क्या शूटिंग ने 'आत्मरक्षा' से 'ओलंपिक' तक का सफर तय किया?
सारांश
Key Takeaways
- शूटिंग का खेल समय के साथ विकसित हुआ है।
- भारत के निशानेबाजों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है।
- ओलंपिक में शूटिंग की महत्वपूर्ण भूमिका है।
- 1990 के दशक के बाद शूटिंग की लोकप्रियता बढ़ी है।
- अभिनव बिंद्रा ने भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाया।
नई दिल्ली, 1 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। धनुष-बाण के प्रयोग के बाद शिकार और आत्मरक्षा के लिए बंदूक का उपयोग किया जाने लगा। लगभग 1000 ईस्वी के आसपास चीन में 'फायर लांस' जैसे उपकरणों का विकास हुआ। इसके पश्चात, 13वीं शताब्दी तक धातु के बैरल वाली बंदूकों से लोग अपने निशाने साधने लगे और धीरे-धीरे यह निशानेबाजी एक शौकिया खेल बन गई।
1477 में बवेरिया में पहली बार एक निशानेबाजी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें 'मैचलॉक' हथियारों का उपयोग किया गया। 16वीं सदी तक, यूरोप में राइफल से निशानेबाजी एक प्रसिद्ध शौक बन चुकी थी।
भारत में, 16वीं शताब्दी के दौरान पानीपत के युद्ध में बाबर की सेना ने बंदूकों का इस्तेमाल किया था। 18वीं सदी में, निशानेबाजी को जीवित पशु-पक्षियों के बजाय कृत्रिम लक्ष्यों के लिए एक शौक के रूप में खेला जाने लगा।
1859 में नेशनल राइफल एसोसिएशन के गठन के साथ इस खेल की लोकप्रियता उन देशों में बढ़ने लगी, जहां अंग्रेजों का शासन था। इससे शूटिंग में अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की नींव रखी गई।
इस खेल को पहली बार 1896 के एथेंस ओलंपिक में शामिल किया गया। इसके लिए एक शूटिंग रेंज तैयार किया गया था। हालांकि, इसे 1904 और 1928 के ओलंपिक में नहीं शामिल किया गया। ओलंपिक में यह खेल सभी का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहा है।
1896 के ओलंपिक उद्घाटन सत्र में 5 इवेंट से लेकर आज 6 डिसिप्लिन में 15 इवेंट तक, यह खेल फायरआर्म तकनीक में प्रगति के साथ तेजी से विकसित हुआ है।
ओलंपिक प्रतियोगिता में शूटिंग आमतौर पर राइफल, पिस्टल और शॉटगन में विभाजित की गई है।
वर्तमान में 6 डिसिप्लिन में स्थिर लक्ष्यों के साथ एयर पिस्टल, एयर राइफल, 25 मीटर पिस्टल (पुरुषों के लिए रैपिड फायर) और राइफल थ्री पोजीशन (घुटने टेकना, प्रोन, खड़े होना) शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, मूविंग क्ले से जुड़े दो और ट्रैप भी हैं।
भारत में शूटिंग की लोकप्रियता 1990 के दशक के बाद तेजी से बढ़ी है। कर्णी सिंह, अभिनव बिंद्रा, राज्यवर्धन सिंह राठौर, गगन नारंग और मनु भाकर जैसे निशानेबाजों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का तिरंगा लहराया है। 2008 के बीजिंग ओलंपिक में अभिनव बिंद्रा ने भारत को शूटिंग में पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक दिलाया, जिसने इस खेल के विकास को नई दिशा दी।
आज शूटिंग भारत के सबसे सफल ओलंपिक खेलों में से एक मानी जाती है, जहां नई पीढ़ी निरंतर विश्व स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही है। आशा है कि भविष्य में भारत के निशानेबाज ओलंपिक में अपने पदकों की संख्या बढ़ाएंगे।