क्या आयुर्वेद में शोध को बढ़ावा देना सरकार की प्राथमिकता है? : प्रतापराव जाधव

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क्या आयुर्वेद में शोध को बढ़ावा देना सरकार की प्राथमिकता है? : प्रतापराव जाधव

सारांश

आयुष मंत्रालय के अधीन अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान ने शल्य चिकित्सा 2025 का उद्घाटन किया, जिसमें आयुर्वेद में शोध के महत्व पर जोर दिया गया। इस सम्मेलन ने पारंपरिक चिकित्सा की सफलता के लिए नवाचार और सहयोग को प्रोत्साहित किया। जानें इस महत्वपूर्ण आयोजन के बारे में और कैसे यह स्वास्थ्य सेवा में आयुर्वेद के योगदान को बढ़ावा देगा।

Key Takeaways

  • आयुर्वेद में शोध को बढ़ावा देने की प्राथमिकता।
  • आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के साथ आयुर्वेदिक शल्य चिकित्सा का एकीकरण।
  • >लाइव सर्जिकल प्रदर्शन से ज्ञान का आदान-प्रदान।
  • आधुनिक डिजिटल प्लेटफार्मों का उपयोग।
  • राष्ट्रीय सुश्रुत सम्मान समारोह का आयोजन।

नई दिल्ली, १४ जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। आयुष मंत्रालय के अधीन अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआईआईए), नई दिल्ली ने सुश्रुत जयंती के उपलक्ष्य में १३ से १५ जुलाई तक आयोजित शल्य तंत्र पर तीसरे राष्ट्रीय सम्मेलन, शल्य चिकित्सा २०२५ का सफलतापूर्वक उद्घाटन किया।

एआईआईए के शल्य तंत्र विभाग द्वारा प्रो. (डॉ.) योगेश बडवे के नेतृत्व में उनकी आयोजन समिति के साथ और राष्ट्रीय सुश्रुत संघ के सहयोग से आयोजित यह राष्ट्रीय संगोष्ठी एनएसए के २५वें वार्षिक सम्मेलन का एक हिस्सा थी।

भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रतापराव गणपतराव जाधव ने उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण के अनुरूप आयुर्वेद में शोध को आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि शोध को बढ़ावा देना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता बनी रहनी चाहिए। कठोर वैज्ञानिक जांच के माध्यम से हमारी पारंपरिक पद्धतियों की प्रभावकारिता विश्व स्तर पर स्थापित की जा सकती है। भारत सरकार ने पहले ही आयुर्वेदिक चिकित्सकों को ३९ शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं और १९ अतिरिक्त ऑपरेशन करने के लिए अधिकृत किया है, जिससे स्वास्थ्य सेवा के लिए एकीकृत दृष्टिकोण को मजबूती मिली है। इसके अतिरिक्त उपचार की गुणवत्ता और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए सर्जिकल प्रोटोकॉल का मानकीकरण आवश्यक है।

आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने आयुर्वेद और प्रौद्योगिकी के माध्यम से नवाचार में भारत के नेतृत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने याद दिलाया कि सितंबर २०२४ में एआईआईए और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा आयोजित एक वैश्विक तकनीकी बैठक में पारंपरिक चिकित्सा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर एक तकनीकी संक्षिप्त विवरण जारी किया गया था। आयुष स्वदेशी चैटबॉट, एक एकीकृत आयुष मास्टर एप्लिकेशन और एएचएमआईएस, आयुष ई-एलएमएस, आयुष अनुसंधान पोर्टल और नमस्ते योग ऐप जैसे २२ से अधिक डिजिटल प्लेटफार्मों के एकीकरण जैसे उपकरणों के साथ एआई अनुप्रयोगों को भी आगे बढ़ा रहा है। भारत डब्ल्यूएचओ-आईटीयू एफजी-एआई4एच पहल में भागीदारी के माध्यम से वैश्विक एआई शासन में भी योगदान दे रहा है।

इस अवसर पर बोलते हुए प्रो. (डॉ.) मंजूषा राजगोपाला ने कहा कि यह आयोजन आधुनिक स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रणालियों के साथ शास्त्रीय आयुर्वेदिक शल्य चिकित्सा सिद्धांतों को एकीकृत करने के एआईआईए के मिशन को दर्शाता है। उन्होंने आगे कहा कि शल्याकॉन २०२५ युवा आयुर्वेदिक शल्य चिकित्सकों को उभरती शल्य चिकित्सा पद्धतियों का अवलोकन करने और उनसे जुड़ने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करता है।

कार्यक्रम के दौरान १३-१४ जुलाई को लाइव सर्जिकल प्रदर्शन हुए, जिनमें १० लेप्रोस्कोपिक/एंडोस्कोपिक प्रक्रियाएं और १६ एनोरेक्टल सर्जरी सफलतापूर्वक की गईं। इसके अलावा शल्य तंत्र में मानकीकरण और नवाचार पर वैज्ञानिक सत्र, पोस्टर प्रस्तुतियां और विशेषज्ञ पैनल चर्चाएं भी हुईं।

आयोजन अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) योगेश बडवे ने बताया कि एआईआईए अब प्रतिदिन २००० से अधिक रोगियों की सेवा करता है और इसका शल्य तंत्र विभाग नियमित रूप से सामान्य, लेप्रोस्कोपिक, स्तन, एनोरेक्टल और मूत्र संबंधी सर्जरी करता है। ये प्रगतियां रोगी-केंद्रित एकीकृत देखभाल प्रदान करने में आयुर्वेद की प्रासंगिकता को रेखांकित करती हैं।

'नवाचार, एकीकरण और प्रेरणा' विषय के साथ शल्यकॉन २०२५ आयुर्वेदिक शल्य चिकित्सा पद्धति में अनुसंधान, सहयोग और ज्ञान-साझाकरण को गति प्रदान करेगा, जिससे एकीकृत स्वास्थ्य सेवा में भारत के नेतृत्व को बल मिलेगा।

प्रतिष्ठित उद्घाटन समारोह में राष्ट्रीय सुश्रुत सम्मान समारोह आयोजित किया गया, जहां आयुर्वेद से जुड़ी प्रतिष्ठित हस्तियों को सम्मानित किया गया। मुख्य अतिथियों द्वारा एक सम्मेलन स्मारिका पुस्तक का विमोचन भी किया गया, साथ ही एक स्नातकोत्तर सारांश भी प्रस्तुत किया गया।

अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआईआईए) ऐसा पहला संस्थान है, जिसकी स्थापना एम्स की तर्ज पर की गई है। इसे प्रधानमंत्री द्वारा १७ अक्टूबर, २०१७ को दूसरे आयुर्वेद दिवस पर नई दिल्ली में राष्ट्र को समर्पित किया गया था। इसका उद्देश्य आयुर्वेद तृतीयक स्वास्थ्य सेवा के लिए एक उत्कृष्ट उत्कृष्टता केंद्र बनना और मानवता के लाभ के लिए आयुर्वेद के माध्यम से शिक्षा, अनुसंधान और रोगी देखभाल के उच्चतम मानक स्थापित करना है। यह आयुष मंत्रालय के अंतर्गत एनएबीएच से मान्यता प्राप्त तृतीयक देखभाल अस्पताल और स्नातकोत्तर प्रशिक्षण एवं शोध केंद्र है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथियों में आयुष मंत्रालय के सचिव पद्मश्री वैद्य राजेश कोटेचा और प्रो. पी हेमंत कुमार, सचिव, एनएसए शामिल थे। इसके अतिरिक्त, प्रो. (डॉ.) मंजूषा राजगोपाला, निदेशक (प्रभारी); प्रो. महेश व्यास, डीन, पीएचडी प्रोग्राम, एआईआईए; प्रो. एमएम राव, चिकित्सा अधीक्षक, एआईआईए; प्रो. (डॉ.) योगेश बडवे, डीन पीजी के साथ-साथ एआईआईए के अन्य वरिष्ठ संकाय और प्रशासनिक कर्मचारी भी उपस्थित थे। इस कार्यक्रम में भारत, नेपाल और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों के विद्वानों, आयुर्वेदिक और आधुनिक शल्य चिकित्सकों, शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों और छात्रों सहित ५०० से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।

Point of View

आयुर्वेद में शोध को बढ़ावा देने से न केवल पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों का विकास होगा, बल्कि यह वैश्विक स्वास्थ्य में भी महत्वपूर्ण योगदान देगा।
NationPress
21/07/2025

Frequently Asked Questions

आयुर्वेद में शोध का क्या महत्व है?
आयुर्वेद में शोध से पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों की प्रभावकारिता को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्थापित किया जा सकता है।
शल्य चिकित्सा 2025 सम्मेलन कब और कहाँ हुआ?
यह सम्मेलन 13 से 15 जुलाई, 2023 को नई दिल्ली में आयोजित किया गया।
इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य क्या था?
इसका मुख्य उद्देश्य आयुर्वेद में नवाचार और सहयोग को बढ़ावा देना था।