क्या मिजोरम-बांग्लादेश बॉर्डर पर बीएसएफ ने 50 तस्करी किए गए सागौन के लट्ठे जब्त किए?

सारांश
Key Takeaways
- बीएसएफ ने मिजोरम में 50 तस्करी किए गए सागौन के लट्ठे जब्त किए।
- यह कार्रवाई तस्करों के बढ़ते नेटवर्क को उजागर करती है।
- स्थानीय समुदायों की सुरक्षा के लिए कार्रवाई महत्वपूर्ण है।
- तस्करी के खिलाफ कड़ी निगरानी की जा रही है।
- आवश्यक है कि सीमा सुरक्षा को और मजबूत किया जाए।
आइजोल, 5 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। मिजोरम के लुन्गले जिले में बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) ने कर्नाफुली नदी के किनारे अवैध रूप से तस्करी की गई सागौन लकड़ियों की एक बड़ी खेप को जब्त किया। 2 अक्टूबर को, सेक्टर आइजोल के अधीन 152 बटालियन की टीम ने विशेष खुफिया जानकारी के आधार पर 50 सागौन के लट्ठों को बरामद किया। इनका उद्देश्य बांग्लादेश में तस्करी करना था।
यह हाल की तीसरी बड़ी कार्रवाई है, जिसमें पहले 26 सितंबर को इसी नदी के हिस्से से 186 सागौन के लट्ठे जब्त किए गए थे, और 21 सितंबर को 46 लकड़ी के लट्ठों को भी बरामद किया गया था।
अधिकारियों का कहना है कि ये निरंतर कार्रवाई यह दर्शाती है कि तस्कर अब नदी के रास्तों का उपयोग कर मूल्यवान लकड़ी को सीमा पार ले जाने की कोशिश कर रहे हैं।
मिजोरम में अवैध लकड़ी की तस्करी पर चिंता बढ़ती जा रही है। भारत, म्यांमार और बांग्लादेश की सीमाएं काफी खस्ताहाल हैं, जिसका फायदा तस्कर उठा रहे हैं। ये तस्करी के नेटवर्क सीमा पार से संचालित हो रहे हैं, जो स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लकड़ी के अवैध व्यापार को मजबूती दे रहे हैं।
बीएसएफ के वरिष्ठ अधिकारियों ने सीमा पर निगरानी को और कड़ा कर दिया है ताकि अवैध गतिविधियों को रोका जा सके। उन्होंने जनता से अपील की है कि यदि वे किसी संदिग्ध गतिविधि को देखें तो तुरंत सूचना दें, जिससे तस्करों की योजनाएं नाकाम हो सकें।
यह जब्ती न केवल मिजोरम में, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में वन संपदा की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। अधिकारी यह सुनिश्चित करने के लिए गश्त और चौकसी को और बढ़ाने की योजना बना रहे हैं ताकि भविष्य में इस प्रकार की तस्करी को पूरी तरह समाप्त किया जा सके।
मिजोरम के लुन्गले जिले में यह घटना स्थानीय लोगों और अधिकारियों के लिए चिंता का विषय बन गई है, क्योंकि यह क्षेत्र जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है। अवैध लकड़ी की तस्करी न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि स्थानीय लोगों की आजीविका पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है।