क्या अखबार में छपे एक 'शोक संदेश' ने 'एशेज ट्रॉफी' की नींव रखी? जानें दिलचस्प कहानी
सारांश
Key Takeaways
- एशेज ट्रॉफी की शुरुआत 1882 में हुई थी।
- यह ट्रॉफी इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच की प्रतिस्पर्धा का प्रतीक है।
- इसका नाम एक नकली शोक संदेश से पड़ा।
- पहली बार यह ट्रॉफी 1998-99 में दी गई थी।
- एशेज ट्रॉफी आज भी क्रिकेट की सबसे प्रतिष्ठित ट्रॉफियों में से एक है।
नई दिल्ली, 17 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। वर्ष 1882 में ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम इंग्लैंड के दौरे पर आई थी, जहां ओवल में खेले गए टेस्ट मैच में इंग्लैंड को 7 रन के बेहद करीबी अंतर से हार का सामना करना पड़ा।
अगले दिन, ब्रिटिश समाचार पत्र 'स्पोर्टिंग टाइम्स' ने अंग्रेजी क्रिकेट के लिए एक नकली 'शोक संदेश' प्रकाशित किया, जिसमें लिखा गया, "29 अगस्त 1882 को ओवल में दिवंगत हुए इंग्लिश क्रिकेट की स्नेहपूर्ण स्मृति में। शोकाकुल मित्रों और परिचितों के एक बड़े समूह की ओर से गहरा शोक व्यक्त किया गया। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे। ध्यान दें शव का अंतिम संस्कार किया जाएगा और राख ऑस्ट्रेलिया ले जाई जाएगी।"
वास्तव में, इस ब्रिटिश साप्ताहिक ने इंग्लैंड की हार पर 'द एशेज' शब्द का उपयोग किया था। इस 'शोक संदेश' के साथ क्रिकेट इतिहास में पहली बार 'एशेज' शब्द का प्रयोग हुआ। यह अवधारणा खेल प्रेमियों का ध्यान खींचने में सफल रही।
कुछ हफ्तों बाद, इवो ब्लाई की कप्तानी में इंग्लिश टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर निकली। पिछली हार का बदला लेना टीम का मुख्य उद्देश्य था। कप्तान ब्लाई ने दृढ़ संकल्प लिया कि वे एशेज वापस लाने ऑस्ट्रेलिया जा रहे हैं।
इंग्लैंड की टीम ने इस दौरे पर तीन टेस्ट मैच खेले। इस दौरान, ब्लाई और उनकी टीम के खिलाड़ियों ने कई अनौपचारिक मैचों में भी भाग लिया।
यह श्रृंखला 30 दिसंबर से शुरू होने वाली थी। पहला मैच मेलबर्न में खेला जाने वाला था, इससे पहले क्रिसमस की पूर्व संध्या पर मेलबर्न के पास रूपर्ट्सवुड एस्टेट में ब्लाई को उस एशेज के प्रतीक के रूप में एक छोटा मिट्टी का कलश दिया गया, जिसे वापस पाने के लिए वह ऑस्ट्रेलिया गए थे। हालांकि, ब्लाई इसे एक निजी उपहार मानते थे। इस दौरे पर इंग्लैंड ने 2-1 से श्रृंखला अपने नाम की।
ऐसी मान्यता है कि मेलबर्न की महिलाओं ने बेल्स को जलाकर उसकी राख को इस कलश में भरकर दिया था।
इस अवसर पर ब्लाई की मुलाकात फ्लोरेंस मॉर्फी से हुई, जो रूपर्ट्सवुड एस्टेट की मालकिन लेडी जेनेट क्लार्क की सहपाठी और क्लार्क परिवार की गवर्नेस थीं। वर्ष 1884 में फ्लोरेंस मॉर्फी से ही ब्लाई ने विवाह किया।
कुछ समय बाद, ब्लाई इस कलश को लेकर इंग्लैंड लौटे। यह कलश ब्लाई के घर पर लगभग 43 साल तक रखा रहा। ब्लाई के निधन के बाद फ्लोरेंस ने यह कलश मेरीलेबोन क्रिकेट क्लब (एमसीसी) को सौंप दिया, तब से यह लॉर्ड्स स्थित एमसीसी संग्रहालय में सुरक्षित है।
जब 1990 के दशक में ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की टीमों ने वास्तविक ट्रॉफी के लिए प्रतिस्पर्धा करने की इच्छा जताई, तब एमसीसी ने इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड और क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया (सीए) के साथ विचार-विमर्श के बाद एक कलश के आकार की वाटरफोर्ड क्रिस्टल ट्रॉफी बनाई।
वर्ष 1998-99 में, जब ऑस्ट्रेलियाई टीम ने इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट श्रृंखला जीती, तब यह ट्रॉफी पहली बार ऑस्ट्रेलियाई कप्तान मार्क टेलर को भेंट की गई थी, और तभी से एशेज ट्रॉफी ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच प्रत्येक टेस्ट श्रृंखला के अंत में विजेता कप्तान को दी जाती है।