क्या बांग्लादेश में मॉब लिंचिंग में 635 से अधिक लोग मारे गए?

सारांश
Key Takeaways
- बांग्लादेश में 637 लोग मॉब लिंचिंग की घटनाओं में मारे गए।
- राजनीतिक अस्थिरता ने कानून-व्यवस्था को प्रभावित किया।
- भीड़ हिंसा के पीछे के कारणों में अफवाहें और सांप्रदायिक तनाव शामिल हैं।
- सरकार ने समस्या के समाधान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं।
- स्थानीय मानवाधिकार संगठनों की चिंताएं बढ़ी हैं।
ढाका, 3 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। बांग्लादेश में मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त 2024 से जुलाई 2025 के बीच बांग्लादेश में कम से कम 637 लोग मॉब लिंचिंग की घटनाओं के शिकार बने, जिनमें 41 पुलिसकर्मी भी शामिल हैं।
यह घटनाएँ देश के हाल के इतिहास की सबसे घातक श्रृंखलाओं में से एक मानी जा रही हैं। अगस्त 2024 में विद्रोह के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता से हटने के साथ ही राजनीतिक अस्थिरता में वृद्धि हुई, जिसके बाद से बांग्लादेश में भीड़ द्वारा हिंसा में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
कनाडा की प्रतिष्ठित संस्था 'ग्लोबल सेंटर फॉर डेमोक्रेटिक गवर्नेंस' की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में शेख हसीना के शासन के दौरान 51 लिंचिंग की घटनाएँ हुई थीं, लेकिन 2024-25 के दौरान यह संख्या 12 गुना से अधिक बढ़ गई।
4 अगस्त 2024 को जशोर स्थित 'द जबीर जशोर होटल' में 24 लोगों को जलाकर मार दिया गया था। 25 अगस्त 2024 को नारायणगंज के रूपगंज में गाजी टायर्स में 182 लोगों को जलाकर मार दिया गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पीड़ितों के नाम और विवरण सार्वजनिक नहीं किए गए हैं। ग्लोबल सेंटर फॉर डेमोक्रेटिक गवर्नेंस ने बताया कि मीडिया पर कड़ी सेंसरशिप के कारण सभी मॉब लिंचिंग से हुई मौतों की जानकारी एकत्र नहीं कर सके और इस सूची को अपूर्ण माना गया है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि राजनीतिक अस्थिरता और कमजोर सरकारी नियंत्रण के कारण कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ गई। शेख हसीना सरकार के पतन के बाद न्याय व्यवस्था में लोगों का भरोसा टूट गया, जिससे नागरिकों ने कानून अपने हाथ में ले लिया। पुलिस बल कमजोर हो गया, अदालतें ठप हो गईं, और स्थानीय नेता या तो निशाने पर थे या छिप गए थे।
रिपोर्ट के अनुसार, सार्वजनिक स्थान जो पहले कानून द्वारा सुरक्षित थे, अब भीड़ द्वारा हत्या के केंद्र बन गए हैं। ये हत्याएं अक्सर केवल शक, अफवाह या राजनीतिक नाराजगी के कारण हुईं। हिंसा में ज्यादातर मामलों में राजनीतिक या सांप्रदायिक कारण शामिल थे।
स्थानीय मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक, अगस्त 2024 के बाद 70 प्रतिशत से अधिक लिंचिंग के शिकार पूर्व सत्तारूढ़ पार्टी अवामी लीग या इसके छात्र और मजदूर संगठनों से जुड़े थे। अन्य पीड़ितों में धार्मिक अल्पसंख्यक, खासकर हिंदू और अहमदिया मुस्लिम, शामिल थे, जिन्हें सोशल मीडिया पर बिना सबूत के ईशनिंदा या साजिश के आरोपों का सामना करना पड़ा।
बांग्लादेश में एक भयानक घटना 9 जुलाई को मिटफोर्ड अस्पताल के बाहर हुई, जहां हिंदू सामाजिक कार्यकर्ता लाल चंद सोहाग की भीड़ ने सार्वजनिक रूप से हत्या कर दी। उनकी मौत को सोशल मीडिया पर लाइव स्ट्रीम किया गया, जिससे जनता में आक्रोश और डर फैल गया।
ग्लोबल सेंटर फॉर डेमोक्रेटिक गवर्नेंस की रिपोर्ट के अनुसार, गलत सूचना और भड़काऊ सामग्री ने मिनटों में भीड़ को उकसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
एक फेसबुक पोस्ट में दावा किया गया कि एक हिंदू व्यक्ति ने दूसरे समुदाय की भावनाओं को आहत किया, जिसके बाद भीड़ ने हमला किया। इस हमले में दो लोगों की जान चली गई और कई घर जला दिए गए। कुछ घंटों बाद वह पोस्ट झूठी साबित हुई, लेकिन तब तक नुकसान काफी हो चुका था।
मुहम्मद यूनुस की अगुवाई वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने सतर्कता न्याय पर रोक लगाने का वादा किया, लेकिन ये वादे खोखले साबित हुए। भीड़ द्वारा हत्या के मामलों में केवल कुछ गिरफ्तारियां हुईं और बहुत कम लोगों को सजा मिली।
आलोचकों का कहना है कि यूनुस सरकार ने कानून व्यवस्था बहाल करने के बजाय राजनीतिक मजबूती पर ध्यान दिया और पूर्व शासन की किसी भी पहचान को हटाने को प्राथमिकता दी। इससे बांग्लादेश के संस्थानों में लोगों का भरोसा और कम हुआ।
साउथ एशियन नेटवर्क ऑन इकोनॉमिक मॉडलिंग के एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, 71 प्रतिशत बांग्लादेशी युवा मानते हैं कि भीड़ हिंसा अब सार्वजनिक जीवन का नियमित हिस्सा बन चुकी है और 47 प्रतिशत को डर है कि वे राजनीतिक रूप से प्रेरित हमलों का निशाना बन सकते हैं।
रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि अगर पुलिस पुनर्गठन, न्यायिक स्वतंत्रता, डिजिटल फेक न्यूज कंट्रोल और नागरिक शिक्षा सहित तत्काल और प्रणालीगत सुधार नहीं किए गए तो भीड़ बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य का स्थायी हिस्सा बन सकती है।