क्या मोटवानी जडेजा इंस्टीट्यूट फॉर अमेरिकन स्टडीज के उद्घाटन से भारत-अमेरिका संबंधों पर जोर दिया गया?

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क्या मोटवानी जडेजा इंस्टीट्यूट फॉर अमेरिकन स्टडीज के उद्घाटन से भारत-अमेरिका संबंधों पर जोर दिया गया?

सारांश

मोटवानी जडेजा इंस्टीट्यूट फॉर अमेरिकन स्टडीज का उद्घाटन सेमिनार भारत-अमेरिका संबंधों में संवाद और कूटनीति पर जोर देता है। प्रोफेसर (डॉ.) सी. राजा मोहन ने रणनीतिक धैर्य की आवश्यकता पर चर्चा की और कहा कि हमें अमेरिका के इतिहास और संस्कृति को समझने की आवश्यकता है।

Key Takeaways

  • रणनीतिक धैर्य की आवश्यकता है।
  • संवाद और कूटनीति महत्वपूर्ण हैं।
  • भारत और अमेरिका के बीच साझेदारी को मजबूत किया जा सकता है।
  • संस्थान की स्थापना बौद्धिक आधार प्रदान करती है।
  • संस्कृति और इतिहास की गहन समझ जरूरी है।

नई दिल्ली, 1 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। मोटवानी जडेजा इंस्टीट्यूट फॉर अमेरिकन स्टडीज (एमजेआईएएस) के उद्घाटन सेमिनार में नामचीन लेखक और विदेश नीति के विशेषज्ञ प्रोफेसर (डॉ.) सी. राजा मोहन ने कहा कि हमें आज रणनीतिक धैर्य की जरूरत है। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि हम मांगों के सामने नहीं झुकेंगे, बल्कि संवाद के लिए तत्पर रहेंगे। अमेरिका के भीतर परिवर्तन के स्रोतों को समझना आवश्यक है।

सेमिनार का शीर्षक था "संवाद और कूटनीति के माध्यम से अमेरिका-भारत संबंधों को फिर से स्थापित करना"।

यह आयोजन नई दिल्ली में हुआ, जिसका उद्देश्य भारत-अमेरिका नीतिगत संवाद के लिए एक निष्पक्ष मंच को स्थापित करना था, जिसमें गहन चर्चा और रणनीतिक जुड़ाव का एक दिन समर्पित किया गया।

प्रोफेसर (डॉ.) सी. राजा मोहन, जो एमजेआईएएस के विशिष्ट प्रोफेसर और वरिष्ठ फेलो भी हैं, ने कहा कि अमेरिका और भारत, जो दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र हैं, एक मजबूत रणनीतिक और बहुआयामी संबंध साझा करते हैं। यह सहयोग रक्षा, प्रौद्योगिकी, शिक्षा और लोगों के बीच संबंधों में फैला हुआ है, जबकि व्यापार और विनियमन की चुनौतियां इस महत्वपूर्ण साझेदारी को आकार दे रही हैं।

डॉ. मोहन ने कहा, "भारत और अमेरिका के बीच जो कठिनाइयां हैं, उन्हें ध्यान में रखते हुए ऐसे संस्थानों की स्थापना अत्यंत जरूरी है। यह न केवल संबंधों को मजबूत करेगा, बल्कि इसे बौद्धिक आधार प्रदान करेगा। हमें अमेरिका के लंबे इतिहास, उसकी राजनीतिक धारा और सांस्कृतिक पहलुओं की गहरी समझ की आवश्यकता है।"

भारत-अमेरिका संबंधों के विभिन्न चरणों पर चर्चा करते हुए, उन्होंने कहा कि भारत ने 1960 के दशक में तकनीकी सहयोग देखा। पहला भारतीय रिएक्टर, पहला भारतीय उपग्रह, और हरित क्रांति अमेरिकी समर्थन से संभव हुई। हालांकि 1971 में कई घटनाओं ने संबंधों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया। 2000-2005 के बीच चार प्रधानमंत्रियों ने इन बाधाओं को पार करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए।

एमजेआईएएस ने सांसदों, राजनयिकों, व्यापारिक नेताओं और शिक्षाविदों को एकत्रित किया ताकि वे भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने पर विचार-विमर्श कर सकें।

प्रोफेसर (डॉ.) सी. राज कुमार, जो एमजेआईएएस के संस्थापक कुलपति हैं, ने कहा, "हम इस संगोष्ठी का आयोजन ऐसे समय में कर रहे हैं जब अमेरिका-भारत संबंधों में गंभीर चुनौतियां हैं। हमें वर्तमान परिदृश्य को समझकर आगे बढ़ना होगा।"

विशेष संबोधन और मुख्य भाषण क्रमशः राजदूत नागराज नायडू काकनूर और महामहिम जॉर्गन के. एंड्रयूज द्वारा दिए गए। दोनों ने एमजेआईएएस की स्थापना के लिए जेजीयू को बधाई दी और इस संबंध को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका पर जोर दिया।

Point of View

हमें यह समझना होगा कि भारत-अमेरिका संबंध केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आर्थिक भी हैं। इस संबंध को मजबूत करने के लिए निरंतर संवाद और सहयोग आवश्यक है।
NationPress
03/09/2025

Frequently Asked Questions

मोटवानी जडेजा इंस्टीट्यूट फॉर अमेरिकन स्टडीज क्या है?
यह एक संस्थान है जो भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को बेहतर करने के लिए काम कर रहा है।
इस सेमिनार का मुख्य उद्देश्य क्या था?
इसका उद्देश्य अमेरिका-भारत संबंधों को संवाद और कूटनीति के माध्यम से फिर से स्थापित करना था।