क्या दिलहारा फर्नांडो ने बल्लेबाजों के लिए अपनी धीमी गेंदों से चुनौती पेश की?

Click to start listening
क्या दिलहारा फर्नांडो ने बल्लेबाजों के लिए अपनी धीमी गेंदों से चुनौती पेश की?

सारांश

दिलहारा फर्नांडो ने तेज गेंदबाजी से करियर की शुरुआत की, लेकिन धीरे-धीरे अपनी गेंदबाजी में विविधता लाकर बल्लेबाजों के लिए एक नई चुनौती बन गए। जानिए उनके करियर के उतार-चढ़ाव और यादगार पलों के बारे में।

Key Takeaways

  • दिलहारा फर्नांडो का जन्म 1979 में कोलंबो में हुआ।
  • उन्होंने 2000 में पाकिस्तान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखा।
  • उनकी गेंदबाजी ने 2007 विश्व कप में श्रीलंका को नॉकआउट में पहुँचाया।
  • चोटों ने उनके करियर को प्रभावित किया, फिर भी उन्होंने 40 टेस्ट में 100 विकेट लिए।
  • फर्नांडो का अंतिम मैच 2016 में भारत के खिलाफ था।

नई दिल्ली, 18 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। क्रिकेट को रोमांचक बनाने में श्रीलंका के खिलाड़ियों का बेहद अहम योगदान रहा है। सनथ जयसूर्या की आक्रामक बल्लेबाजी, मुथैया मुरलीधरन की स्पिन और लसिथ मलिंगा की यॉर्कर ने क्रिकेट को एक नई ऊंचाई पर पहुँचाया। दिलहारा फर्नांडो भी ऐसे ही गेंदबाज रहे हैं, जिन्होंने तेज गेंदों से करियर की शुरुआत की और फिर नई विविधताएँ जोड़कर बल्लेबाजों के लिए चुनौती बन गए।

जब श्रीलंकाई क्रिकेट की गेंदबाजी की बात होती है, तो मुथैया मुरलीधरन, चमिंडा वास, लसिथ मलिंगा और रंगना हेराथ का नाम लिया जाता है। लेकिन, दिलहारा फर्नांडो की भी अलग पहचान है। उनका आगमन उस दौर में हुआ जब श्रीलंकाई क्रिकेट अपने चरम पर था। उनके मजबूत कद-काठी और तेज गेंदों ने सबका ध्यान आकर्षित किया।

19 जुलाई 1979 को कोलंबो में जन्मे दिलहारा फर्नांडो ने 2000 में पाकिस्तान के खिलाफ अपना अंतरराष्ट्रीय डेब्यू किया। उन्हें चामिंडा वास का साथी माना गया। हालांकि, बार-बार लगी चोटों ने उनके करियर को प्रभावित किया, जिसमें एक ही साल में दो बार का स्ट्रेस फ्रैक्चर शामिल है।

वे श्रीलंकाई क्रिकेट से अंदर-बाहर होते रहे। 2007 में विश्व कप में इंग्लैंड के खिलाफ उनकी गेंदबाजी ने श्रीलंका को नॉकआउट में पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह उनका एक यादगार प्रदर्शन था, जिसे आज भी फैंस याद करते हैं।

वह मूलतः एक तेज गेंदबाज थे। जब वह अपने रंग में होते थे, तो 150 की स्पीड वाली बाउंसर गेंदों से बल्लेबाजों की परीक्षा लेते थे। छह फीट तीन इंचफर्नांडो गेंद के साथ प्रयोग करने के लिए जाने जाते थे। उनकी धीमी गेंदें भी एक प्रभावी हथियार बन गईं।

फर्नांडो ने अपना आखिरी अंतरराष्ट्रीय मैच 2016 में भारत के खिलाफ खेला, जो एक टी20 था। फर्नांडो का करियर चोटों के कारण प्रभावित रहा, अन्यथा उनके आंकड़े और भी बेहतर होते।

वे 2007 और 2011 के वनडे विश्व कप फाइनल खेलने वाली श्रीलंका टीम के सदस्य रहे। श्रीलंका की दक्षिण अफ्रीका में पहली टेस्ट जीत में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।

फर्नांडो ने अपने करियर में 40 टेस्ट में 100, 147 वनडे में 187 और 18 टी20 में 18 विकेट लिए। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में श्रीलंका की तरफ से सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाजों में उनका स्थान सातवां है।

Point of View

मैं मानता हूँ कि दिलहारा फर्नांडो ने अपनी गेंदबाजी से न केवल श्रीलंकाई क्रिकेट को मजबूती दी, बल्कि उन्होंने क्रिकेट की विश्व मंच पर एक अलग पहचान बनाई। उनके संघर्ष और सफलता की कहानी युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा है।
NationPress
18/07/2025

Frequently Asked Questions

दिलहारा फर्नांडो का जन्म कब और कहाँ हुआ?
दिलहारा फर्नांडो का जन्म 19 जुलाई 1979 को कोलंबो में हुआ।
फर्नांडो ने अपना अंतरराष्ट्रीय डेब्यू कब किया?
फर्नांडो ने 2000 में पाकिस्तान के खिलाफ अपना अंतरराष्ट्रीय डेब्यू किया।
फर्नांडो का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन क्या था?
2007 में इंग्लैंड के खिलाफ उनकी गेंदबाजी ने श्रीलंका को नॉकआउट में पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई।
फर्नांडो के करियर में कितने विकेट हैं?
फर्नांडो ने 40 टेस्ट में 100, 147 वनडे में 187 और 18 टी20 में 18 विकेट लिए।
फर्नांडो का अंतिम मैच कब था?
फर्नांडो का अंतिम अंतरराष्ट्रीय मैच 2016 में भारत के खिलाफ हुआ था।