क्या सैयद शाहिद हकीम ने भारतीय फुटबॉल के स्वर्ण युग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई?

सारांश
Key Takeaways
- सैयद शाहिद हकीम का फुटबॉल में योगदान अमिट है।
- उन्होंने अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए कोचिंग में करियर बनाया।
- हकीम साहब ने 1982 एशियन गेम्स में सहायक कोच के रूप में काम किया।
- उन्होंने करीब 50 वर्षों तक फुटबॉल जगत में सक्रिय रहे।
- उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
नई दिल्ली, 21 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। सैयद शाहिद हकीम भारतीय फुटबॉल के स्वर्णिम युग के उन खिलाड़ियों और कोचों में से एक हैं, जिन्होंने अत्यधिक महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्हें 'हकीम साहब' के नाम से जाना जाता है, जिन्होंने कोच और व्यवस्थापक के रूप में फुटबॉल को एक नई दिशा दी। वे उस शख्सियत के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने भारतीय फुटबॉल को उसके स्वर्ण युग में पहुंचाया।
23 जून 1939 को ब्रिटिश भारत में जन्मे सैयद शाहिद हकीम ने यह खेल अपने पिता से विरासत में पाया। उनके पिता, सैयद अब्दुल रहीम, भारत के सबसे महान कोचों में से एक माने जाते हैं। अब्दुल रहीम ने दो बार एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीते और उनकी कोचिंग में भारतीय फुटबॉल टीम 1956 के मेलबर्न ओलंपिक में सेमीफाइनल तक पहुंची थी।
शाहिद हकीम ने 1960 में सर्विसेज फुटबॉल टीम के साथ अपने करियर की शुरुआत की। वे सेंट्रल मिडफील्डर के रूप में खेलते थे और जब गेंद उनके पास होती, तो विपक्षी टीम को आसानी से छका देते थे।
हकीम साहब 1960 ओलंपिक के लिए प्रशिक्षित भारतीय टीम का हिस्सा थे, जिसकी ट्रेनिंग उनके पिता ने ही की थी, लेकिन दुर्भाग्यवश शाहिद हकीम उस ओलंपिक टीम में जगह नहीं बना सके।
एक समय था, जब भारत को फुटबॉल में अद्भुत खेल के कारण 'एशिया का ब्राजील' कहा जाता था। उस स्वर्णिम दौर में इस खिलाड़ी ने अपनी शानदार स्किल्स के बल पर एक खास पहचान बनाई। हालांकि, 1960 ओलंपिक के बाद वे 1962 एशियन गेम्स के लिए चयनित भारतीय टीम में भी जगह नहीं बना सके, जबकि भारत ने उस समय एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीता था।
शाहिद हकीम भारतीय वायु सेना में स्क्वाड्रन लीडर थे और उन्होंने 1966 तक खेलना जारी रखा। इसके बाद, उन्होंने अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए कोचिंग में करियर बनाया।
शाहिद हकीम 1982 एशियन गेम्स में पीके बनर्जी के साथ भारतीय फुटबॉल टीम के सहायक कोच रहे। उन्होंने हिंदुस्तान एफसी, सालगांवकर एससी, और बंगाल क्लब मुंबई को कोचिंग दी और 1998 में डूरंड कप जीतने वाली टीम के प्रबंधक रहे।
करीब 50 वर्षों तक फुटबॉल जगत से जुड़े रहने वाले शाहिद हकीम एक फीफा रेफरी भी रहे। उन्होंने 1988 एएफसी एशियन कप में अंपायरिंग की। इसके अलावा, उन्होंने स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) के क्षेत्रीय निदेशक का पद भी संभाला।
'ध्यानचंद पुरस्कार' और 'द्रोणाचार्य पुरस्कार' से सम्मानित शाहिद हकीम 22 अगस्त 2021 को इस दुनिया को छोड़ गए।