलिका को एक जूडोका बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बचपन में तूलिका के लिए जूडो केवल एक खेल था, लेकिन जब उनकी मां काम पर जाती थीं, तो तूलिका को घर पर अकेला रहना पड़ता था, जो उन्हें बोरिंग लगता था। इसी वजह से उन्होंने अपनी मां से बातचीत की और जूडो क्लास में जाना शुरू किया।
यहाँ से तूलिका की जूडो में रुचि बढ़ी। चौथी कक्षा से ही उनकी प्रैक्टिस शुरू हो चुकी थी। तूलिका की मेहनत और स्वाभाविक प्रतिभा ने उन्हें इस खेल में आगे बढ़ाया। स्कूल में सहपाठी उन्हें टॉम ब्वाय कहते थे। तूलिका ने जूनियर स्तर पर कई मेडल जीते और नेशनल जूनियर लेवल पर भी सिल्वर मेडल अपने नाम किया।
हालांकि, तूलिका का करियर 2018 में सही मायनों में शुरू हुआ, जब उन्होंने जयपुर में कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में जीत हासिल की। अगले साल उन्होंने फिर से कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप जीती और साउथ एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल भी प्राप्त किया। साल 2022 में बर्मिंघम में कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल जीतना उनके करियर का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। यह वह समय था जब तूलिका चोटिल भी हुईं।
जूडो में करियर बनाते हुए चोटें एक अनिवार्य हिस्सा बन जाती हैं। तूलिका का कहना है कि चोटें हर पड़ाव पर लगती हैं। जूडो में मैच हो या प्रैक्टिस, चोटों से बचना संभव नहीं है। मजेदार यह है कि करियर में जितनी चोटें स्वीकृत होती हैं, उनकी रिकवरी का समय उतना ही कठिन होता है। एक इंटरव्यू में तूलिका बताती हैं कि रिकवरी पीरियड सबसे बुरा होता है। इस दौरान आपको इंतजार करना होता है। यहाँ कोच की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। जूडोका के लिए रिकवरी पीरियड में भी प्रैक्टिस जारी रहती है। तूलिका ने उस साल इस चोट के बावजूद नेशनल गेम्स में गोल्ड जीता। जूडो में शरीर को मजबूत करने के लिए फिजिकल ट्रेनिंग के साथ-साथ मानसिक ट्रेनिंग भी जरूरी होती है। मानसिक रूप से फिट रहने के लिए तूलिका अपने दोस्तों के साथ समय बिताती हैं, एनिमी मूवी देखती हैं और खुद को रिलैक्स रखती हैं।
तूलिका मान पेरिस 2024 ओलंपिक में भारत की एकमात्र जूडो खिलाड़ी थीं। उनके लिए यह पल सपना सच होने जैसा था। ओलंपिक में चयन से पहले उन्होंने कहा था कि उन्हें दूर-दूर तक ओलंपिक खेलने की उम्मीद नहीं थी। पेरिस ओलंपिक में चयन उनके जीवन का सबसे बड़ा पल था। हालांकि, तूलिका को महिलाओं के +78 किग्रा वर्ग में शुरुआती दौर में हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने सबसे बड़े मंच पर जूडोका के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।