क्या दलित युवक की हिरासत में हुई मौत का मामला गंभीर है?

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क्या दलित युवक की हिरासत में हुई मौत का मामला गंभीर है?

सारांश

बेंगलुरु में दलित युवक की हिरासत में मौत का मामला तूल पकड़ रहा है। कर्नाटक सरकार ने इस गंभीर मामले की जांच सीआईडी को सौंप दी है। पुलिस की कार्रवाई और परिजनों के गुस्से के बीच यह घटना समाज के लिए एक बड़ा सवाल बन गई है।

Key Takeaways

  • दलित युवक की हिरासत में मौत का मामला गंभीर है।
  • कर्नाटक सरकार ने सीआईडी को जांच का जिम्मा सौंपा है।
  • पुलिस ने एक इंस्पेक्टर और दो कांस्टेबल को निलंबित किया है।
  • परिजनों ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
  • नागरिक अधिकार समूहों ने परिवार को सुरक्षा प्रदान करने की मांग की है।

बेंगलुरु, 3 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। बेंगलुरु के विवेकनगर पुलिस स्टेशन में एक दलित युवक की हिरासत में मौत का मामला गहराता जा रहा है। इस घटना के खिलाफ लोगों की नाराजगी और मृतक के परिजनों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। इसी बीच, कर्नाटक सरकार ने इस केस को क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन डिपार्टमेंट (सीआईडी) को सौंप दिया है।

मीडिया से बातचीत में राज्य के गृहमंत्री जी. परमेश्वर ने कहा, "इस मामले में हमने एक इंस्पेक्टर और दो कांस्टेबल को निलंबित कर दिया है। सीआईडी को जांच के आदेश दिए गए हैं। रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।"

मृतक की मां ने मदनायकनहल्ली पुलिस स्टेशन में पुलिस अधिकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है।

पीड़ित की मां आदिलक्ष्मी का कहना है कि उनके 31 वर्षीय बेटे दर्शन उर्फ ​​सिंगमलाई, जो सोनेनहल्ली का निवासी था, की 26 नवंबर को एक पुनर्सुधार केंद्र में मौत हो गई।

उन्होंने आरोप लगाया कि उसे 13 नवंबर को विवेकनगर पुलिस ने हिरासत में लिया था और तीन दिनों तक "गैरकानूनी तरीके से हिरासत" में रखा गया, जहां उसे यातना दी गई।

इसके बाद, उसे 15 नवंबर को सुधार केंद्र में छोड़ दिया गया। पुनर्सुधार केंद्र के स्टाफ ने उन्हें 26 नवंबर को बताया कि उनके बेटे की मौत हो गई है।

आदिलक्ष्मी ने आरोप लगाया कि यह मौत पुलिस की यातना और पुनर्सुधार केंद्र के स्टाफ की लापरवाही का नतीजा है।

विवेकनगर पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर और अन्य अधिकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई है।

मृतक की पत्नी अश्विनी ने भी आरोप लगाया कि 29 नवंबर को सादे कपड़ों में पुलिसवाले उनके पास आए और उन पर शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया।

पत्नी के अनुसार, पुलिसवालों ने उनके पति को लाठियों और पाइप से पीटा और घटना को छिपाने के लिए पुनर्सुधार केंद्र में शिफ्ट कर दिया।

दर्शन ने कथित तौर पर एक चर्च में हथियार दिखाकर दहशत फैलाई थी। खबर है कि दो पुलिसवाले उसके घर आए, उसे पीटा और ले गए। उस पर केस नहीं किया गया क्योंकि वह नशे में था। परिवार ने अनुरोध किया था कि उसे पुनर्सुधार केंद्र में भर्ती कराया जाए क्योंकि वह ड्रग्स के नशे में था।

अपनी शिकायत में, आदिलक्ष्मी ने कहा कि जब वह लॉकअप में बंद अपने बेटे से मिलने गईं, तो वह चल नहीं पा रहा था।

नागरिक अधिकार समूहों का कहना है कि यह मामला काफी गंभीर है और परिवार को खतरा भी है। इसे देखते हुए उन्हें सुरक्षा मुहैया कराने की मांग की गई है।

सीआईडी ने भारतीय न्याय संहिता और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) एक्ट के तहत केस दर्ज कर आगे की जांच शुरू कर दी है।

Point of View

तो यह स्पष्ट है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे उसकी जाति या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो, हिरासत में उचित मानवीय व्यवहार का हकदार है। पुलिस की कार्यप्रणाली और सुधार केंद्रों की जिम्मेदारी पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। यह घटना न केवल एक व्यक्ति की मौत का मामला है, बल्कि समाज में गहरी असमानताओं और मानवाधिकारों के उल्लंघन की ओर इशारा करती है।
NationPress
07/12/2025

Frequently Asked Questions

क्या इस मामले में सीआईडी जांच सही है?
हाँ, कर्नाटक सरकार ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सीआईडी को जांच सौंपा है।
मृतक के परिजनों ने क्या आरोप लगाए हैं?
परिजनों का आरोप है कि पुलिस ने युवक को गैरकानूनी तरीके से हिरासत में रखा और यातना दी।
पुलिस ने इस मामले में क्या कार्रवाई की है?
पुलिस ने एक इंस्पेक्टर और दो कांस्टेबल को निलंबित किया है।
क्या नागरिक अधिकार समूहों ने इस पर प्रतिक्रिया दी है?
हाँ, नागरिक अधिकार समूहों ने इस मामले को गंभीर मानते हुए परिवार को सुरक्षा मुहैया कराने की मांग की है।
क्या यह मामला जातिगत भेदभाव का संकेत है?
यह मामला जातिगत असमानता और मानवाधिकारों के उल्लंघन की ओर इशारा करता है।
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