क्या बीएपीएस के 'मिशन राजीपो' के तहत 40,000 छात्रों ने संस्कृत को संस्कार में बदला?

Click to start listening
क्या बीएपीएस के 'मिशन राजीपो' के तहत 40,000 छात्रों ने संस्कृत को संस्कार में बदला?

सारांश

बीएपीएस का 'मिशन राजीपो' 40,000 बच्चों को संस्कृत श्लोकों के अध्ययन में प्रेरित कर रहा है। यह कार्यक्रम न केवल आध्यात्मिक शिक्षा का प्रचार कर रहा है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में प्रगति के लिए मार्ग प्रशस्त कर रहा है। जानिए इस अनूठे आंदोलन के बारे में।

Key Takeaways

  • संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है।
  • संस्कृत श्लोकों के अध्ययन से मानसिक पवित्रता बढ़ती है।
  • बच्चों को करुणा और नम्रता जैसे मूल्यों का पाठ पढ़ाया जा रहा है।
  • यह कार्यक्रम एक वैश्विक संस्कार-आंदोलन में बदल गया है।
  • संस्कार बचपन में बोए जाने पर भविष्य उज्ज्वल होता है।

नई दिल्ली, 29 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। आज के इस डिजिटल युग में, जहां तकनीक मानसिक शांति को प्रभावित कर रही है, वहां बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था का ‘मिशन राजीपो’ एक अद्वितीय मार्गदर्शक की तरह उभरा है, जो आध्यात्मिक शिक्षा और चरित्र-निर्माण को एक साथ लाता है।

2024 में, परम पूज्य महंत स्वामी महाराज ने एक दिव्य संकल्प लिया कि दुनिया भर के बच्चों को संस्कृत श्लोकों का अध्ययन और पाठ करना चाहिए। उन्होंने कहा, “संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है।” उनका मानना है कि जो बच्चे संस्कृत श्लोकों को सीखते हैं, वे न केवल आध्यात्मिक रूप से, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति करते हैं।

महंत स्वामी महाराज ने एक वर्ष में 10,000 बच्चों को संस्कृत श्लोक कंठस्थ करने का लक्ष्य रखा। यह प्रेरणा एक पवित्र अग्नि बन गई, जिससे 40,000 से अधिक बच्चों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। इनमें से 15,666 बच्चों ने सत्संग दीक्षा ग्रंथ के सभी 315 संस्कृत श्लोकों को पूरी तरह से कंठस्थ किया और परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। हजारों अन्य बच्चे आज भी इस अध्ययन, चिंतन और आत्म-परिवर्तन की यात्रा में आगे बढ़ रहे हैं।

महंत स्वामी महाराज की दृष्टि आध्यात्मिक होने के साथ-साथ वैज्ञानिक भी थी। उन्होंने कहा कि संस्कृत उच्चारण को शुद्ध, शब्द-भंडार को समृद्ध और बुद्धि को तीक्ष्ण बनाती है। नियमित संस्कृत श्लोक-जप से एकाग्रता, स्पष्टता और मानसिक पवित्रता में वृद्धि होती है, जिसे अब आधुनिक विज्ञान भी मान्यता देता है। इस प्रकार, उन्होंने संस्कृत को केवल धार्मिक भाषा नहीं, बल्कि आंतरिक अनुशासन और आत्म-परिवर्तन का आध्यात्मिक विज्ञान बताया।

इन श्लोकों के माध्यम से बच्चे सीख रहे हैं कि सच्चा ज्ञान वही है जो आचरण में उतरे। वे केवल संस्कृत नहीं सीख रहे, बल्कि करुणा, नम्रता, सत्य और सामंजस्य जैसे मूल्यों को आत्मसात कर रहे हैं, जो दिव्य जीवन का सार हैं।

भारत से लेकर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, यूएई, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और अफ्रीका तक — बच्चों ने इस भक्ति और अनुशासन-यज्ञ में भाग लिया। उनके पीछे थे 103 साधुगण, 17,000 स्वयंसेवक, और 25,000 अभिभावक, जिनके सामूहिक प्रयास ने इस पहल को एक वैश्विक संस्कार-आंदोलन में बदल दिया।

यह अभियान सिद्ध करता है कि जब संस्कार बचपन में बोए जाते हैं, तब भविष्य प्रकाश से खिल उठता है। आज के ये बच्चे ही कल के “परंपरा-प्रदीपक” बन रहे हैं - जो आधुनिकता के साथ आध्यात्मिकता, बुद्धि के साथ ईमानदारी, और अध्ययन के साथ प्रेम को जोड़ते हैं।

Point of View

यह कह सकता हूँ कि बीएपीएस का 'मिशन राजीपो' केवल बच्चों के लिए संस्कृत सिखाने का कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक सांस्कृतिक आंदोलन है। यह साबित करता है कि जब संस्कारों का बीजारोपण बचपन में किया जाता है, तो वे भविष्य को उज्ज्वल बनाने में सहायक होते हैं।
NationPress
29/10/2025

Frequently Asked Questions

बीएपीएस का 'मिशन राजीपो' क्या है?
यह एक कार्यक्रम है जो बच्चों को संस्कृत श्लोकों का अध्ययन करने के लिए प्रेरित करता है, जिससे वे आध्यात्मिक और सामाजिक मूल्यों को आत्मसात कर सकें।
इस कार्यक्रम में कितने बच्चे शामिल हुए हैं?
इसमें 40,000 से अधिक बच्चे शामिल हुए हैं।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य क्या है?
इसका उद्देश्य बच्चों में संस्कारों का विकास करना और उन्हें आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करना है।