क्या रूप सिंह सच में महान हॉकी खिलाड़ी थे जिनके कायल थे हिटलर?
सारांश
Key Takeaways
- रूप सिंह ने भारतीय हॉकी को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया।
- उनका जन्म 8 सितंबर 1908 को हुआ था।
- 1932 में भारत ने पहली बार ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता।
- रूप सिंह को जर्मनी में नौकरी का प्रस्ताव मिला था।
- उनके नाम पर एक सड़क का नाम रखा गया है।
नई दिल्ली, 15 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। अपने बड़े भाई मेजर ध्यानचंद की तरह, रूप सिंह ने भी हॉकी के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई। वह 1932 और 1936 की ओलंपिक गोल्ड मेडल विजेता टीम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। उनकी गति और शानदार स्कोरिंग क्षमता के लिए उन्हें पहचान मिली, जिसने भारतीय हॉकी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
8 सितंबर 1908 को जबलपुर में जन्मे रूप सिंह ने अपने बड़े भाई के नक्शेकदम पर चलते हुए हॉकी खेलना शुरू किया।
दोनों भाइयों की प्रारंभिक शिक्षा झांसी में हुई थी। दोनों भाई हीरोज ग्राउंड पर एक साथ हॉकी का अभ्यास करते थे। भाई की तरह उनमें भी अद्भुत प्रतिभा थी और शानदार प्रदर्शन के साथ रूप सिंह ने भारतीय हॉकी टीम में अपनी जगह बना ली।
आगे चलकर ध्यानचंद भारतीय सेना में शामिल हो गए, जबकि रूप सिंह ग्वालियर के राजघराने की सिंधिया सेना में एक कैप्टन बन गए।
दोनों भाइयों ने अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन से भारतीय टीम में जगह बनाई। रूप सिंह को इनसाइड लेफ्ट पोजीशन में दुनिया के बेहतरीन खिलाड़ियों में गिना जाता था। जब 1932 ओलंपिक के लिए भारतीय हॉकी टीम में उनका चयन हुआ, तब उन्होंने लॉस एंजेलिस जाने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि उनके पास वहाँ जाने के लिए उपयुक्त कपड़े नहीं थे। ऐसे में ध्यानचंद ने उनके लिए एक सूट सिलवाया। इस ओलंपिक में भारत ने गोल्ड मेडल अपने नाम किया था।
15 अगस्त 1936 को भारत ने मेजर ध्यानचंद के नेतृत्व में बर्लिन ओलंपिक के हॉकी फाइनल में जर्मनी को 8-1 से हराकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया।
1936 ओलंपिक में ध्यानचंद ने 13 गोल दागे थे, जबकि रूप सिंह ने 9 गोल किए। एडोल्फ हिटलर इस भाई जोड़ी के कायल थे। उन्होंने ध्यानचंद के साथ रूप सिंह को भी जर्मनी में नौकरी का प्रस्ताव दिया, लेकिन दोनों ने इसे विनम्रता से ठुकरा दिया। बाद में, रूप सिंह के नाम पर जर्मनी के म्यूनिख में एक सड़क का नाम 'रूप सिंह बैस वेग' रखा गया।
कैप्टन रूप सिंह हॉकी के साथ-साथ लॉन टेनिस और क्रिकेट में भी उत्कृष्ट खिलाड़ी थे। उन्होंने दिसंबर 1943 में ग्वालियर की टीम से दिल्ली के खिलाफ रणजी ट्रॉफी मैच खेला।
16 दिसंबर 1977 को भारतीय हॉकी के इस दिग्गज ने दुनिया को अलविदा कहा। उनके सम्मान में ग्वालियर के एक स्टेडियम का नाम रूप सिंह स्टेडियम रखा गया।