क्या मिल्खा सिंह की कहानी एक अनाथ से 'फ्लाइंग सिख' बनने की है?

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क्या मिल्खा सिंह की कहानी एक अनाथ से 'फ्लाइंग सिख' बनने की है?

सारांश

मिल्खा सिंह की भव्य यात्रा को जानें, जिन्होंने एक अनाथ बच्चे से लेकर 'फ्लाइंग सिख' बनने तक का सफर तय किया। उनकी कठिनाइयों और उपलब्धियों की गाथा हमें प्रेरित करती है।

Key Takeaways

  • मिल्खा सिंह का जीवन हमें दृढ़ इच्छाशक्ति और कठोर परिश्रम का महत्व सिखाता है।
  • उन्होंने एथलेटिक्स में कई गोल्ड मेडल जीते हैं।
  • उनकी कहानी प्रेरणा का स्रोत है।
  • उन्हें 'फ्लाइंग सिख' की उपाधि मिली है।
  • उनका सपना ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतना था।

नई दिल्ली, 17 जून (राष्ट्र प्रेस)। किसी भी इंसान की परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो, अगर उसमें दृढ़ इच्छाशक्ति और कठोर परिश्रम है, तो वह किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। यह बात मिल्खा सिंह ने अपने जीवन से साबित की। विभाजन के समय पाकिस्तान से एक शरणार्थी के रूप में भारत आए मिल्खा सिंह ने एथलेटिक्स (दौड़) में जो सफलता प्राप्त की, उसने उन्हें देश का रोल मॉडल बना दिया।

20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा, पंजाब (जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है) में जन्मे मिल्खा सिंह ने 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय एक अनाथ के रूप में भारत में कदम रखा। बिना टिकट यात्रा करने के कारण उन्हें कुछ समय के लिए तिहाड़ जेल में रहना पड़ा। इसके बाद वह दिल्ली के पुराना किला स्थित शरणार्थी कैंप और फिर शाहदरा में पुनर्वास कॉलोनी में भी रहे। 1951 में उन्होंने भारतीय सेना में शामिल होकर दौड़ने का असली अर्थ समझा।

इसके बाद उन्होंने दौड़ने में अपने और भारत के नाम को विश्व स्तर पर रोशन किया। 1958 के एशियन गेम्स में उन्होंने 200 और 400 मीटर दौड़ में गोल्ड जीते। इसके अलावा, 1958 कॉमनवेल्थ गेम्स में भी उन्होंने गोल्ड जीता। 1962 के एशियन गेम्स में 400 मीटर और 1600 मीटर रिले दौड़ में भी उन्होंने गोल्ड हासिल किया। 1956 के मेलबर्न ओलंपिक, 1960 के रोम ओलंपिक और 1964 के टोक्यो ओलंपिक में भी उन्होंने भाग लिया।

कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के पहले गोल्ड मेडल विजेता मिल्खा सिंह ने 1960 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के अनुरोध पर पाकिस्तान के अब्दुल खालिक के साथ दौड़ में भाग लिया। मिल्खा की गति से प्रभावित होकर पाकिस्तान के जनरल अयूब खान ने उन्हें 'फ्लाइंग सिख' की उपाधि दी।

मिल्खा सिंह ने अपने जीवन में बहुत सारे मेडल जीते लेकिन ओलंपिक में पदक न जीत पाने की पीड़ा उन्हें हमेशा सताती रही। उनका सपना था कि कोई भारतीय एथलेटिक्स में ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीते। यह सपना नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक में जैवलिन में गोल्ड जीतकर पूरा किया। 7 अगस्त 2021 को नीरज ने गोल्ड जीता, लेकिन मिल्खा सिंह इस महान पल के साक्षी नहीं बन सके। कोविड18 जून 2021 को उनका निधन हो गया।

भारत सरकार ने मिल्खा सिंह को उनकी उपलब्धियों के लिए 1959 में पद्मश्री से सम्मानित किया था। 'भाग मिल्खा भाग' फिल्म उनके जीवन पर आधारित है, जिसमें एक अनाथ बच्चे से नेशनल आइकन बनने की कहानी को दर्शाया गया है।

Point of View

NationPress
19/06/2025

Frequently Asked Questions

मिल्खा सिंह का जन्म कब और कहां हुआ?
मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा, पंजाब में हुआ था।
उन्हें 'फ्लाइंग सिख' क्यों कहा जाता है?
पाकिस्तान के जनरल अयूब खान ने उनकी गति और प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें 'फ्लाइंग सिख' की उपाधि दी।
मिल्खा सिंह ने कितने ओलंपिक में भाग लिया?
उन्होंने 1956, 1960, और 1964 में ओलंपिक में भाग लिया।
उनका सबसे बड़ा सपना क्या था?
उनका सपना था कि कोई भारतीय एथलेटिक्स में ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीते।
मिल्खा सिंह का निधन कब हुआ?
उनका निधन 18 जून 2021 को हुआ।