क्या भारत ने विश्व बैंक के अनुसार सबसे समतामूलक समाजों में अपनी जगह बनाई है?

सारांश
Key Takeaways
- भारत का गिनी सूचकांक 25.5 है, जो इसे चौथा सबसे समतामूलक देश बनाता है।
- 171 मिलियन भारतीयों को पिछले दशक में गरीबी से बाहर निकाला गया।
- भारत ने आर्थिक विकास के साथ सामाजिक समानता को जोड़ने में प्रगति की है।
- प्रधानमंत्री जन धन योजना और अन्य सरकारी योजनाएं आय समानता को बढ़ावा देती हैं।
- गिनी सूचकांक में सुधार भारत की निरंतर सफलता को दर्शाता है।
नई दिल्ली, 5 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। भारत आज न केवल विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, बल्कि इसे विश्व बैंक के अनुसार दुनिया के सबसे समतामूलक समाजों में से एक भी माना जा रहा है। भारत का गिनी सूचकांक 25.5 है, जो इसे स्लोवाक गणराज्य, स्लोवेनिया और बेलारूस के बाद चौथा सबसे समतामूलक देश बनाता है।
यह भारत जैसे विशाल और विविधता वाले देश के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह दर्शाता है कि भारत की आर्थिक वृद्धि का लाभ सभी वर्गों में समान रूप से पहुंच रहा है। इस सफलता के पीछे गरीबी में कमी, वित्तीय पहुंच का विस्तार और कल्याण सहायता का सीधा लाभ उन लोगों तक पहुंचाना है, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।
गिनी सूचकांक का उपयोग यह समझने के लिए किया जाता है कि किसी देश में व्यक्तियों के बीच आय और संपत्ति का वितरण कितना समान है। इसका मूल्य 0 से 100 के बीच होता है। 0 का अर्थ है पूर्ण समानता, जबकि 100 का अर्थ है पूर्ण असमानता। गिनी इंडेक्स जितना अधिक होगा, देश उतना ही असमान होगा।
विश्व बैंक के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भारत का गिनी इंडेक्स 25.5 है। यह भारत को दुनिया के सबसे समान देशों में से एक बनाता है। भारत का स्कोर चीन के 35.7 और अमेरिका के 41.8 से बहुत कम है। यह सभी जी7 और जी20 देशों के साथ भी तुलनीय है।
भारत 'सामान्य से कम' असमानता श्रेणी में आता है, जिसमें गिनी स्कोर 25 से 30 के बीच होता है और यह 'कम असमानता' समूह में शामिल होने के करीब है, जिसमें स्लोवाक गणराज्य (24.1), स्लोवेनिया (24.3) और बेलारूस (24.4) शामिल हैं।
विश्व स्तर पर, केवल 30 देश 'सामान्य से कम' असमानता श्रेणी में आते हैं। इनमें कई यूरोपीय देश जैसे आइसलैंड, नॉर्वे, फिनलैंड और बेल्जियम शामिल हैं। भारत का गिनी सूचकांक पिछले कुछ वर्षों में सुधार दर्शाता है। 2011 में इसका सूचकांक 28.8 था और 2022 में 25.5 पर पहुंच गया। यह दर्शाता है कि भारत ने आर्थिक विकास और सामाजिक समानता के बीच संतुलन बनाने में प्रगति की है।
भारत की इस उपलब्धि का संबंध ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में गरीबी कम करने की निरंतर सफलता से है। विश्व बैंक की रिपोर्ट ने हाल के वर्षों में इसे सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक माना है।
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दशक में 171 मिलियन भारतीयों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकाला गया है। प्रतिदिन 2.15 अमेरिकी डॉलर से कम पर जीवन यापन करने वाले लोगों की हिस्सेदारी, जो जून 2025 तक अत्यधिक गरीबी की वैश्विक सीमा थी, 2011-12 के 16.2 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में केवल 2.3 प्रतिशत रह गई।
भारत की आय समानता की दिशा में प्रगति को अनेक सरकारी पहलों का समर्थन प्राप्त है। इन योजनाओं का उद्देश्य वित्तीय पहुंच में सुधार करना, कल्याणकारी लाभ कुशलतापूर्वक प्रदान करना और कमजोर समूहों का समर्थन करना है।
इनमें प्रधानमंत्री जन धन योजना, आधार, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी), आयुष्मान भारत, स्टैंड-अप इंडिया, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई), पीएम विश्वकर्मा योजना आदि महत्वपूर्ण हैं। आय समानता के लिए भारत का मार्ग स्थिर और केंद्रित रहा है। 25.5 का गिनी इंडेक्स केवल एक संख्या नहीं है, यह लोगों के जीवन में वास्तविक बदलाव का संकेत है। अब अधिक परिवारों को भोजन, बैंकिंग, स्वास्थ्य सेवा और नौकरियों तक पहुंच प्राप्त है।
भारत की यह विशेषता है कि यह आर्थिक सुधार और सामाजिक सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने में सफल रहा है। जन धन, डीबीटी और आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं लंबे समय से चली आ रही कमियों को दूर करने में मदद कर रही हैं।
दुनिया ऐसे मॉडल की तलाश कर रही है जो विकास को निष्पक्षता से जोड़ते हैं, और भारत का उदाहरण इसके लिए एक आदर्श है। इसका अनुभव दर्शाता है कि समानता और विकास अलग लक्ष्य नहीं हैं। जब ठोस नीति और समावेशी इरादे का समर्थन मिलता है, तो ये दोनों एक साथ आगे बढ़ते हैं।