क्या बिहार में 'वोट चोरी' का मुद्दा फ्लॉप हो गया? राहुल गांधी जहां गए, कांग्रेस को मिली करारी शिकस्त
सारांश
Key Takeaways
- राहुल गांधी का 'वोट चोरी' मुद्दा नाकाम रहा।
- कांग्रेस को केवल दो सीटें मिलीं।
- नीतीश कुमार और भाजपा के विकास कार्यों को प्राथमिकता मिली।
- यह चुनाव कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है।
- भाजपा ने मजबूत स्थिति बनाई है।
पटना, १४ नवंबर (राष्ट्र प्रेस) - बिहार विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी और महागठबंधन का 'वोट चोरी' मुद्दा पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ है। राज्य की जनता ने कांग्रेस-राजद के नारों को नजरअंदाज करते हुए नीतीश कुमार की योजनाओं और भाजपा की विकास यात्रा को प्राथमिकता दी है।
राजद-कांग्रेस के प्रचार अभियान का मुख्य आकर्षण राहुल गांधी का 'वोट चोरी' वाला नारा था। स्वयं राहुल गांधी का बिहार का चुनावी कैंपेन इस मुद्दे पर केंद्रित रहा। उन्होंने राज्यभर में यात्राएं और चुनावी अभियान चलाते हुए लगभग 116 विधानसभा सीटों को कवर किया। हालांकि, परिणामों के दिन कांग्रेस केवल दो सीटों पर बढ़त बना सकी, जिसका स्ट्राइक रेट २ प्रतिशत से भी कम है।
मतगणना के दिन दोपहर तक कांग्रेस पांच से आठ सीटों के बीच रही, लेकिन शाम ४ बजे तक पार्टी महज दो सीटों (किशनगंज और मनिहारी) पर सिमट गई।
यह ध्यान देने योग्य है कि १९५२ में बिहार में पहली बार २३९ सीटें जीतने वाली कांग्रेस पार्टी ने १५ साल पहले केवल चार सीटों पर जीत हासिल की थी। २०१० में उसे बिहार में सबसे कम सीटें मिली थीं। हालाँकि, कांग्रेस का यह रिकॉर्ड इस चुनाव में टूट सकता है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार यदि नतीजे इसी तरह रहे, तो यह बिहार की राजनीति में कांग्रेस की अब तक की सबसे बड़ी हार होगी।
सिर्फ यही नहीं, राहुल गांधी की हार का यह रिकॉर्ड २०२५ के बिहार विधानसभा चुनाव में भी जुड़ गया है। पिछले दो दशकों में सबसे पुरानी पार्टी को ९५ हार का सामना करना पड़ा है।
इस बार भाजपा की आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने तंज करते हुए कहा, "अगर चुनावी निरंतरता के लिए कोई पुरस्कार होता, तो वह (राहुल गांधी) सभी पर भारी पड़ते। इस दर पर, असफलताएं भी सोच रही होंगी कि वह उन्हें इतनी विश्वसनीयता से कैसे पा लेते हैं।"