क्या विजय मर्चेंट, भारत के 'डॉन ब्रैडमैन' थे, जिन्हें इंग्लैंड अपनी टीम में ओपनर बनाना चाहता था?

सारांश
Key Takeaways
- विजय मर्चेंट भारतीय क्रिकेट के एक अद्वितीय बल्लेबाज थे।
- उन्होंने अपनी तकनीक और बल्लेबाजी शैली से सभी को प्रभावित किया।
- उनकी देशभक्ति ने उन्हें कई अवसरों पर खेलने से रोका।
- मर्चेंट का रिकॉर्ड आज भी कई खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा है।
- उन्होंने युवा पीढ़ी को क्रिकेट में उत्कृष्टता के लिए प्रेरित किया।
नई दिल्ली, 11 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय क्रिकेटर विजय मर्चेंट को तकनीकी रूप से सबसे कुशल बल्लेबाजों में से एक माना जाता है, जो भारत के 'डॉन ब्रैडमैन' के नाम से जाने जाते हैं। न केवल भारतीय, बल्कि विदेशी क्रिकेट प्रेमी भी इस खिलाड़ी की तकनीक के दीवाने थे।
12 अक्टूबर 1911 को मुंबई में जन्मे विजय माधवजी मर्चेंट एक व्यापारी परिवार से थे, जिनके पिता के पास कई फैक्ट्रियां थीं।
बचपन में उनका नाम 'विजय ठाकरसे' था, लेकिन एक अंग्रेज़ी शिक्षक से अपने पिता के व्यवसाय के बारे में बात करते समय, विजय ने बताया कि वह 'मर्चेंट' हैं। इसी कारण शिक्षक ने उनका नाम बदलकर 'विजय मर्चेंट' रख दिया।
घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन के चलते विजय मर्चेंट को लगभग तीन साल बाद ही टेस्ट टीम में खेलने का मौका मिल गया, जब उनकी उम्र महज 22 वर्ष थी।
हालांकि, विजय मर्चेंट भारत के पहले अंतरराष्ट्रीय टेस्ट मैच के सदस्य बन सकते थे, लेकिन महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने उस मैच में खेलने से मना कर दिया।
उस समय इंग्लैंड की क्रिकेट टीम भारत दौरे पर आ रही थी। मर्चेंट को टीम में चुना गया, लेकिन उस वक्त कई स्वतंत्रता सेनानी जेल में थे। इस विरोध में मर्चेंट ने मैच खेलने से इंकार कर दिया।
दिसंबर 1933 में, मर्चेंट ने आखिरकार इंग्लैंड के खिलाफ मुंबई में अपना पहला टेस्ट खेला, क्योंकि तब तक सभी प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी रिहा हो चुके थे। विजय ने अपने पहले मैच में 23 और 30 रन की पारियां खेलीं।
विजय मर्चेंट का क्रिकेट करियर लगभग 18 साल का रहा, जिसमें करीब 10 वर्ष द्वितीय विश्व युद्ध के कारण बीत गए। इस दौरान मर्चेंट ने सिर्फ 10 टेस्ट मैच खेले, जिसमें 47.72 की औसत से 859 रन बनाए। इस अवधि में उनके बल्ले से 3 शतक और 3 अर्धशतक आए।
विजय मर्चेंट ने अपने बल्लेबाजी के अनोखे अंदाज से सभी को आकर्षित किया। वह आराम से पांव फैलाकर ड्राइव लगाते थे।
अंग्रेज खिलाड़ी भी विजय मर्चेंट से प्रभावित थे, और सीबी फ्रे ने कहा, "चलो हम विजय मर्चेंट को रंग देते हैं और उन्हें ऑस्ट्रेलिया ले चलते हैं, ताकि वह हमारी तरफ से ओपनिंग कर सकें।"
घरेलू क्रिकेट में उनका रिकॉर्ड अद्भुत था। फर्स्ट क्लास क्रिकेट में सबसे अधिक औसत के मामले में मर्चेंट आज भी दूसरे स्थान पर हैं। उन्होंने 150 फर्स्ट क्लास मैचों में 234 पारियों में 71.64 की औसत से 13,470 रन बनाए, जिसमें 45 शतक और 52 अर्धशतक शामिल हैं।
इस सूची में मर्चेंट से आगे केवल डॉन ब्रैडमैन हैं, जिन्होंने 234 फर्स्ट क्लास मैचों में 338 पारियों में 95.14 की औसत से 28,067 रन बनाए।
विजय मर्चेंट ने अपने करियर के अंतिम दो टेस्ट मैचों में शतक जमाए। अगस्त 1946 में इंग्लैंड के खिलाफ 128 रन और नवंबर 1951 में दिल्ली में इंग्लैंड के खिलाफ 154 रन बनाए। मर्चेंट की इस पारी के कारण भारत ने मैच ड्रॉ कराने में सफलता पाई। इसी साल कंधे में चोट के कारण मर्चेंट ने संन्यास लेने का निर्णय लिया।
इस बल्लेबाज ने भारत की नई पीढ़ी को प्रेरित किया। क्रिकेट में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए 1937 में उन्हें 'विजडन क्रिकेटर ऑफ द ईयर' से सम्मानित किया गया। 27 अक्टूबर 1987 को 76 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से विजय मर्चेंट का निधन हो गया।