क्या बिहार विधानसभा चुनाव में ब्रहमपुर का अनोखा इतिहास बाहरी उम्मीदवारों को नहीं मिलती जगह?

सारांश
Key Takeaways
- बाहरी उम्मीदवारों को ब्रहमपुर में अस्वीकार किया जाता है।
- इस सीट पर स्थानीय नेताओं का महत्व है।
- आरजेडी ने पिछले चुनावों में अधिकतम जीत दर्ज की है।
- ब्रहमपुर का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है।
- भाजपा के संभावित उम्मीदवारों की सूची में स्थानीय पहचान का ध्यान रखा गया है।
पटना, 9 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार की राजनीति में हर विधानसभा क्षेत्र की अपनी एक विशेष पहचान होती है। हर विधानसभा में कुछ न कुछ असाधारण है। लेकिन, ब्रहमपुर विधानसभा सीट की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यहां के मतदाता बाहरी उम्मीदवारों को अस्वीकृत कर देते हैं, चाहे वे किसी भी दल से हों। यदि प्रत्याशी स्थानीय नहीं है या जनता से सीधा जुड़ाव नहीं रखता, तो यहां की जनता उसे सिरे से खारिज कर देती है।
बक्सर लोकसभा क्षेत्र में आने वाली ब्रहमपुर विधानसभा सीट में डुमरांव अनुमंडल के ब्रहमपुर, सिमरी और चक्की प्रखंड शामिल हैं। यह सीट 1951 में स्थापित हुई थी और यह सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है। अब तक इस सीट ने 17 चुनाव देखे हैं। यहां से कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने 5-5 बार और भाजपा तथा निर्दलीय ने 2-2 बार जीत हासिल की है। वहीं, लोकतांत्रिक कांग्रेस, जनता पार्टी और जनता दल ने 1-1 बार विजय प्राप्त की है।
2000 से यह सीट आरजेडी का गढ़ बन चुकी है, जिसने पिछले 6 में से 5 चुनावों में जीत प्राप्त की है। केवल 2010 में भाजपा ने यहां से जीत दर्ज की थी, लेकिन 2020 में भाजपा ने इस सीट पर चुनाव नहीं लड़ा और इसे अपने सहयोगी दल वीआईपी को सौंप दिया। वीआईपी के प्रत्याशी जयराज चौधरी तीसरे स्थान पर रहे। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि जयराज की हार का प्रमुख कारण यह था कि वे जनता के बीच सक्रिय नहीं थे।
इससे पहले, 2015 में भाजपा ने विवेक ठाकुर को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन बाहरी होने के कारण उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा। यह लगातार उदाहरण इस बात को प्रमाणित करते हैं कि ब्रहमपुर के मतदाता केवल स्थानीय नेताओं को स्वीकार करते हैं।
वहीं, 2020 के चुनाव में आरजेडी के शंभूनाथ यादव, जो स्थानीय नेता के रूप में अपनी पहचान रखते हैं, ने लोजपा के हुलास पांडेय को 50 हजार से अधिक वोटों से हराया। यादव की जीत में उनकी स्थानीय पहचान के साथ-साथ यादव मतदाताओं की मजबूत संख्या का भी योगदान रहा।
2025 के संभावित विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। इस सीट पर लोजपा (रामविलास) भी दावेदारी पेश कर रही है। लोजपा हुलास पांडेय को इस सीट से लड़ाने की योजना बना रही है। वहीं भाजपा के अंदर तीन नामों पर चर्चा हो रही है: डॉ. सत्य प्रकाश तिवारी, संतोष रंजन और दिलमणि देवी।
डॉ. सत्य प्रकाश तिवारी, बिहार भाजपा चिकित्सा प्रकोष्ठ के सह संयोजक, पेशे से डॉक्टर हैं और स्थानीय माने जा रहे हैं। दूसरी ओर, संतोष रंजन यूपी के निवासी हैं, लेकिन वर्तमान में वे बिहार भाजपा के प्रदेश मंत्री हैं। तीसरी संभावित उम्मीदवार दिलमणि देवी हैं, जिन्होंने 2010 में भाजपा के टिकट पर इसी सीट से जीत हासिल की थी।
2024 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, ब्रहमपुर विधानसभा क्षेत्र की जनसंख्या 5,91,314 है, जिसमें 3,10,799 पुरुष और 2,80,515 महिलाएं हैं। इस सीट पर कुल मतदाता 3,49,684 हैं, जिनमें 1,83,606 पुरुष, 1,66,076 महिलाएं और 2 थर्ड जेंडर के मतदाता शामिल हैं।
राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ ब्रहमपुर का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पक्ष भी रोचक है। कहा जाता है कि इसका नाम स्वयं ब्रह्मा जी से जुड़ा है। यहां एक प्राचीन शिव मंदिर है, जिसके बारे में मान्यता है कि जब मध्यकालीन आक्रमणकारी महमूद गजनवी इसे तोड़ने आया, तो ग्रामीणों ने उसे शिव के प्रकोप से आगाह किया। गजनवी ने चुनौती दी कि यदि मंदिर का पूर्वमुखी द्वार रातों-रात पश्चिममुखी हो जाए, तो वह हमला नहीं करेगा। अगली सुबह मंदिर का द्वार सचमुच पश्चिम की ओर हो गया, जिससे चौंककर उसने मंदिर को छोड़ दिया। यह घटना चाहे लोककथा हो या चतुराई, लेकिन आज भी यह मंदिर पश्चिममुखी द्वार के लिए प्रसिद्ध है।