क्या समस्याओं के समाधान के लिए एक स्पष्ट, यथार्थवादी और प्रगतिशील रोडमैप जरूरी है: अखिलेश यादव?
Key Takeaways
- समस्याओं का समाधान एक स्पष्ट रोडमैप के माध्यम से हो सकता है।
- एआई का कृषि और स्वास्थ्य में बढ़ता प्रभाव।
- राजनीति को प्रगतिशील होना चाहिए।
- वोटर लिस्ट में मतदाता के अधिकारों की रक्षा आवश्यक है।
- राजनीति में विभाजन से बचना चाहिए।
लखनऊ, 12 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शुक्रवार को हैदराबाद में पहुँचने पर सपा के नेताओं, कार्यकर्ताओं और आम जनता द्वारा भव्य स्वागत का अनुभव किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भाजपा एसआईआर के माध्यम से एनआरसी लागू कर रही है।
अखिलेश यादव ने कहा कि शनिवार को हैदराबाद में आयोजित 'विजन इंडिया: एआई समिट' में शामिल होंगे, जहां देश के भविष्य, तकनीकी परिवर्तन और एआई के बढ़ते प्रभाव पर गहन चर्चा होगी। उन्होंने बताया कि भारत विभिन्न क्षेत्रों में कठिन दौर से गुजर रहा है और समस्याओं के समाधान के लिए एक स्पष्ट, यथार्थवादी और प्रगतिशील रोडमैप आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि कृषि, स्वास्थ्य और तकनीकी क्षेत्रों में एआई का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। हैदराबाद ने तकनीकी क्षेत्र में देश में सबसे अधिक प्रगति दिखाई है, इसलिए सपा ने 'विजन इंडिया' कार्यक्रम यहीं आयोजित किया। सपा प्रमुख ने कहा कि देश को राजनीतिक विभाजन नहीं, बल्कि दृश्य की आवश्यकता है। राजनीति को प्रगतिशील होना चाहिए, नकारात्मक नहीं। वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर उन्होंने गंभीर आरोप लगाए।
उन्होंने चुनाव आयोग को सुझाव दिया कि वोट बढ़ाने का कार्य करना चाहिए, लेकिन उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर वोट हटाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जहां भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है, वहां वोट काटे जा रहे हैं। यह लोकतंत्र के खिलाफ एक षड्यंत्र है। अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि एसआईआर की प्रक्रिया एनआरसी के समान है, जिसमें लोगों से अनावश्यक दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, जबकि आधार कार्ड में पहले से ही सभी बायोमेट्रिक जानकारी मौजूद है। भाजपा जनता को परेशान करने की राजनीति करती है, चाहे वह नोटबंदी हो, जीएसटी, महंगाई, कोविड, या अब एसआईआर।
उन्होंने दावा किया कि उत्तर प्रदेश में लगभग तीन करोड़ मतदाताओं के वोट कटने जा रहे हैं, जो लोकतांत्रिक अधिकारों की खुली अवहेलना है। सपा मुखिया ने वंदे मातरम पर कहा कि जिन्होंने आज़ादी के आंदोलन में वंदे मातरम नहीं गाया, वे आज राष्ट्रवाद का दिखावा कर रहे हैं।