क्या भारत में प्राकृतिक गैस की खपत 2030 तक 103 अरब घन मीटर प्रति वर्ष पहुंचने की संभावना है?

सारांश
Key Takeaways
- प्राकृतिक गैस की खपत में वृद्धि का अनुमान 2030 तक 103 अरब घन मीटर है।
- भारत ने 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है।
- गैस का उपयोग परिवहन और ऊर्जा उत्पादन में बढ़ रहा है।
- भारत को गैस की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना होगा।
- नवीनतम तकनीकों का उपयोग करना आवश्यक है।
नई दिल्ली, 24 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। भारत में कुल प्राकृतिक गैस की खपत 2030 तक 103 अरब घन मीटर (बीसीएम) प्रति वर्ष तक पहुंचने की उम्मीद जताई गई है, जो वर्तमान स्तर से लगभग 60 प्रतिशत अधिक है। यह जानकारी एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी द्वारा साझा की गई।
राष्ट्रीय राजधानी में चिंतन रिसर्च फाउंडेशन (सीआरएफ) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव प्रवीण मल खनूजा ने कहा कि अधिक नीतिगत समर्थन जैसे सीजीडी की तेज शुरुआत, परिवहन में एलएनजी का उपयोग और गैस से चलने वाले बिजली संयंत्रों का अधिक उपयोग 2030 तक मांग को 120 अरब घन मीटर प्रति वर्ष तक बढ़ा सकता है।
उन्होंने आगे कहा कि भारत ने 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है। इस परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण घटक गैस का एक सेतु ईंधन के रूप में रणनीतिक उपयोग है, जो कोयले जैसे कार्बन उत्सर्जन करने वाले ईंधन से कम कार्बन वाले भविष्य की ओर चरणबद्ध बदलाव को सक्षम बनाता है।
खनूजा ने कहा कि गैस को वैश्विक स्तर पर कम कार्बन वाले जीवाश्म ईंधन के रूप में मान्यता मिली है और यह एनर्जी ट्रांजिशन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हालांकि, ग्रीन हाइड्रोजन, कंप्रेस्ड बायोगैस और कोल-बेड मीथेन जैसे विकल्प उभर रहे हैं, फिर भी भारत अपने एनर्जी मिक्स में गैस की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए पुनर्गैसीकृत एलएनजी पर काफी हद तक निर्भर है।
भारत के प्राथमिक एनर्जी मिक्स में गैस की हिस्सेदारी 6.8 प्रतिशत है, जो 2030 के लिए निर्धारित 15 प्रतिशत के लक्ष्य से काफी कम है।
आईईए की 'इंडिया गैस मार्केट रिपोर्ट' सहित हालिया विश्लेषणों से पता चलता है कि सामान्य परिस्थितियों में देश के एनर्जी मिक्स में गैस की हिस्सेदारी 2030 तक केवल 8-9 प्रतिशत ही पहुंच पाएगी।
गैस की खपत में वृद्धि करने और एनर्जी मिक्स में 10 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल करने के लिए, भारत को कई बड़ी चुनौतियों का समाधान करना होगा।
अदाणी टोटल गैस लिमिटेड (एटीजीएल) के कार्यकारी निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुरेश पी. मंगलानी ने बताया कि वे चीन की गतिविधियों पर ध्यान दे रहे हैं।
मंगलानी ने कहा, "अगर आप वहां जाएं, तो आप साफ तौर पर देख सकते हैं कि चीन खासकर ट्रकों और लंबी दूरी के माल के परिवहन के लिए एलएनजी को बढ़ावा दे रहा है। यदि भारत हाई-स्पीड डीजल (एचएसडी) से दूर जाने को लेकर गंभीर है, तो हमें भी ऐसी ही रणनीतियों पर विचार करना होगा। यदि हम 70 से 200 मिलियन क्यूबिक मीटर एलएनजी की बढ़ती मांग मान लें और 30 से 35 लॉजिस्टिक्स केंद्रों में लगभग 300 एलएनजी स्टेशन वितरित करें, तब भी यह केवल पारंपरिक मांग वाले क्षेत्र को ही कवर करेगा।"
उन्होंने आगे कहा, "हमें प्राकृतिक गैस के गैर-पारंपरिक उपयोगों पर केंद्रित उद्यमिता को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करना चाहिए, चाहे वह औद्योगिक समूहों में हो या दूरदराज के क्षेत्रों में। हमारे पास पहले से ही देश भर में ऐसे कई अवसर मौजूद हैं।"
मंगलानी के मुताबिक, "जीएसटी के कार्यान्वयन ने भारत को एक एकीकृत बाजार बनने में मदद की है। अब हमें परिवहन को सुव्यवस्थित करने और लॉजिस्टिक्स दक्षता बढ़ाने के लिए उस गति को आगे बढ़ाना होगा, जिससे अंततः अर्थव्यवस्था और अंतिम उपभोक्ता दोनों को लाभ हो।"
इंडियन गैस एक्सचेंज (आईजीएक्स) के प्रबंध निदेशक और सीईओ राजेश कुमार मेदिरत्ता ने कहा कि हमें अपना स्वयं का मजबूत और आत्मनिर्भर गैस बाजार बनाने का लक्ष्य रखना चाहिए।
उन्होंने कहा, "भारत में जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के बराबर या उनसे भी आगे एशिया के सबसे बड़े मांग केंद्रों में से एक बनने की क्षमता है। इस पैमाने की मांग के साथ, हमें बिचौलियों या हाजिर बाजारों पर ज्यादा निर्भर रहने के बजाय, अपनी शर्तों पर, अधिक आत्मविश्वास से वैश्विक अनुबंधों पर बातचीत करने की स्थिति में होना चाहिए।"
सीआरएफ के अध्यक्ष शिशिर प्रियदर्शी ने कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य गैस को भारत के एनर्जी ट्रांजिशन में एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में हाईलाइट करना था। देश 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन को लेकर प्रतिबद्ध है। ऐसे में गैस जीवाश्म ईंधन से गैर-जीवाश्म ईंधन की तरफ शिफ्ट में गैस एक पुल की भूमिका निभा सकता है।