क्या महमूद गजनवी के दौर में अलबरूनी ने भारत की संस्कृति को समझा और सराहा?
सारांश
Key Takeaways
- अलबरूनी ने भारतीय संस्कृति का गहन अध्ययन किया।
- उन्होंने 'किताब-उल-हिंद' में भारतीय समाज का वर्णन किया।
- उनके दृष्टिकोण से हमें उस समय के भारत की संस्कृति की झलक मिलती है।
- अलबरूनी ने अरबी में संस्कृत ग्रंथों का अनुवाद किया।
- उन्होंने महमूद गजनवी के शासन काल में भारत का अध्ययन किया।
नई दिल्ली, 12 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत पर अरबी भाषा में कोई पुस्तक होना साहित्यिक क्षेत्र में एक अद्वितीय और असामान्य घटना है। यह देखना आश्चर्यजनक है कि एक विदेशी लेखक ने हिंदुओं को अपने अध्ययन का प्रिय विषय बनाकर उन पर एक पुस्तक लिखी। हम चर्चा कर रहे हैं एक फारसी विद्वान, धर्मज्ञ और विचारक अलबरूनी की।
अलबरूनी का जन्म 973 ईस्वी में ख्वारिज्म (वर्तमान उज्बेकिस्तान) में हुआ। उन्होंने बचपन से ही अरबी और फारसी भाषाओं में दक्षता प्राप्त की। उन्होंने कुरान, व्याकरण, इस्लामी धर्मशास्त्र और कानून की औपचारिक शिक्षा ली। इसके साथ ही, यूनानी विचारधारा पर आधारित गैर-अरबी विषयों जैसे खगोल विज्ञान, गणित और चिकित्सा का भी गहन अध्ययन किया।
अलबरूनी को अपना पहला सरकारी पद ख्वारिज्म के अफरेग शासक के शासन में खगोलशास्त्री के रूप में मिला था। अफरेग उस समय ख्वारिज्म की राजधानी काथ के शासक थे, जहां अलबरूनी का बचपन और प्रारंभिक जीवन बीता। अलबरूनी को प्रारंभिक जीवन में ही युद्ध और निर्वासन का सामना करना पड़ा।
इस्लाम की शासक प्रवृत्ति का परिचय उस मुसलमान बादशाह के कार्यों से मिलता है, जिसके शासन काल में अलबरूनी ने अपनी पुस्तक लिखी। अपने जीवन में अलबरूनी ने 140 किताबें लिखीं, जिनमें 'किताब-उल-हिंद' भी है, जिसमें भारतीय संस्कृति और समाज का विस्तृत वर्णन है।
भारतीय इतिहास में महमूद गजनवी को केवल मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ने वाले के रूप में दर्शाया जाता है। लेकिन, यह सच है कि उसी के राज में अलबरूनी नाम का एक विद्वान मौजूद था, जिसने हिंदुओं की संस्कृति और संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया और संस्कृत की किताबों का अरबी में अनुवाद किया। इस्लाम की श्रेष्ठता पर विश्वास रखते हुए भी वह भारतीय रचनाओं की प्रशंसा करता था।
अलबरूनी ने भारत में एक वैदेशिक सभ्यता को देखा जो बड़ी विचित्र और हैरान करने वाली थी, लेकिन इस सभ्यता को भी विदेशी आक्रांता हड़पना चाहते थे। अलबरूनी का समय, अर्थात गजनी के महमूद का काल, भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता का अंतिम काल था। महमूद के आने से पहले भी, विदेशी हमलावरों ने भारत के कई हिस्सों को जीता था, लेकिन वे भारतीय समाज का हिस्सा बनकर रह गए। जिस भारत का अलबरूनी ने चित्रण किया है, वह उस समय का भारत था, जब उसका राष्ट्रीय अस्तित्व मिटाने का प्रयास किया जा रहा था। उसकी सभ्यता उस समय वैदिक संस्कृति थी।
अलबरूनी ने केवल काबुल नदी की घाटी और पंजाब ही देखे थे। वह स्वयं लिखते हैं कि "मैं हिंदुओं के देश में इन स्थानों से आगे नहीं गया।" इसलिए यह स्पष्ट है कि उन्होंने सिंध और कश्मीर नहीं देखे थे। दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर उन्होंने दो कोट देखे थे, एक का नाम वह राजगिरि और दूसरे का लहूर लिखते हैं। हालाँकि, यह स्पष्ट नहीं है कि ये स्थान कहाँ थे।
अलबरूनी ने जो कुछ भी यहाँ देखा और सुना, उसी के आधार पर अपना वृत्तान्त लिखा। संतराम वी. ने 'अलबरूनी का भारत' में इस बारे में विस्तार से उल्लेख किया है। अगर मुस्लिम समुदाय के लोग अलबरूनी की पुस्तकों पर गर्व करते हैं, तो हिंदू भी इसे विशेष मान सकते हैं, क्योंकि एक सच्चा विद्वान उनके पूर्वजों की उस समय की सभ्यता का पूरा हाल लिख गया है।
हो सकता है कि कुछ लोग किताब की कई बातों से सहमत न हों, और उसकी कुछ टिप्पणियाँ उनके दिल को चोट पहुँचाएँ, लेकिन उन्हें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि उसका उद्देश्य ऐतिहासिक तथ्यों को जानना और उन्हें उनके यथार्थ रूप में प्रकट करना है। उन्हें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कई अन्य स्थलों पर अलबरूनी ने उनकी प्रशंसा भी की।
अलबरूनी की मृत्यु लगभग 1048 ईस्वी में 13 दिसंबर को गजनी में हुई थी।