क्या आप जानते हैं भारतीय फुटबॉल के 'साहब' के बारे में? जिनकी ओलंपिक टीम में जगह नहीं बन सकी!

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क्या आप जानते हैं भारतीय फुटबॉल के 'साहब' के बारे में? जिनकी ओलंपिक टीम में जगह नहीं बन सकी!

सारांश

सैयद शाहिद हकीम, जिन्हें भारतीय फुटबॉल का 'साहब' कहा जाता है, का सफर प्रेरणादायक है। अपने पिता के कदमों पर चलते हुए, उन्होंने फुटबॉल में अद्वितीय योगदान दिया। इस लेख में जानें उनके संघर्ष और उपलब्धियों के बारे में।

Key Takeaways

  • सैयद शाहिद हकीम का जन्म 23 जून 1939 को हुआ।
  • उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1960 में की थी।
  • उन्हें 2017 में 'मेजर ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' मिला।
  • वे भारतीय वायु सेना के स्क्वाड्रन लीडर रहे।
  • उन्होंने फीफा रेफरी के रूप में भी कार्य किया।

नई दिल्ली, 22 जून (राष्ट्र प्रेस)। 23 जून 1939 को ब्रिटिश भारत में जन्मे सैयद शाहिद हकीम की रगों में फुटबॉल का ज्वार था। यह खेल उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला था।

हैदराबाद के निवासी सैयद शाहिद हकीम के पिता सैयद अब्दुल रहीम भारत के प्रतिष्ठित कोचों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने दो बार एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीते और साल 1956 के मेलबर्न ओलंपिक में भारतीय फुटबॉल टीम को सेमीफाइनल तक पहुंचाया।

यह सेमीफाइनल में पहुंचने वाली पहली एशियाई टीम थी, लेकिन उन्हें युगोस्लाविया के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा। बॉलीवुड फिल्म 'मैदान' इसी पर आधारित है, जिसमें अजय देवगन ने अब्दुल रहीम का किरदार निभाया। उन्हें भारतीय फुटबॉल के स्वर्ण युग का निर्माता माना जाता है।

सैयद शाहिद हकीम ने 1960 में सर्विसेज फुटबॉल टीम से अपने करियर की शुरुआत की। वह 1960 के रोम ओलंपिक के लिए टीम का हिस्सा थे, जिसे उनके पिता ने तैयार किया था, लेकिन उन्हें खेलने का मौका नहीं मिला। इसके बाद, वह 1962 में 'एशियन गेम्स' में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम में शामिल होने से भी चूक गए।

शाहिद हकीम भारतीय वायु सेना के स्क्वाड्रन लीडर रहे और उन्हें 'साहब' के नाम से भी जाना जाता था। उन्होंने 1966 तक फुटबॉल खेलना जारी रखा।

अपने पिता के मार्ग पर चलते हुए, उन्होंने कोचिंग करियर की शुरुआत की। वह 1982 एशियन गेम्स में पीके बनर्जी के सहायक कोच थे और 1998 में 'डूरंड कप' विजेता टीम के मैनेजर भी रहे। इसके अलावा, उन्होंने सालगांवकर एससी, हिंदुस्तान एफसी और बंगाल क्लब मुंबई को कोचिंग दी।

शाहिद हकीम ने लगभग पाँच दशक भारतीय फुटबॉल में बिताए। वह कोचिंग के साथ-साथ फीफा रेफरी भी रहे और 1988 एएफसी एशियन कप में अंपायरिंग की। इसके अलावा, वह स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) के क्षेत्रीय निदेशक भी रहे।

भारतीय फुटबॉल में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें 2017 में 'मेजर ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित किया गया। 22 अगस्त 2021 को, 82 वर्ष'साहब' ने दुनिया को अलविदा कहा।

Point of View

NationPress
13/12/2025

Frequently Asked Questions

सैयद शाहिद हकीम का जन्म कब हुआ था?
सैयद शाहिद हकीम का जन्म 23 जून 1939 को हुआ था।
सैयद अब्दुल रहीम कौन थे?
सैयद अब्दुल रहीम सैयद शाहिद हकीम के पिता थे और भारत के महानतम फुटबॉल कोचों में से एक माने जाते हैं।
शाहिद हकीम ने कब फुटबॉल खेलना शुरू किया?
शाहिद हकीम ने 1960 में सर्विसेज फुटबॉल टीम से अपने करियर की शुरुआत की।
उन्हें किस पुरस्कार से सम्मानित किया गया?
उन्हें 2017 में 'मेजर ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित किया गया।
उनका योगदान भारतीय फुटबॉल में क्या है?
उन्होंने लगभग पाँच दशक तक भारतीय फुटबॉल में महत्वपूर्ण योगदान दिया, कोचिंग और रेफरी के रूप में।
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