क्या अमेरिका से कुछ मुद्दों पर बातचीत और समाधान की जरूरत है? : एस जयशंकर

सारांश
Key Takeaways
- भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक मुद्दे महत्वपूर्ण हैं।
- बातचीत और समाधान की आवश्यकता है।
- रूस से कच्चा तेल खरीद पर टैरिफ अनुचित है।
- मल्टी-अलाइनमेंट नीति का पालन आवश्यक है।
- भारत को अपनी राष्ट्रीय शक्ति को मजबूत करना होगा।
नई दिल्ली, 5 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील में हो रही देरी और रूस से कच्चा तेल खरीदने पर लग रहे अतिरिक्त टैरिफ के बारे में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रविवार को खुलकर अपनी बात रखी।
नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत-अमेरिका मुद्दों पर कहा कि यह सत्य है कि अमेरिका के साथ हमारे कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। इसका एक बड़ा कारण यह है कि हम अब तक ट्रेड डील के लिए किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाए हैं। यही कारण है कि भारत पर एक निश्चित टैरिफ लगाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, एक और टैरिफ भी है, जिसे हम अत्यधिक अनुचित मानते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि हमारे ऊपर दूसरा टैरिफ रूस से कच्चा तेल खरीदने के कारण लगाया गया है, जबकि अन्य देश भी ऐसा कर रहे हैं। यहाँ तक कि उन देशों के लिए भी यह लागू है, जिनके रूस के साथ संबंध हमारे मुकाबले कहीं अधिक विपरीत हैं।
विदेश मंत्री ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि हमें इसे इस स्तर तक ले जाना चाहिए कि यह संबंधों के हर पहलू को प्रभावित करे। समस्याएँ हैं, मुद्दे हैं, लेकिन उन पर बातचीत और समाधान की आवश्यकता है, और यही हम करने का प्रयास कर रहे हैं।
विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कहा कि अमेरिका के साथ एक व्यापारिक समझौता होना चाहिए, लेकिन यह ऐसा होना चाहिए, जिसमें हमारी रेड लाइंस का सम्मान किया जाए।
दूसरी ओर, उन्होंने यह भी कहा कि भारत की विदेश नीति का मुख्य आधार है अधिकतम उपयोगी रिश्ते बनाना, लेकिन यह सुनिश्चित करना कि ये रिश्ते किसी एक देश के साथ विशेष न हों, जिससे अन्य देशों के साथ अवसरों का नुकसान न हो। इसे मल्टी-अलाइनमेंट नीति कहा जाता है, जिसका मतलब है कि भारत अलग-अलग देशों और क्षेत्रों के साथ समान रूप से अच्छे संबंध बनाए रखे।
जयशंकर ने यह भी बताया कि इस नीति को अपनाना चुनौतीपूर्ण है क्योंकि विभिन्न देशों के अलग-अलग हित होते हैं। इसीलिए भारत को हर स्थिति में समझदारी से काम लेना होता है ताकि सभी के साथ संतुलित और लाभकारी रिश्ते बन सकें। हमें अपनी राष्ट्रीय शक्ति के हर पहलू को मजबूत करना होगा। पिछले दस वर्षों में भारत ने इस दिशा में ठोस आधार बनाया है। आने वाले पांच वर्ष वैश्विक स्तर पर भारत के लिए चुनौतीपूर्ण होंगे क्योंकि दुनिया तेजी से बदल रही है। लेकिन, भारत आत्मविश्वास और मजबूती के साथ इन चुनौतियों का सामना करेगा।