क्या भारत को फिर से अपने स्वरूप में खड़ा करने का समय आ गया है?: मोहन भागवत

सारांश
Key Takeaways
- भारत को आत्मस्वरूप में खड़ा करने का समय आ गया है।
- विदेशी आक्रमणों के प्रभाव से देशी प्रणालियों की पुनर्स्थापना आवश्यक है।
- संघ की शाखा व्यक्तित्व निर्माण की प्रयोगशाला है।
- सामाजिक परिवर्तन के लिए इच्छाशक्ति महत्वपूर्ण है।
- हिंदू समाज की एकता ही देश की सुरक्षा की गारंटी है।
नागपुर, 2 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि भारत को फिर से आत्मस्वरूप में खड़ा करने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि लंबे समय तक चले विदेशी आक्रमणों के कारण हमारी देशी प्रणालियां नष्ट हो गई थीं, जिन्हें अब समय के अनुसार, समाज और शिक्षा प्रणाली के भीतर दोबारा स्थापित करने की आवश्यकता है।
डॉ. भागवत ने स्पष्ट कहा, "हमें ऐसे व्यक्तियों को तैयार करना होगा जो इस कार्य को कर सकें। इसके लिए सिर्फ मानसिक सहमति नहीं, बल्कि मन, वाणी और कर्म में भी बदलाव लाने की आवश्यकता है। यह बदलाव किसी भी सिस्टम के बिना संभव नहीं है और संघ की शाखा यही एक मजबूत व्यवस्था है जो ये कार्य कर रही है।"
उन्होंने बताया कि शाखा केवल शारीरिक अभ्यास की जगह नहीं है, बल्कि यह व्यक्तित्व निर्माण और समाज में सकारात्मक आदतों के निर्माण की प्रयोगशाला है।
भागवत ने कहा, "सौ वर्षों से संघ के स्वयंसेवक इस व्यवस्था को हर परिस्थिति में चलाते आ रहे हैं और आगे भी चलाते रहेंगे। स्वयंसेवकों को चाहिए कि वे नित्य शाखा के कार्यक्रमों को पूरी श्रद्धा से करें और अपने आचरण में परिवर्तन लाने की साधना करें।"
उन्होंने यह भी कहा कि समाज की उन्नति के लिए सिर्फ व्यवस्थाएं जिम्मेदार नहीं होतीं, बल्कि परिवर्तन की असली शक्ति समाज की इच्छाशक्ति में होती है। इसलिए व्यक्तिगत सद्गुणों, सामूहिकता और सेवा भावना को समाज में फैलाने का कार्य संघ कर रहा है।
भागवत ने कहा, "संपूर्ण हिंदू समाज का संगठित, शील संपन्न बल इस देश की एकता, अखंडता, विकास और सुरक्षा की गारंटी है। हिंदू समाज ही इस देश के लिए उत्तरदायी समाज है और यह सर्व-समावेशी समाज है।"
उन्होंने भारत की 'वसुधैव कुटुंबकम' की परंपरा को याद दिलाते हुए कहा कि यह उदार और समावेशी विचारधारा ही भारत की ताकत है और इस विचार को दुनिया तक पहुंचाना हिंदू समाज का कर्तव्य है।
संघ, संगठित कार्यशक्ति के द्वारा भारत को वैभव संपन्न और धर्म के मार्ग पर चलने वाला देश बनाने के संकल्प के साथ कार्य कर रहा है।
विजयादशमी के पावन अवसर पर उन्होंने सीमोल्लंघन की परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा, "आज की देश-काल-परिस्थिति को देखते हुए हमें अपने पूर्वजों के बताए कर्तव्य को निभाते हुए साथ मिलकर एक सशक्त भारत के निर्माण के लिए आगे बढ़ना होगा।"
संघ के शताब्दी वर्ष को लेकर भागवत ने बताया कि इसका उद्देश्य व्यक्ति निर्माण को देशव्यापी बनाना और पंच परिवर्तन कार्यक्रम को समाज में लागू करना है।