क्या अब्राहम लिंकन ने 1 जनवरी 1863 को अमेरिका का भविष्य लिखा?
सारांश
Key Takeaways
- 1 जनवरी 1863 को लिंकन ने एमैंसिपेशन प्रोक्लेमेशन पर हस्ताक्षर किए।
- यह दस्तावेज दास प्रथा के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम था।
- इसने युद्ध की दिशा और अंतरराष्ट्रीय राजनीति को बदल दिया।
- लगभग 1.8 लाख अश्वेत अमेरिकी यूनियन सेना में शामिल हुए।
- 1865 में 13वें संविधान संशोधन ने दास प्रथा को अवैध घोषित किया।
नई दिल्ली, 31 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। 1863 का पहला दिन था। 1 जनवरी की दोपहर को वॉशिंगटन डी.सी. में व्हाइट हाउस का एक कमरा असामान्य रूप से शांति से भरा हुआ था। सुबह से, राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन नए साल की शुभकामनाएं देने आए सैकड़ों लोगों से हाथ मिला चुके थे। उनका दायां हाथ थक चुका था और हल्का-सा कांप भी रहा था। मेज पर रखा था एक ऐसा दस्तावेज, जो अमेरिकी इतिहास की दिशा को बदलने वाला था: ‘एमैंसिपेशन प्रोक्लेमेशन’.
लिंकन कुछ क्षण रुके। उन्होंने कहा कि यदि उनके हस्ताक्षर कांपते हुए हुए, तो आने वाली पीढ़ियां समझ सकती हैं कि राष्ट्रपति अपने निर्णय को लेकर संकोच में थे। इसलिए उन्होंने थोड़ी देर इंतजार किया, हाथ को स्थिर किया, और फिर हस्ताक्षर किए। इतिहासकार जेम्स एम. मैकफर्सन इस क्षण को अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'बैटल क्राई ऑफ फ्रीडम' में प्रतीकात्मक बताते हैं। यह क्षण अमेरिका के नैतिक साहस का प्रतीक बन गया।
यही वह दिन था जब अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने आधिकारिक रूप से 'एमैंसिपेशन प्रोक्लेमेशन' लागू किया। यह घोषणा उस समय आई जब अमेरिका गृहयुद्ध के बीच था। 1861 से प्रारंभ हुआ यह युद्ध केवल राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई नहीं थी; इसकी जड़ में दास प्रथा जैसी अमानवीय व्यवस्था थी, जिसने अमेरिकी समाज को दो भागों में बांट दिया था।
जेम्स एम. मैकफर्सन के अनुसार, लिंकन शुरू में दास प्रथा खत्म करने के मसले पर बेहद सतर्क थे। उनका मुख्य उद्देश्य संघ को बचाना था। लेकिन जैसे-जैसे युद्ध बढ़ा, यह स्पष्ट होता गया कि बिना गुलामी की व्यवस्था को चुनौती दिए संघ को बचाना संभव नहीं है। यह अब केवल संघ बनाम विद्रोह नहीं, बल्कि स्वतंत्रता बनाम गुलामी का संघर्ष बन गया।
यह घोषणा तकनीकी रूप से उन सभी दासों को मुक्त करती थी जो विद्रोही दक्षिणी राज्यों में रहते थे। विडंबना यह थी कि जहां संघ का सीधा नियंत्रण था, वहां यह आदेश तुरंत लागू नहीं हुआ। फिर भी इसका असर कागजी सीमाओं से कहीं आगे गया। जैसे-जैसे यूनियन सेना दक्षिण की ओर बढ़ी, दास इस घोषणा को अपनी आजादी का आधार मानने लगे। कई जगहों पर इसे सैनिकों से जोर-जोर से पढ़वाया गया और उसी क्षण गुलामी की जंजीरें तोड़ दी गईं।
इस घोषणा ने युद्ध की दिशा ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति को भी बदल दिया। ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों, जो कॉन्फेडरेसी को मान्यता देने पर विचार कर रहे थे, अब खुलकर समर्थन नहीं कर सके। गुलामी के खिलाफ स्पष्ट रुख के बाद दक्षिणी राज्यों के साथ खड़ा होना नैतिक रूप से असंभव हो गया। इस तरह लिंकन का यह कदम अमेरिका को वैश्विक मंच पर भी एक नैतिक बढ़त दिलाने वाला साबित हुआ।
घरेलू स्तर पर भी इसके गहरे प्रभाव पड़े। 'एमैंसिपेशन प्रोक्लेमेशन' के बाद लगभग 1.8 लाख अश्वेत अमेरिकी यूनियन सेना में शामिल हुए। आगे चलकर 1865 में 13वें संविधान संशोधन ने अमेरिका में दास प्रथा को पूरी तरह अवैध घोषित कर दिया।
इस प्रकार, 1 जनवरी 1863 को किया गया वह हस्ताक्षर—जिससे पहले लिंकन ने अपने कांपते हाथ को स्थिर होने दिया—एक प्रशासनिक कार्य नहीं था, बल्कि वह क्षण अमेरिकी इतिहास का नैतिक मोड़ था।