क्या भारत की राय ईरान-इजरायल संघर्ष पर कूटनीतिक बातचीत के महत्व को रेखांकित करती है?

सारांश
Key Takeaways
- कूटनीतिक बातचीत ही समाधान है।
- भारत ने आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है।
- ब्रिक्स देशों में विविधता है।
- संयुक्त राष्ट्र में संरक्षण की आवश्यकता है।
- आर्थिक सहयोग के लिए नई पहल आवश्यक है।
नई दिल्ली, 7 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। ब्रिक्स में भारत ने आतंकवाद, ईरान-इजरायल संघर्ष सहित ग्लोबल साउथ के मुद्दों पर अपनी स्थिति को स्पष्ट किया है। विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित प्रेस ब्रीफिंग में सचिव (आर्थिक संबंध) दम्मू रवि ने कहा कि प्रधानमंत्री ने ब्रिक्स में भारत की मजबूत और स्पष्ट नीति को दुनिया के सामने रखा।
दम्मू रवि ने पहलगाम और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर भारत के दृष्टिकोण को उजागर किया। ईरान-इजरायल संघर्ष पर पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा, "संदेश बिल्कुल स्पष्ट है कि कूटनीतिक बातचीत ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है।"
उन्होंने बताया कि पैरा 34 में कुछ महत्वपूर्ण बातें स्पष्ट रूप से बताई गई हैं। सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी देशों ने आतंकवाद की कड़ी निंदा की है। यह निंदा केवल आतंकवादी हमलों की नहीं है, बल्कि उन देशों, संगठनों या व्यक्तियों की भी है जो आतंकवाद को किसी भी रूप में समर्थन, फंडिंग या शरण देते हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि बैठक में सीमा पार से होने वाली आतंकवादी गतिविधियों और इसमें शामिल समूहों का स्पष्ट उल्लेख किया गया। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है, क्योंकि भारत लंबे समय से सीमा पार आतंकवाद का दृढ़ता से जवाब दे रहा है। दम्मू रवि ने इस दौरान यह भी बताया कि भारत वर्षों से संयुक्त राष्ट्र में "अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ व्यापक कन्वेंशन" की पहल करता रहा है।
इस कन्वेंशन का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर आतंकवाद की एक स्पष्ट परिभाषा तय करना और इसके खिलाफ सभी देशों को एक साथ लाना है।
उन्होंने अंतर-व्यापार संबंध पर भी विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स वैश्विक दक्षिण देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं, और ब्रिक्स देशों में विविधताएं हैं। इसलिए, देश विकल्प तलाश रहे हैं। सीमा पार व्यापार करने में सक्षम होने के मामले में अंतर-संचालनीय भुगतान (इंटर ऑपरेबर पेमेंट) तेज मैकेनिज्म है। इसे सफलतापूर्वक लागू किया गया है और हम कई देशों के साथ द्विपक्षीय व्यवस्था में भी प्रवेश कर रहे हैं।
देशों के भीतर इस पर चर्चा हो रही है। हमें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में बातचीत होगी और देश इसे स्वीकार करेगा क्योंकि यह अधिकांश के लिए फायदेमंद है।
दम्मू ने प्रधानमंत्री के संबोधन का उल्लेख करते हुए कहा, "प्रधानमंत्री ने ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान दोहराया कि 20वीं सदी के वैश्विक संगठनों में 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटने की क्षमता का अभाव है, इसलिए उन्होंने बहुपक्षीय संगठनों में सुधार के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने बहुध्रुवीय, समावेशी विश्व व्यवस्था का आह्वान किया और कहा कि वैश्विक शासन संस्थाओं, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, आईएमएफ, विश्व बैंक और डब्ल्यूटीओ को समकालीन वास्तविकताओं और समय को प्रतिबिंबित करने के लिए तत्काल सुधार करना होगा।