क्या सांसद अशोक कुमार मित्तल ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को ओपन लेटर लिखा?

सारांश
Key Takeaways
- अशोक कुमार मित्तल का ओपन लेटर एक महत्वपूर्ण बयान है।
- अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है।
- भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
- अमेरिकी कंपनियां भारत से 80 अरब डॉलर से ज्यादा की कमाई करती हैं।
- भारत को एकजुट होकर अमेरिकी कंपनियों के खिलाफ कदम उठाने की आवश्यकता है।
नई दिल्ली, 7 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सांसद डॉ. अशोक कुमार मित्तल ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को एक ओपन लेटर लिखा है। इस पत्र में उन्होंने भारत पर लगाए गए अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त की है।
मित्तल ने पत्र में उल्लेख किया कि 6 अगस्त को अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाया, जिससे कुल टैरिफ 50 प्रतिशत हो गया है। यह कदम भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने की गतिविधियों के कारण उठाया गया है।
उन्होंने इसे दो रणनीतिक साझेदार देशों के बीच संबंधों के खिलाफ बताया और कहा कि यह एकतरफा और निराशाजनक कदम है।
मित्तल ने ट्रंप के उस बयान पर भी प्रतिक्रिया दी, जिसमें उन्होंने भारत को ‘डेड इकोनॉमी’ कहा था।
उन्होंने लिखा, "आपने भारत को ‘डेड इकोनॉमी’ कहा, जबकि यही भारत आज दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जल्द ही तीसरे स्थान पर पहुंचेगा। यह दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था भी है।"
उन्होंने यह भी बताया कि अमेरिकी कंपनियां भारत से हर साल 80 अरब डॉलर से ज्यादा की कमाई करती हैं, जिसमें शिक्षा, तकनीक, वित्त और बौद्धिक संपदा जैसे क्षेत्र शामिल हैं। भारत तीसरा सबसे बड़ा एयर ट्रांसपोर्ट मार्केट है, जहां 2022 में 2.45 अरब डॉलर के सौदे हुए थे। साथ ही, अमेरिकी डिजिटल इकोनॉमी काफी हद तक भारतीय कोड पर निर्भर करती है।
मित्तल ने सवाल उठाया कि जब अमेरिका खुद रूस से यूरेनियम, पैलेडियम और रासायनिक पदार्थों का आयात करता है, और उसका करीबी सहयोगी यूरोपीय संघ भी 67.5 अरब यूरो से ज्यादा का व्यापार रूस के साथ कर चुका है, तो भारत पर रूस से तेल न खरीदने का दबाव डालना क्या दोहरे मापदंड नहीं है?
पत्र के माध्यम से उन्होंने याद दिलाया कि 7 अगस्त 1905 को स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जिसमें विदेशी नियंत्रण के खिलाफ आर्थिक आत्मनिर्भरता की बात उठाई गई थी। यदि आज भारत के 146 करोड़ लोग इस भावना को अपनाकर अमेरिकी कंपनियों के खिलाफ रणनीतिक कदम उठाएं, तो इसका प्रभाव कहीं अधिक गंभीर हो सकता है।